दीपक कुमार त्यागी
भारत की फिल्मी दुनिया में एक अभिनेता के रूप में मुकेश ऋषि फिल्म इंडस्ट्री का एक ऐसा नाम है, जो अपनी मेहनत के बलबूते किसी पहचान का मोहताज नहीं है। मुकेश ऋषि का बेहद सरल व्यक्तित्व उनकी इस पहचान को आम जनमानस में ओर मजबूत करने का कार्य करता है। बतौर मॉडल अपने करियर की शुरुआत करने वाले मुकेश ऋषि ने गुंडा, गर्दिश, सूर्यवंशम, सरफरोश आदि फिल्मों में अपने अभिनय के दम पर दर्शकों के दिलो-दिमाग में छा जाने का कार्य किया है। बतौर खलनायक उनके अभिनय को देश व दुनिया के दर्शकों ने बेहद पसंद किया, जिसके चलते ही मुकेश ऋषि ने अपने अभिनय करियर में सबसे अधिक फ़िल्में बतौर खलनायक की और दर्शकों ने भी उनके खलनायक रूप में किये अभिनय को बेहद पसंद किया हैं। हमारे सम्मानित पाठकों के लिए दिग्गज अभिनेता मुकेश ऋषि से वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार त्यागी ने अभिनय जगत के बारे में विस्तार से चर्चा की, हमारे सम्मानित पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं उस महत्वपूर्ण चर्चा के कुछ अंश –
दिल्ली के ऐतिहासिक लालकिले के मैदान में हाल के दिनों में आयोजित हुई विश्व प्रसिद्ध लव-कुश रामलीला में अभिनय क्यों?
– दिल्ली की लव-कुश रामलीला में अभिनय क्यूं नहीं, हालांकि यह बहुत बड़ा चैंलेज था, क्योंकि मैंने बहुत पहले स्टेज पर इस तरह का काम किया था। लेकिन चैंलेज के बावजूद भी मैं एकबार फिर रामलीला कर रहा हूं, बड़ा चैंलेज होने के बाद भी पता नहीं क्यों मन किया, इसलिए विश्व प्रसिद्ध लव-कुश रामलीला में काम किया।
प्रभु श्री राम की इस विश्व प्रसिद्ध रामलीला में आपका क्या-क्या किरदार था?
– मैंने इस की रामलीला में लंकापति राजा रावण के किरदार को निभाया था।
स्टेज पर प्रकांड विद्वान व बलशाली राजा रावण के किरदार को निभाना बेहद चुनौती पूर्ण है, इसके लिए आपने क्या-क्या तैयारी की?
– रावण जैसे महाज्ञानी के किरदार को स्टेज पर निभाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण है, इसके लिए मुझे बहुत पहले से ही तैयारियां शुरू करनी पड़ी थी, रामलीला की डायरेक्शन टीम की तरफ से दो-तीन महिने पहले ही किरदार के बारे में मेरे संवाद मुझे भेज दिये गये थे, जिनको मैं जब भी समय मिलता था, घर या सेट व फ्लाइट आदि में पढ़ लेता था और रावण के किरदार के बारे में विस्तार से समझता था। वैसे तो हर आर्टिस्ट का किरदार को समझने का अपना एक तरीका होता है, वह उसके हिसाब से ही किरदार को निभाने की तैयारी करता है और रिहर्सल करता है, तब कहीं जाकर वह उस किरदार को निभाने के लिए पूरी तरह से तैयार होता है।
फिल्मी दुनिया व स्टेज पर अभिनय करने में क्या अंतर है?
– दोनों में बहुत अंतर है, सिनेमा जब करते हैं, तो उसमें गलती होने पर सुधार करने का पूरा अवसर रहता है। सिनेमा में अलग तरह का सिस्टम इस्तेमाल होता है। जबकि स्टेज पर एक अलग तरह का माहौल व चेलेंज होता है, स्टेज पर अगर एक बार गलती हो गई तो सुधार की कोई गुंजाइश नहीं होती है।
आपने अभी तक कितनी फिल्मों में काम किया है और आपका सबसे यादगार किरदार किस फिल्म का है?
– मैंने अभी तक दो सौ से अधिक फिल्मों में काम किया है, जिसमें गर्दिश, सरफरोश आदि फिल्मों में मेरा यादगार किरदार है, उन किरदारों ने ही मुझे फिल्म इंडस्ट्री व दर्शकों के दिलो-दिमाग में विशेष स्थान दिलाने का काम किया।
आपने हिन्दी सिनेमा व साउथ सिनेमा दोनों में ही काम किया, कहां काम करके आपको आत्म संतुष्टि मिलती है?
– काम करने वाले के लिए काम तो काम होता है, चाहे वो कहीं भी हो और भाषा चाहे कोई भी हो। हां अलग-अलग भाषाओं में काम करना एक बहुत बड़ा चैलेंज अवश्य होता है, क्योंकि आपको जो भाषा नहीं आती है, आपको उसमें भी दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतरने वाला काम करना होता है। जिसके लिए हमें एक अलग किस्म की मेहनत करनी होती, जिस चैलेंज को मैंने वर्षों पहले स्वीकार किया था और मैं दर्शकों की उम्मीदों पर खरा भी उतार।
फिल्मों या स्टेज पर अभिनय की बारिकियां कहां सीखी जा सकती है?
– फिल्म व स्टेज दोनों अलग-अलग प्लेटफार्म हैं और दोनों पर काम करने के तरीके अलग हैं। हर अभिनेता को दोनों से अभिनय की बारिकियों को सीखना चाहिए। क्योंकि एक अभिनेता का काम हर प्लेटफार्म पर दर्शकों को पसंद आने वाले अभिनय करने का होना चाहिए। फिल्मी में रीटेक के अवसर मिलते हैं, आधुनिक तकनीक के माहौल में अभिनय करने का अवसर मिलता है, रीटेक के माध्यम से गलतियों में सुधार की गुंजाइश होती है। लेकिन स्टेज पर ऐसी स्थिति नहीं, वहां आपको दर्शकों की भारी भीड़ के सामने अपनी कला की लाइव परफॉमेंस देनी होती है, स्टेज खुला होता है, वहां पर अपने चहरे के हाव-भाव से दर्शकों के दिलो-दिमाग पर छा जाना होता है। पहले तो स्टेज पर परफॉर्मेंस देते समय कलाकार के साथ साउंड तक नहीं होता था, लेकिन जैसे-जैसे नयी तकनीक आयी हैं अब तो स्टेज पर भी कलाकार के साथ साउंड भी रहने लगा, अभिनय की बारिकियों को सीखने के लिए दोनों प्लेटफार्म का अपनी-अपनी बेहद महत्वपूर्ण अहम भूमिका है।
फिल्मी दुनिया में काम पाने की चाहत रखने वाले लोगों के लिए आपका क्या संदेश है?
– मैं फिल्मी दुनिया में काम पाने की चाहत रखने वालों से कहना चाहता हूं कि फिल्मों में निरंतर काम पाने का कोई शॉर्टकट नहीं है, इसलिए वह शॉर्टकट ढूंढने में अपनी ऊर्जा समाप्त ना करें। आज घर-घर में सिनेमा देखा जा रहा, जिसके चलते सिनेमा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है और बहुत कड़ा कंपटीशन हो गया है, इसलिए अब निरंतर काम पाने के लिए शॉर्टकट की जगह मेहनत करके उन्हे अपना स्थान बनाना होगा।
विश्व प्रसिद्ध लव-कुश रामलीला के मंच से आपका देश व दुनिया के लिए क्या संदेश है?
– मुझे खुशी है कि मुझे रामायण पर आधारित प्रभु श्री राम की अद्भुत लीला को मंचन करने वाले विश्व प्रसिद्ध प्लेटफार्म लव-कुश रामलीला में काम करने का अवसर मिला। वैसे तो ना जाने कितने वर्षों से रामलीला हर वर्ष होती है और वह हमें जीवन को सरल बनाने का एक बेहद सकारात्मक संदेश देकर जाती है, लेकिन अब यह हम लोगों पर निर्भर है कि हम प्रभु श्री राम की इस लीला के गूढ़ ज्ञान का अपने जीवन को सरल व मर्यादित बनाने में कैसे उपयोग करें। प्रभु श्री राम की यह अद्भुत लीला हम सभी को बुराई पर अच्छाई की जीत, अहंकार का पतन व जीवन में मर्यादित आचरण करने का संदेश देकर जाती है।