सुनील कुमार महला
हमेशा-हमेशा से चीन के भारत के प्रति इरादे कुछ ठीक नहीं रहे हैं। समय-समय पर चीन का असली चेहरा दुनिया के सामने आ रहा है और सच तो यह है कि चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों से बाज नहीं आ रहा है। इस क्रम में, हाल ही में भारत ने चीन द्वारा होटन प्रान्त में दो नए काउंटी बनाने पर उसके समक्ष अपना गंभीर विरोध दर्ज कराया है।इस संबंध में भारत का यह कहना है कि इन क्षेत्रों के कुछ हिस्से भारतीय केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के अंतर्गत आते हैं। दरअसल ,भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ‘नए काउंटी बनाने से न तो क्षेत्र पर अपनी संप्रभुता के संबंध में भारत की दीर्घकालिक और सुसंगत स्थिति पर कोई असर पड़ेगा और न ही चीन के अवैध और जबरन कब्जे को वैधता मिलेगी।’ फिलहाल, चीन ने झिंजियांग में जो नए काउंटी स्थापित करने का जो कदम उठाया है, वह साबित करता है कि चीन की भारत के प्रति मंशा और उसके इरादे बिल्कुल भी ठीक नहीं हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि पिछले काफी समय से भारत-चीन के बीच सीमा-विवाद के बावजूद तथा आपसी संवाद के बीच, चीन का यह कदम भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है। इतना ही नहीं, चीन ने हाल ही में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने का भी फैसला किया है, जो भारत के लिए और भी अधिक चिंता का विषय है। पाठकों को जानकारी देता चलूं कि कुछ समय पहले ही चीन ने भारतीय सीमा के करीब तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर 137 अरब डॉलर(यानी कि एक ट्रिलियन युआन) की लागत से दुनिया के सबसे बड़े बांध के निर्माण को मंजूरी दे दी है। निश्चित ही इससे तटवर्ती देशों- भारत और बांग्लादेश में चिंताएं बढ़ेंगी, क्यों कि चीन बांध के पानी का इस्तेमाल एक शक्ति के रूप में कभी भी कर सकता है। बहरहाल, पिछले कुछ समय से भारत और चीन के बीच जब से संवाद की प्रक्रिया ने तेजी पकड़ी है, तब से यह माना जाने लगा है कि दोनों देशों के बीच अब कड़वाहट का दौर कम होगा और संबंध सुधरेंगे, लेकिन चीन ने हाल ही में जो दो काउंटी स्थापित किए हैं,इनमें से एक काउंटी भारतीय क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण हिस्से को शामिल करती है, जिसे चीन ने 20वीं सदी के मध्य में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद अक्साई चिन में अवैध रूप से कब्जा कर लिया था। इस संबंध में भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह बात कही है कि ‘हमने चीन के होटन प्रान्त में दो नए काउंटी की स्थापना से संबंधित घोषणा देखी है। इन तथाकथित काउंटियों के अधिकार क्षेत्र के कुछ हिस्से भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में आते हैं।’ कहना ग़लत नहीं होगा कि चीन एक अविश्वसनीय देश है। कभी वह संवाद के बहाने सीमा पर पीछे हटने का ढोंग रचता है तो कभी भारत के साथ संबंधों को मधुर करने स्वांग बुनता है। सच तो यह है कि चीन ने हाल ही में जो किया है, वह उसकी एक बहुत ही सोची-समझी सामरिक चाल व साजिश है। इस संबंध में विशेषज्ञ ने यह बात तक कहीं है कि ‘ऐसा लगता है कि उनका (चीन) ऐसा करने का कोई इरादा नहीं है। विशेषज्ञ ने यहां तक कहा है कि चीन की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं नहीं बदलने वाली है।’ बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि भारत-चीन संवाद से सीमा पर शांति और दीर्घकालिक समाधान की उम्मीद बंधी थी, लेकिन चीन ने जो दो नये काउंटी स्थापित किए हैं, उससे नहीं लगता है कि उसकी मंशा और उसके इरादे ठीक हैं। सच तो यह है कि चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों को लेकर अक्सर सक्रिय दिखता है, जो भारत की संप्रभुता के लिहाज से संवेदनशील हो सकता है। यह आश्चर्यजनक है कि चीन एक तरफ तो आपसी संवाद और बातचीत को तवज्जो देता है और दूसरी तरफ वह कुछ न कुछ ऐसी गतिविधियां करता है, जो उस पर शक खड़े करता है। गौरतलब है कि चीन ने लद्दाख क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले इलाकों पर अपना अधिकार जताते हुए दो नए प्रशासनिक काउंटी बनाने का जो फैसला लिया है,वह उसका एकतरफा फैसला है। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह एक तरह से चीन की भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ है, जिसका आपसी संबंधों पर दूरगामी असर पड़ सकता है। हालांकि, यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत का पक्ष इस मसले पर बिल्कुल स्पष्ट और साफ है, क्यों कि भारत ने चीन के प्रति साफ तौर पर अपना विरोध जता दिया है। उल्लेखनीय है कि सभी देश यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि चीन सदा सदा से एक तरफ जहां दुनिया के विभिन्न देशों को अपने ऋण जाल में फंसाने की साजिश के तहत आधारभूत ढांचा के विकास के नाम पर चीन दूसरे देशों को कर्ज देता रहा है और उसे न चुका पाने की स्थिति में उनके संसाधनों पर कब्जा करना शुरू कर देता है, वहीं दूसरी ओर उसने अपनी विस्तारवादी नीतियों के तहत अब तक दुनिया के 23 देशों की जमीनें ताकत के बल पर हथिया लीं हैं। सच तो यह है कि चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति से पिछले 6-7 दशकों में अपने आकार को लगभग दोगुना कर लिया है। यहां कहना ग़लत नहीं होगा कि चीन दुनिया का एक ऐसा देश है, जिसमें विस्तारवाद की बड़ी भूख है और वह लगातार गलत तरीकों से अपनी पड़ोसी देशों की सीमा में जबरन अपने पांव फैलाना चाहता है। अंत में, यही कहूंगा कि चीन की ओर से इस तरह की हरकतें उस समय सामने आ रहीं हैं, जब दोनों देशों ने करीबन चार-साढ़े चार सालों से सीमा पर जारी गतिरोध और उसके विभिन्न मुद्दों के समाधान के लिए ठोस राह पर कदम बढ़ाने का फैसला किया था। चीन कभी भारत के अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपने नक्शे में दिखाता है, तो कभी अरुणाचल के उस पार भारी सैन्य तैनाती के साथ अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाता है। ऐसे में चीनी इरादों और उसकी मंशा पर शक पैदा होना लाजिमी ही है। सच तो यह है कि चीन द्वारा भारतीय क्षेत्र में दखलंदाजी को किसी भी हाल और परिस्थितियों में उचित नहीं ठहराया जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो चीन के मन और नीयत में खोट है।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।