ऐसे खत्म होगा आतंकवाद

सीता राम शर्मा ” चेतन “

आंतकवाद वर्तमान की सबसे बड़ी वैश्विक समस्या है । विश्व का हर देश इस समस्या से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से त्रस्त है । कुछ देश इस पर चिंतित हैं और कुछ अपनी इस समस्या से अनजान और लापरवाह ! गौरतलब है कि गलत और आतंकी लोग पड़ोस में हो या दूर, देर-सवेर कभी भी निर्दोष लोग उनके दुष्प्रभाव का शिकार होते रहे हैं, हो सकते हैं । अतः सबके लिए यह सबसे ज्यादा जरुरी है कि वह पूरी प्राथमिकता के साथ अपनी मानवीय सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में अमानवीय और आतंकी तत्वों के जन्म और विस्तार की स्थिति में उसके त्वरित विनाश के लिए सदैव पूरी सजगता, एकजुटता और आक्रमकता के साथ तैयार रहें । बात किसी एक छोटे से गांव, शहर की हो या फिर देश और दुनिया की, मानवीय सुव्यवस्था के निर्माण, विकास और सुरक्षित भविष्य के लिए यह सर्वाधिक जरुरी है कि सर्वांगीण विकास के मार्ग पर चलने के लिए अराजकता और विनाश की हर छोटी से छोटी संभावनाओं तक को समाप्त कर दिया जाए । जो इसमें तनिक भी लापरवाही करता है अंततोगत्वा उसे अपनी उस छोटी सी लगती-दिखती असावधानी लापरवाही का बड़ा नुकसान झेलना पड़ता है, कई बार तो उस छोटी सी गलती से उसका और उसके दीर्घकालीन पूरे विकास का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है ।

बूरे लोगों की सबसे बड़ी ताकत होती है अच्छे लोगों की चुप्पी । बूरे लोग अकसर संगठित होते हैं और अच्छे बिखरे हुए । डरे हुए । एकता में बल है यह सत्य अच्छे लोगों की जुबान पर तो होता है पर व्यवहार में नहीं । बस यहीं से शुरु हो जाता है, बुराई और बूरे लोगों का शक्तिशाली होना । आज मानवीय समाज की इसी विडंबना से त्रस्त हैं मानवीय संसार के देश भी । लगभग आठ सौ करोड़ की मानवीय जनसंख्या वाले विश्व को कुछ देश जिनकी जनसंख्या कुल वैश्विक जनसंख्या की महज पांच-सात प्रतिशत या उससे भी कम है, तबाह और अशांत किए हुए हैं । अपना आतंक फैलाए हुए हैं । आतंक और आतंकवाद को लेकर यहां यह बात समझना बहुत जरुरी है कि आतंक और आतंकवाद फैलाने का काम सिर्फ वह नहीं करता जो बंदुक या हथियार लेकर सामने खड़ा होता है, चलाता है, वह जिस और जिसकी जमीन पर पैदा होता है या फलता-फूलता है । उसमें उससे बड़ा दोषी वह भी होता है जो उसे बंदुक और हथियार उपलब्ध कराता है । उसको उसे चलाने के लिए उकसाता भड़काता है । उसे उसकी गलत शिक्षा और प्रशिक्षण देता और दिलवाता है । इतना ही नहीं कई बार तो उसे इसके लिए उसके वास्तविक मानवीय दायित्वों के निर्वाह हेतु समुचित धन देने के साथ उसकी मौत के बाद उसके आश्रितों को एक बड़ी इनाम राशि देने का भी काम करता और करवाता है ताकि अपने स्वार्थ के लिए उसके द्वारा पोषित आतंकी समूह में उसकी विश्वसनीयता बनी रहे । ऐसे मुट्ठीभर लोगों या देशों के कारण ही आज आठ सौ करोड़ की जनसंख्या वाली दुनिया आतंकवाद से त्रस्त है और इसमें सर्वाधिक आश्चर्य तथा चिंता की बात यह है कि कुछ शक्तिशाली देश आतंकवाद को प्रत्यक्ष रूप से पालते फैलाते ऐसे देशों के आतंकवाद का खुद शिकार होने के बावजूद उन्हें अपने पापी स्वार्थों और हितों के लिए दिल खोलकर आर्थिक सहयोग करते हैं ! ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि विश्व और वैश्विक मानवता को आतंकवाद से मुक्ति मिले या दिलाई जाए तो कैसे ?

गौरतलब है कि आतंकवाद से पूरी तरह मुक्ति पाने या दिलाने के लिए दुनियाभर के देशों और इसकी सुरक्षा के जिम्मेवार वैश्विक संगठनों को संयुक्त और निरपेक्ष रुप से प्रयास करने होंगे । वर्तमान विश्व की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इसके कई प्रमुख शक्तिशाली देश ही पूरी तरह से आतंकवाद खत्म करने की बात तो दूर आतंकवाद को पूरी तरह से परिभाषित करने से भी बचना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से स्वाभाविक रूप से वे भी इसके घेरे में आ सकते हैं ! कैसे ? इसके लिए हमें आतंकवाद को लेकर एक सामान्य आदमी या मानवीय समुदाय के द्वारा दी जाने वाली सामान्य परिभाषा पर विचार करना होगा जो कुछ इस तरह से की जा सकती है – जाति-धर्म, रंग-रूप, अमीर-गरीब की भिन्नताओं तथा जातीय, व्यापारिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्वार्थों एंव षड्यंत्रों के लिए किसी भी अमानवीय समुह का गठन कर या करवाकर उसे घोर अमानवीय और कट्टरपंथी बना या बनवाकर उसके द्वारा निर्दोष मनुष्यों, मानवीय समूहों, राष्ट्रों, राष्ट्रीय संस्थानों, सुरक्षाकर्मियों और उनकी परिसंपत्तियों पर विनाशकारी रक्तरंजित प्रहार कर या करवाकर भय और आतंक फैलाना या फैलवाना और ऐसे आंतकी समूहों और उसके आंतकवादियों को किसी भी तरह का नैतिक, आर्थिक और राजनीतिक समर्थन देना या दिलवाना आतंकवाद है ।

अब सवाल यह उठता है कि आतंकवाद को यदि अत्यंत सरलतापूर्वक इस तरह या इसमें थोड़ा-बहुत सुधार और विस्तार कर परिभाषित किया जा सकता है तो फिर अब तक दुनिया का कोई भी देश या संगठन, विशेषकर अग्रणी वैश्विक संगठन संयुक्त राष्ट्र ही अब तक आंतकवाद को परिभाषित क्यों नहीं कर पाया ? वर्तमान विश्व की सबसे बड़ी वैश्विक समस्या आतंकवाद पर प्रमुख वैश्विक संगठन संयुक्त राष्ट्र की यह अदूरदर्शिता, लापरवाही, गैर जिम्मेवारी सर्वाधिक चिंतनीय स्थिति है, जिस पर पूरी गंभीरता और सक्रियता के साथ चिंतन मंथन कर सदस्य देशों को इस विकराल होती समस्या के समाधान हेतु किसी फलदायी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए । यहां फिर यह सवाल उठता है कि इसके लिए प्रयास कौन करे ? तो स्वाभाविक रूप से कहा जा सकता है कि इसकी शुरुआत वही देश करेगा जो आतंकवाद से त्रस्त होता रहा है या हो सकता है । जिसमें भारत भी है । अतः अब जबकि भारत एक महत्वपूर्ण वैश्विक संगठन जी 20 का अध्यक्ष है और पिछले दिनों अपने यहां आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र समिति की महत्वपूर्ण बैठकें आयोजित कर चुका है तब उसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवाद को परिभाषित कराने के साथ उसके प्रभावशाली निदान के लिए ठोस नीति और नियम बनाने पर अपनी पूरी कूटनीतिक क्षमता का सदुपयोग करना चाहिए । उसे अब यह बात बहुत साफगोई और कठोरतम शब्दों में कहनी चाहिए कि आतंकवाद अब महज औपचारिक चिंतन मनन मंथन और कोरी बतौलेबाजी की समस्या ना होकर आवश्यक रूप से त्वरित निदान की समस्या है । जिस पर जारी वैश्विक अगंभीरता और लापरवाही भविष्य में दुनिया के लिए एक बड़ी विनाशकारी भूल सिद्ध होगी । चुकि भारत खुद आतंकवाद से त्रस्त देश है अतः इसे इसके लिए ना सिर्फ खुद लगातार ऐसी आवाज उठानी चाहिए बल्कि आतंकवाद से पीड़ित और संभावित अन्य देशों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए । बेहतर होगा कि भारत इस दिशा में दुनिया से चार कदम आगे चलते हुए अपनी राष्ट्रीय एकता, अखंडता और सुरक्षा के लिए आतंकवाद को बड़ा खतरा बताते हुए ना सिर्फ आतंकवाद को परिभाषित करे बल्कि इसके विरुद्ध अपनी निर्णायक नीयत और नीति की घोषणा करते हुए वैश्विक बिरादरी के सामने यह भी स्पष्ट आग्रह करे कि आतंकवाद के विविध स्वरूपों के विरुद्ध उसके द्वारा की जाने वाली आवश्यक कार्रवाईयों में दुनिया के कोई भी देश और संगठन मानवता या मानवाधिकार की आड़ में किसी भी तरह का नकारात्मक वक्तव्य देेने और हस्तक्षेप करने की बजाय की जाने वाली कठोर कार्रवाईयों में सहयोग करें । भारत खुद भी दुनिया के किसी भी देश के द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध की जाने वाली कठोर कार्रवाई को लेकर कोई अनुचित सवाल सवाल खड़े करने की बजाय उसे अपना नैतिक और अपेक्षित सहयोग ही करेगा । सबसे बेहतर तो यह होगा कि आतंकवाद जैसी वैश्विक समस्या से मुक्ति का प्रयास वैश्विक सजगता, सक्रियता और सख्ती से किया जाए । जिसके लिए संपूर्ण विश्व को आतंकवाद के सामने डटकर खड़ा करने का काम भारत को करना चाहिए । भारत के लिए अच्छी बात यह है कि अभी उसके लिए इसके पास सही मंच और अवसर भी है और योग्य नेतृत्व भी, बस सही प्रयास की जरूरत है ।