इस बार कुछ खास तरीके से बिछाई जा रही है दिल्ली चुनावों की सियासी बिसात

This time the political chessboard for Delhi elections is being laid out in a special way

अजय कुमार

दिल्ली विधानसभा चुनावों की सियासी बिसात इस बार कुछ खास तरीके से बिछाई जा रही है। राजधानी की राजनीति में हर चुनाव के साथ कुछ नया समीकरण बनते हैं और हर बार यही सवाल उठता है कि कौन सा जाति या समुदाय सत्ता की चाबी मुहैया कराएगा। दिल्ली की सियासत में जाति और धर्म के समीकरण बेहद अहम होते हैं, जिन्हें सटीक पहचान कर ही कोई पार्टी सत्ता तक पहुंच सकती है। जहां आम आदमी पार्टी अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए विभिन्न समुदायों को साधने में जुटी है, वहीं बीजेपी और कांग्रेस भी अपनी खोई हुई जमीन पर वापस कब्जा करने के लिए काम कर रही हैं। इन सबके बीच जातीय समीकरणों की अहमियत में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि यह और मजबूत होते जा रहे हैं।

दिल्ली में चुनावी नतीजों की दिशा तय करने वाले प्रमुख फैक्टर जाति, धर्म और क्षेत्रीय समीकरण हैं। राजधानी में 70 विधानसभा सीटें हैं, जिन पर चुनावी समीकरण अलग-अलग हैं। अगर हम दिल्ली के पिछले चुनावी नतीजों पर नजर डालें, तो यह साफ दिखाई देता है कि सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने के लिए प्रमुख रूप से पूर्वांचली, पंजाबी, जाट, वैश्य, ब्राह्मण और दलित समुदाय के वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। दिल्ली के चुनावी मैदान में जातीय समीकरण इतने मज़बूत हैं कि हर पार्टी अपनी रणनीति को इन समीकरणों के हिसाब से तैयार करती है। इस बार भी यही समीकरण सत्ता की दिशा तय करेंगे।

दिल्ली की राजनीति में जातीय समीकरणों के साथ-साथ धार्मिक समीकरण भी अत्यधिक प्रभावी होते हैं। दिल्ली की कुल 81 प्रतिशत आबादी हिंदू समुदाय से आती है, जबकि मुस्लिम समुदाय का वोट बैंक करीब 12 प्रतिशत है। इसके अलावा सिख और अन्य छोटे समुदाय जैसे ईसाई और जैन भी दिल्ली में रहते हैं। दिल्ली की जातीय संरचना में पूर्वांचली समुदाय का विशेष योगदान है, जो लगभग 25 प्रतिशत मतदाता हैं। यह समुदाय दिल्ली में लगभग 17 से 18 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। किराड़ी, बुराड़ी, उत्तम नगर, संगम विहार, बादली, गोकलपुरी जैसी सीटों पर पूर्वांचली वोट अहम हैं। इस समुदाय में विभिन्न जातियों के लोग शामिल हैं, जो दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों से आए हैं। पूर्वांचली वोटरों का एक बड़ा हिस्सा इस बार आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन बीजेपी भी इस वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कोशिशें कर रही है।

पूर्वांचली समुदाय का महत्व इस बार और बढ़ गया है, क्योंकि यह समुदाय अपनी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतरा है। खासकर उत्तम नगर, बुराड़ी, और मटियाला जैसे क्षेत्रों में पूर्वांचली मतदाता की संख्या 40 प्रतिशत से अधिक है, जो चुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। यही कारण है कि आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों ही पार्टियाँ इस समुदाय के वोटों को लुभाने के लिए अपनी पूरी रणनीति बना रही हैं। दिल्ली के चुनावी माहौल में इस समुदाय की अहम भूमिका और भी ज्यादा बढ़ गई है।

इसके अलावा दिल्ली में पंजाबी समुदाय की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। पंजाबी वोट बैंक दिल्ली की राजनीति में काफी अहम भूमिका निभाता है। दिल्ली में लगभग 30 प्रतिशत आबादी पंजाबी समाज की है, जिसमें 10 प्रतिशत पंजाबी खत्री और 5 प्रतिशत सिख वोटर्स शामिल हैं। दिल्ली की कई विधानसभा सीटों पर पंजाबी समुदाय का प्रभाव देखा जाता है, खासकर विकासपुरी, राजौरी गार्डन, हरी नगर, तिलक नगर, जनकपुरी, मोती नगर, ग्रेटर कैलाश, जंगपुरा, कालका जी और रोहिणी सीटों पर पंजाबी वोट निर्णायक होते हैं। पंजाबी वोट बैंक पर हमेशा से बीजेपी का दबदबा रहा है, लेकिन अब कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी इस वोट बैंक को साधने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रही हैं।

दिल्ली के चुनावी इतिहास में एक दौर ऐसा भी था जब पंजाबी वोट बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक था। मदनलाल खुराना, विजय कुमार मल्होत्रा और केदारनाथ साहनी जैसे नेताओं के कारण बीजेपी पंजाबी वोट बैंक पर मजबूत पकड़ बना पाई थी। आज भी बीजेपी इस वोट बैंक के सहारे सत्ता में वापसी करना चाहती है, इसके लिए बीजेपी ने पंजाबी समाज से जुड़े वीरेंद्र सचदेवा को पार्टी की कमान सौंप रखी है। वहीं आम आदमी पार्टी ने पंजाबी समुदाय से जुड़े अतिशी को टिकट दिया है। इस बार पंजाबी वोटों के लिए तीव्र प्रतिस्पर्धा देखने को मिल सकती है।

दिल्ली के बाहरी इलाकों में जाट समुदाय की अहम भूमिका है। जाट समुदाय की संख्या दिल्ली में लगभग 8 प्रतिशत है और यह बाहरी दिल्ली में निर्णायक भूमिका निभाता है। दिल्ली के 364 गाँवों में से करीब 225 गाँव जाट बहुल हैं, और इनका चुनावी प्रभाव बाहरी दिल्ली की विधानसभा सीटों पर खासा है। जाट वोटरों का प्रमुख समर्थन बीजेपी को मिलता रहा है, खासकर स्व. साहेब सिंह वर्मा की वजह से, जो एक समय में बीजेपी के जाट चेहरा माने जाते थे। उनके बेटे प्रवेश सिंह वर्मा फिलहाल दिल्ली से सांसद हैं और पार्टी के जाट चेहरा माने जाते हैं। जाट समुदाय की ओर से बीजेपी को समर्थन मिलने की संभावना इस बार भी बनी हुई है, क्योंकि इस समुदाय का प्रभाव बाहरी दिल्ली की सीटों पर बहुत ज्यादा है।

दिल्ली के दलित समुदाय का भी चुनावी नतीजों पर गहरा असर पड़ता है। दिल्ली में दलितों की आबादी लगभग 17 प्रतिशत है, और इनमें जाटव, बाल्मीकि, रैगर जैसे जातियाँ शामिल हैं। दलितों के लिए 12 सीटें आरक्षित हैं, और इन सीटों पर दलित मतदाताओं की निर्णायक भूमिका होती है। करोल बाग, पटेल नगर, मोती नगर, दिल्ली कैंट, राजेंद्र नगर जैसी सीटों पर दलित समुदाय का वोट काफी प्रभावी होता है। कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी सभी दल इस समुदाय को लुभाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं, क्योंकि दलित समुदाय का वोट निर्णायक साबित हो सकता है।

ब्राह्मण और वैश्य समाज भी दिल्ली की राजनीति में अहम भूमिका निभाते हैं। दिल्ली में ब्राह्मण वोटर्स की संख्या लगभग 10 प्रतिशत है, और वैश्य समाज की संख्या भी लगभग 8 प्रतिशत है। इन दोनों समुदायों के वोट दिल्ली की चुनावी राजनीति में बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही इन समुदायों को अपने पक्ष में लाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। विशेष रूप से ब्राह्मण समाज का वोट बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण होता है, जबकि वैश्य समाज का वोट इस समय आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ा हुआ है।

दिल्ली में मुस्लिम समुदाय की भी अपनी अहम भूमिका है। मुस्लिम समुदाय दिल्ली में लगभग 12 प्रतिशत है और यह समुदाय कुछ सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। बल्लीमारान, चांदनी चौक, मटिया महल, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, ओखला, त्रिलोकपुरी जैसी सीटों पर मुस्लिम वोटरों का प्रभाव ज्यादा है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए मुस्लिम उम्मीदवार उतारती रही हैं, और बीजेपी भी इस समुदाय के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश करती रहती है।

इन सभी जातीय, धार्मिक और क्षेत्रीय समीकरणों के बीच दिल्ली विधानसभा चुनाव एक बार फिर सियासी तापमान को बढ़ा रहा है। यह तय करना मुश्किल है कि किस पार्टी को किस समुदाय का कितना समर्थन मिलेगा, लेकिन यह सच है कि जातीय समीकरण चुनावों के परिणाम पर महत्वपूर्ण असर डालते हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सी पार्टी इस बार इन समीकरणों का सही उपयोग कर सत्ता तक पहुंचने में कामयाब होती है।