
फिरआयेगा गौरी
खून में उबाल हो, जुबां में ज्वाल हो,
फिर क्यों हर बार समझौता, हर बार सवाल हो?
यह वक़्त है ललकारने का, न कि मौन में घुलने का,
इतिहास का पलड़ा उन पर है, जो सर कटाने को तैयार हो।
फिर से गूंजे वो गाथाएँ, जो आज खंडहरों में दबी हैं,
फिर से उठे वो मचान, जो गैरों की चालों से थमी हैं,
न माफ़ी, न समझौता, न झुके यह भुजाएँ,
जो शत्रु के सम्मुख मौन, वह केवल इतिहास में जमी हैं।
जिसने हर बार माफ़ किया, वह पाषाण में कैद हुआ,
जिसने हर बार हुंकार भरी, वही अमरता को भेद हुआ,
ये समझना होगा, कब तलक सहते रहोगे हर वार को,
वरना फिर लौटेगा कोई गौरी, जलाएगा सम्मान की दीवार को।
इतिहास बार-बार यही बताएगा, कि जो सोता है अपने वैभव पर,
वो सिर्फ़ स्मारकों में रह जाता है, और यही हश्र फिर से दोहराएगा।
रक्त में उबाल हो, पराक्रम का विस्फोट हो,
हर कदम पर स्वाभिमान का आघात हो,न झुके सिर,
न रुके कदम, न थमे हुंकार,फिर से उठे वो भारत,
जो कभी जगत का आधार हो।
माफ़ी की सौगातें बंद करो, उठाओ तलवार,
जो शत्रु के सम्मुख मौन, वो केवल इतिहास में जमी हैं,
वरना फिर आयेगा कोई गौरी, जलाएगा सम्मान की दीवार को।
-डॉ. सत्यवान सौरभ