बदायूं और हाथरस कांड के समय हंगामा करने वाले लखीमपुर की घटना पर इस लिए चुप हैं

संजय सक्सेना

लखीमपुर खीरी में दो सगी बहनों के साथ बलात्कार फिर उनकी हत्या कर पेड़ पर उनके शव टांगने की घटना से प्रदेश में कोहराम मच गया है। योगी सरकार भी कटघरे में खड़ी नजर आ रही हैएलेकिन इस शर्मनाक घटना पर विपक्ष चुप्पी साधे हुए है। न कहीं 28 मई 2014 को बदायूॅ में दो लड़कियों के शव आम के एक पेड़ पर लटके मिले के बाद विपक्ष ने जो हंगामा बरपाया थाएवैसा कहीं हंगाम दिख रहा है और न ही 14 सितंबर 2020 को हाथरस में एक दलित लड़की के साथ बलात्कार और उसकी हत्या की कोशिश के बाद विपक्ष खासकर कांग्रेस और राहुल गांधी एवं प्रियंका वाड्रा गांधी ने जो हंगामा ने कांड के बाद होने वाला हो हल्ला मचा हुआ है। और न ही हाथरस कांड जैसा हंगामा खड़ा किया थाएवह हंगामा लखीमपुर कांड के बाद में दिखाई दे रहा है। लखीमपुर में दो सगी दलित बहनों के साथ बलात्कार और हत्या के बीच उक्त दो घटनाओं का जिक्र इस लिए जरूरी हो गया था जिसे आम और खास को पता चल सके कि यूपी पुलिस महिला सुरक्षा को लेकर चाहें जितने बड़े दावे कर ले हालात असल में वैसे ही हैंएजैसे योगी से पहले की सरकारों में हुआ करते थे। सबसे दुखद यह है कि लड़कियों या फिर महिलाओं के साथ होेने वाली किसी अप्रिय घटना के समय पुलिस का पीड़ित और दुखी परिवार से किया गया दुर्व्यवहार ज्यादातर मामलों में एक जैसा रहता है।खासकर बलात्कार के मामलों में पुलिस गुनाहागार को पकड़ने की बजाए पीड़ित लड़कीध्महिला को ही शक की नजर से देखती है। लखीमपुर कांड की बात करें तो यहां भी पुलिस पर शव को जबरदस्ती अपने कब्जे में लेने का आरोप है। बताते हैं कि मौके पर पहुंची पुलिसए शव को कपड़े में लपेटकर जबरन घटना स्थल से लेकर चली गई। जिससे परिवार के लोग अपनी दोनों मृतक बेटियों को ढंग से देख भी न सके। ऐसा ही कुछ बदायूं ओर हाथरस कांड के समय भी हुआ था।

करीब आठ वर्ष पूर्व 2014 में बदायूं के कटरा इलाके में दो लड़कियों के शव आम के पेड़ से झूलते मिले थे। रिश्ते में दोनों चचेरी बहनें थीं और नाबालिग थीं। दोनों लड़कियां शव मिलने से एक दिन पहले शौच के लिए गईं थींए जिसके बाद वो लापता हो गईं। घरवाले खोजने के लिए निकलेए पुलिस के पास गएए लेकिन निराशा हाथ लगी। अगली सुबह दोनों के शव पेड़ पर झूलते मिले।रेप के बाद हत्या की बात कही गई। पुलिस की कार्रवाई सवालों के घेरे में रही और उन्हें आरोपियों के साथ मिले होने की बात भी कही गई।इस मामले को लेकर कई दावे हुए। उस समय राज्य में सपा की सरकार थी। हंगामा जब बहुत बरपा तो अखिलेश सरकार ने एसआईटी जांच का गठन कर दिया। रेप की बात आरोपियों ने स्वीकार ली। साथ ही पुलिस के कुछ जवान भी एसआईटी की रडार पर आए। इसी बीच मामले को लेकर हंगामा होता रहाए दिल्ली से लेकर लखनऊ तक रैलियांए प्रेस कांफ्रेंसए विरोध प्रदर्शन होते रहे। इसके बाद अखिलेश सरकार ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। सीबीआई एक अलग ही ऐंगल लेकर आई कि रेप नहीं हुआ है। लड़कियों की हत्या भी नहीं की गईए लड़कियों ने खुदकुशी की थी। आरोपी जमानत पर रिहा हो गए और कोर्ट में मामला लम्बित है।

इसी तरह से सितंबर 2020 को हाथरस में एक दर्दनाक बलात्कार कांड समाने आया। मामला कुछ इस प्रकार था। उस दिन बलात्कार की शिकार युवती अपनी मां और बड़े भाई के साथ प्रातकालः एक खेत में घास काटने गए थे। थोड़ी देर घास काटने कुछ मिनट बाद पीड़िता ने अपनी मां से कहा कि वह थक गई है। मां घास काटते.काटते बेटी से करीब पचास मीटर दूर चली गईं। कुछ मिनट बाद जब मॉ वापस आई तो बेटी वहां नहीं थी। मॉ ने आसपास देखा तो बाजरे के खेत के पास पीड़िता की चप्पल दिखी। जब वह खेत में घुसी तो बेटी को जमीन पर पड़े हुए देखा। थोड़ी ही देर में मुख्य गवाह छोटू भी घटनास्थल पर पहुंच गया। पीड़िता की मां ने उससे भाई को बुलाने के लिए कहा। पीड़िता का भाई मौके पर पहुंचा और उसे कंधे पर उठाकर पास के पुलिस स्टेशन चांदपा ले गया। वहां पीड़िता ने बातया कि उसके साथ कुछ लड़कों ने जबरदस्ती करने की कोशिश की और मना करने पर दुपट्टे से गला दबा दिया। मां का भी बयान वही था जो मृतका ने कहा था। दोनों ने एक ही शख्स का नाम लिया था। जिसका नाम संदीप थाए लेकिन अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में जब पीड़िता ने बयान दिया तो उसने कहा कि उसके साथ गलत काम किया गया।पीड़िता के बयान के बाद उसके भाई का बयान भी सामने आया। भाई का कहना था कि बहन के साथ दुष्कर्म और मारने की कोशिश की गई थी। आरोप लगा कि पुलिस ने एफआईआर लिखने में आठ दिन की देरी की। इस बीचए पीड़िता की हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती गई। उसे अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। एक हफ्ते के इलाज के बाद उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गयाए जहां उसकी मौत हो गई। यह मामला तब और बड़ा हो गया जब पुलिस ने परिवार को शव नहीं सौंपा और उसका अंतिम संस्कार कर दिया। पुलिस के पीड़ित परिवार के साथ सौतेले व्यवहार से पूरे देश में यूपी पुलिस की जमकर थू.थू हुई। विपक्ष ने जमकर योगी सरकार के खिलाफ दलित कार्ड खेलाएमकसद 2022 के चुनाव में फायदा उठाना थाएलेकिन विपक्ष हाथ मलता रह गया और योगी पुनः सत्ता पर काबिज हो गए। हाथरस कांड में पीड़ित परिवार की दो साल बाद भी सीआरपीएफ के जवान सुरक्षा कर रहे हैं। परिजनों की मांग है कि आवास और नौकरी का जो सरकारी वादा किया गया था वह पूरा किया जाए। मामले के चारों आरोपी अलीगढ़ जेल में निरुद्ध हैं। इस मामले का मुकदमा कोर्ट में चल रहा है।

सवाल यह है कि बदायूं और हाथरस की घटना की तरह लखीमपुर खीरी में दो सगी बहनों के साथ बलात्कार और उसके बाद उसकी हत्या पर विपक्ष चुप्पी क्यों साधे हुए है। इसकी एक ही वजह है वोट बैंक की सियासत बदांयू और हाथरस को उछालते समय सपा हो या कांग्रेस बसपा को दलित वोट बैंक मजबूत होता नजर आ रहा थाएजबकि लखीमपुर खीरी में दो दलित लड़कियों से बलात्कार और उसके बाद उनकी हत्या करने का आरोप अल्पसंख्यक समुदाय के लड़कों पर लगा है।बस इसी लिए विपक्ष के मुंह पर ताले लग गये हैं। वहीं बसपा सुपीमों मायावती भी जो मुस्लिम वोटों को अपने पाले में खींचने के लिए हाथ.पैर मार रही हैंएवह भी विरोध के नाम पर औपचारिकता निभा रही हैंएयह तब है जबकि दलित बसपा का कोर वोटर माना जाता है। बहरहालए लखीमपुर की इस घटना से योगी सरकार के समय में भी अखिलेश राज की यादें ताजा हो गईं हैं। बीजेपी भले ही कानून.व्यवस्था को लेकर कितना भी दावा कर लेए लेकिन लखीमपुरी जैसी घटना सरकार और पुलिस पर सवालिया निशान जरूर खड़ा करती है। फिलहाल इस मामले में छह आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। मामला फास्ट टैªक कोर्ट में जा सकता है और इसे जघन्य अपराध की श्रेणी में रखकर आरोपियों को फांसी की सजा भी सुनाई जा सकती है।