
इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के भ्रष्ट पुलिसकर्मियों ने साल 2024 में वसूली/रिश्वतखोरी के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। साल 2024 में तीस भ्रष्ट पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया। पहली बार इतनी बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया है। जबकि साल 2023 में 10-12 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया था। इन आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2024 में दिल्ली पुलिस में भ्रष्टाचार के मामलों में तीन गुना वृद्धि हुई है। यह बहुत गंभीर और चिंताजनक स्थिति है।
सीबीआई ने साल 2024 में (नवंबर तक) रिकार्ड तोड़ 24 से ज्यादा भ्रष्ट पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया। सीबीआई ने नंवबर 2024 तक 30 से ज्यादा भ्रष्ट पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ 20 से ज्यादा मामले दर्ज किए। सीबीआई ने साल 2023 में 10-12 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया था।
दिल्ली पुलिस की विजिलेंस यूनिट ने भी नवंबर 2024 तक पांच पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया।
इस तरह 2024 में लगभग 30 भ्रष्ट पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया। यह संख्या तीस से ज्यादा भी हो सकती है क्योंकि कई मामलों में पुलिसकर्मी सीबीआई के छापे के दौरान भागने में सफल हो गए। जिन्हें बाद में गिरफ्तार किया गया होगा ।
पुलिसकर्मियों के लगातार पकड़े जाने के बावजूद भ्रष्टाचार थम नहीं रहा है। ये तो सिर्फ भ्रष्टाचार में गिरफ्तार पुलिसकर्मियों के आंकड़े हैं। इसके अलावा अपराध में शामिल पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी के अनेक मामले साल 2024 में भी सामने आए।
कमिश्नर नाकाम-
भ्रष्टाचार के मामलों में जबरदस्त वृद्धि से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में नाकाम साबित हो रहे पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा और आईपीएस अफसरों की काबलियत और भूमिका पर भी सवालिया निशान लग जाता है।
आईपीएस जिम्मेदार-
पुलिस में इस समय भ्रष्टाचार चरम पर है। इसके लिए आईपीएस अधिकारी जिम्मेदार है। अगर वाकई पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है तो आईपीएस अफसरों को सबसे पहले एसएचओ से फटीक कराना बंद करना चाहिए। जाहिर सी बात है कि अगर एसएचओ, आईपीएस के ऊपर एक रुपया भी खर्च करेगा, तो अपने लिए तो उसे सौ रुपए वसूलने की छूट मिल जाती है। इसी वजह से भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।
सच्चाई यह है कि एसएचओ से अपने लिए या निजी कार्यक्रम पर पैसा खर्च करवाने या सामान / सुविधा लेने वाला आईपीएस ईमानदार हो ही नहीं सकता। काबिल/ ईमानदार आईपीएस तो सिर्फ़ अपने काम से काम रखता है। उसका तो काम ही बोलता है।
जब आईपीएस ही ईमानदार नहीं होता, तो थाना स्तर पर भ्रष्टाचारियों की तो मौज हो जाती है। आईपीएस अगर ईमानदार हो, तो उसे ईमानदार नज़र आना जरूरी है।
वैसे अपराध के सभी मामलों को सही दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज करने वाले आईपीएस को भी ईमानदार नहीं माना जा सकता है। अपराध के आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करने की परंपरा जारी है। जबकि अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण करने का सिर्फ और सिर्फ एक ही रास्ता है कि पुलिस अपराध के सभी मामलों को सही दर्ज करे।
डाल पर डाल भ्रष्टाचार का बसेरा-
पुलिस आपराधिक मामलों के आरोपी से रिश्वत लेना तो शायद अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती ही है। लेकिन कुछ पुलिस वाले तो शिकायतकर्ता/ पीड़ित व्यक्ति से भी पैसा वसूलने में जुटे रहते हैंं। थानों में पुलिस शिकायतकर्ता का शिकायत पत्र भी आसानी से रिसीव नहीं करती।
पुलिस सबसे ज्यादा वसूली झूठे मामले में फंसाने या गिरफ्तार करने की धमकी दे कर करती है। पुलिस को रिश्वत दिए बिना कोई अपना घर भी नहीं बना सकता। घर तुड़वा देने की या निर्माण कार्य रोक देने की धमकी दे कर भी सबसे ज्यादा वसूली की जाती है। शिकायत पर कार्रवाई करने और कार्रवाई नहीं करने के एवज़ में यानी दोनों सूरत में पुलिस द्वारा उगाही की जाती है।
जमानत कराने में मदद करने या एफआईआर रद्द कराने के लिए कोर्ट में अनुकूल रिपोर्ट देने देने के लिए भी पुलिस रिश्वत लेती है।
बिना रिश्वत लिए जांच अधिकारी सुपरदारी का काम भी नहीं करता। यहीं नहीं, थाने का मालखाना इंचार्ज भी मालिक को उसका सामान सौंपने की एवज में पैसे वसूलता है।
पुलिसकर्मियों की सांठगांठ से ही इलाके में अवैध शराब, नशीली पदार्थ बिकते हैं। सट्टेबाजी का धंधा भी पुलिस की मिलीभगत के बिना नहीं होता है। मालवाहक वाहनों और सवारी गाड़ियों वैन/बस से ट्रैफिक पुलिस द्वारा वसूली भी किसी से छिपी हुई नहीं है। अवैध पार्किंग, सड़कों पर अतिक्रमण करके किए जाने वाले काम धंधे, अवैध निर्माण, विवादित संपत्ति ,पैसे के लेन देन के विवाद के मामले आदि भी पुलिस की कमाई का सबसे बड़ा जरिया माने जाते हैं। इसी वजह से पुलिस में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। कमिश्नर अगर वाकई पुलिस में कोई सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें इस जड़ पर ही वार करना चाहिए।
वैसे तो पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार की सच्चाई जग जाहिर है लेकिन पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी से यह बात एक बार फिर से साबित भी हो गई है।