भारतीय मुसलमानों पर ‘तिहाड़ी प्रवचन ‘

तनवीर जाफ़री

जिस टी वी चैनल ने ‘फ़तेह का फ़तवा’ नामक कार्यक्रम 2017 में प्रसारित किया था और उस कार्यक्रम का मुख्य ऐंकर पाकिस्तान मूल के कनाडाई लेखक तारिक फ़तेह को बनाकर इस्लाम पर तरह तरह के सच्चे-झूठे आरोप मढ़कर इस्लाम को बदनाम करने व साथ ही भारतीय हिंदू-मुस्लिम समाज को बांटने का प्रयास किया था उसी दौर में उसी टी वी चैनल के ऐंकर के रूप में एक ‘नफ़रती पत्रकार ‘ ने समाज में केवल नफ़रत परोस कर स्वयं को अतिवादियों के चाहते के रूप में स्थापित कर लिया था । इनका पूरा नाम जानने के लिये गूगल में केवल ‘तिहाड़ी ‘ शब्द टाइप करें आपको इनकी हक़ीक़त लेख ,समाचार और वीडीओ आदि सभी रूप में देखने,सुनने व पढ़ने को मिल जायेगी। झूठे समाचार देने,सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने,अपने ट्वीट डिलीट करने,अपने ही प्रसारित समाचारों का खंडन करने,पत्रकारिता को कलंकित करने से लेकर रिश्वत लेने और रिश्वत आरोपी के रूप में जेल जाने आदि तक में इनकी पूरी दक्षता है। टाई सूट वाले इस स्टूडियो पत्रकार को उच्च स्तरीय सुरक्षा मिली हुई है। आज किन्हीं कारणों से अपने उस पुराने टीवी चैनल को छोड़ कर अन्य चैनल में अपने उन्हीं विध्वंसक इरादों के साथ ‘विभाजनकारी प्रवचन ‘ देते फिर रहे हैं।

भाजपा का आई टी सेल इनकी ऐसी झूठी,मनगढ़ंत और नफ़रत फैलाने वाली संक्षिप्त क्लिप को अपने राष्ट्रव्यापी ट्रोलर्स नेटवर्क में पोस्ट करता है। और झूठ और नफ़रत का यह बाज़ार इन जैसे ‘तिहाड़ियों’ के झूठे व वैमनस्यपूर्ण प्रवचन से और भी ज़हरीला होता जा रहा है। पिछले दिनों ‘ तिहाड़ी’ की ऐसी ही एक क्लिप ‘वाट्सएप यूनिवर्सिटी’ के माध्यम से मुझ तक भी पहुंची। 5 मिनट 12 सेकेंड की इस क्लिप में ‘तिहाड़ी ‘ की शुरूआती टिपण्णी इन शब्दों में थी —-‘आज जिस तरह से भारत के बहुत सारे मुसलमान अपने देश का साथ देने के बजाय भारत का विरोध करने वाले मुस्लिम देशों का साथ दे रहे हैं उसका आभास देश के संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को आज से 77 वर्ष पहले ही हो गया था। इसलिये आज आप हमारी यह बात ज़रूर ध्यान से सुनियेगा क्यूंकि जो आज आपके दिमाग़ में चल रहा है वह डा भीम राव आंबेडकर के दिमाग़ में 77 साल पहले चल रहा था’। इस टिप्पणी के बाद तिहाड़ी ने डॉ अंबेडकर द्वारा वर्ष 1945 में ‘पाकिस्तान और भारत का विभाजन’ नामक लिखी पुस्तक के कुछ अंशों का ज़िक्र करते हुये और डॉ आंबेडकर के मुस्लिम जगत के बारे में व्यक्त विचारों में अपने ज़हरीले शब्दों का तड़का लगाते हुये यह साबित करने के लिये अपना पूरा ज़ोर लगा दिया कि भारतीय मुसलमान भरोसे के लायक़ नहीं। इनके लिये जिहाद पहले है,इनका भाईचारा केवल मुसलमानों के लिए है अन्य के लिये नहीं। भारत के मुसलमान भारत को इस्लाम का नहीं,युद्ध का घर मानते हैं और भारत के मुसलमान कभी भी अपने देश के लिये ईमानदार साबित नहीं होंगे।अगर विदेशी मुस्लिम ताक़तें जिहाद की घोषणा करना चाहती हैं तो इसमें भारत के मुसलमान उनकी सहायता भी कर सकते हैं। भारत के मुसलमान सिर्फ़ जिहाद की घोषणा ही नहीं कर सकते बल्कि उसकी सफलता के लिये विदेशी इस्लामिक ताक़तों की मदद भी ले सकते हैं।’ आदि आदि। बीच बीच में ‘तिहाड़ी’ यह सफ़ाई भी देते रहे कि -‘भारत के मुसलमानों के लिये यह विचार डॉ आंबेडकर के थे ,हमारे नहीं ‘। डॉ अंबेडकर की इसी ‘पाकिस्तान और भारत का विभाजन’ नामक पुस्तक का हवाला देते हुये तिहाड़ी ने आगे बताया कि -‘मुसलमानों के भाईचारे का फ़ायदा सिर्फ़ उनके अपने लोगों को ही मिलता है और जो ग़ैर मुस्लिम हैं यानी हिन्दू हैं उनके लिये सिर्फ़ घृणा और शत्रुता ही बची है। मुसलमानों की वफ़ादारी उस देश के लिये नहीं होती जहाँ वह रहते हैं ,बल्कि उनकी वफ़ादारी उस धर्म के लिये होती है जिसका वे पालन करते हैं।

और मौजूदा परिस्थिति में अंबेडकर की यह बातें बिल्कुल फ़िट बैठती हैं। यही बात भारत के मुसलमानों के साथ भी है वे शायद इसे अपनी मातृभूमि नहीं मानते और हमसे हज़ारों किलोमीटर दूर जो मुसलमान बैठे हैं उन्हें अपना भाई समझते हैं।’ फिर तिहाड़ी अपनी टिप्पणी में जोड़ते हैं – ये इतिहास है ,यह सिद्धांत है और इसीलिये मैंने आपसे कहा कि अब यह एक धर्मयुद्ध बन चुका है -यह धर्म 57 देशों के 190 करोड़ मुसलमानों को एकजुट कर रहा है लेकिन उसी आधार पर यदि हम भारत के सौ करोड़ हिन्दुओं की बात करें तो वह आज भी बंटे हुये है क्यूंकि उनका धर्म उन्हें एक रहने पर मजबूर नहीं करता’।

तिहाड़ी का यह ‘शोध’ उनकी ‘ज्ञान वर्धक ‘ टिप्पणी के साथ आज के उस दौर में वायरल हो रहा है जबकि इज़राईल, फ़िलिस्तीन पर हमलावर है और दक्षिणपंथियों को छोड़कर पूरा विश्व इज़राईली नरसंहार की घोर आलोचना कर रहा है। ऐसे में भारतीय मुसलमान ही नहीं बल्कि लगभग पूरा विश्व व भारतीय विपक्ष फ़िलिस्तीनियों के प्रति हमदर्दी जता रहा है। ख़ुद भारत सरकार भी फ़िलिस्तीनियों के प्रति हमदर्दी का इज़हार करते हुये वहां सहायता सामग्री भेज चुकी है। रहा सवाल डॉ आंबेडकर द्वारा इस्लाम धर्म पर उनके विचार व्यक्त करने का तो वे एक स्वतंत्र विचारक थे। उन्हें अपने अध्ययन के अनुसार अपनी बात कहने या निष्कर्ष निकालने का पूरा हक़ था । दुनिया का कोई भी धर्म ऐसा नहीं जिसमें आलोचना की गुंजाईश न हो। परन्तु ‘मिस्टर तिहाड़ी ‘ अपनी नमक मिर्च वाली टिपण्णी के माध्यम से मुसलमानों ख़ासकर भारतीय मुसलमानों के प्रति जो नकारात्मक नरेटिव गढ़ना चाहते हैं वह ज़रूर पूरी तरह से एक नियोजित शरारतपूर्ण राजनैतिक साज़िश प्रतीत होता है।

तिहाड़ी उस देश के मुसलमानों के प्रति संदेह पैदा कर रहे हैं जिस देश में बहादुर शाह ज़फ़र,टीपू सुल्तान,बदरुद्दीन तैयबजी, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, हकीम अजमल ख़ान , रफ़ी अहमद क़िदवई ,ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान , मौलाना हुसैन अहमद मदनी,मौलाना मज़हरूल हक़,अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान, बेरिस्टर आसिफ़ अली, जनरल शाहनवाज़ ख़ान , डॉ ज़ाकिर हुसैन, डॉ फ़ख़रुद्दीन अली अहमद, यूसुफ़ मेहर अली जैसे अनेकानेक स्वतंत्रता सेनानी दिये ? भारतीय सेना के प्रमुख मुस्लिम नायकों में ब्रिगेडियर उस्मान जिन्होंने 1948 में कश्मीर की रक्षा करते हुये शहादत पाई और महावीर चक्र प्राप्त किया। इसी तरह परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद जिनपर भारतीय सेना को गर्व है इन नायकों को तो ‘तिहाड़ी थेऊरी ‘ के अनुसार हिंदुस्तान नहीं बल्कि पाकिस्तान की तरफ़ से भारत के विरुद्ध ‘जिहाद ‘ करना चाहिये क्यूंकि पाकिस्तान एक मुस्लिम बाहुल्य देश है? भारत रत्न डॉ कलाम की राष्ट्र के प्रति सेवाएं भी फिर तो इस तिहाड़ी ‘पत्थरकार ‘ की नज़रों में नगण्य हैं ?’मुसलमानों के भाईचारे का जहाँ तक सवाल है तो वह हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ान ही थे जिन्होंने 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को 5,000 किलो सोना राष्ट्रीय रक्षा कोष में 5 हज़ार किलो सोना दान में दिया था। आज भी देश का कोई सबसे बड़ा दानी उद्योगपति है तो वह अज़ीम प्रेमजी हैं।

देश को तो दरअसल इन जैसे ज़हर फैलाने वाले स्वयंभू स्टूडियो पत्रकारों से बचने की ज़रुरत है। जो डॉ आंबेडकर का नाम लेकर अपना एजेंडा प्रसारित करते हैं। डॉ आंबेडकर ने इस्लाम धर्म के बारे में क्या कहा इससे बड़ा सवाल है कि उन्होंने हिन्दू धर्म का त्याग क्यों किया ? उनकी हिन्दू धर्म त्यागने के समय जो प्रसिद्ध 22 प्रतिज्ञाएँ थीं वह क्या थीं और क्यों थीं ? उन्होंने किन कारणों से मनुस्मृति को जलाकर अपना विरोध व्यक्त किया था ? रहा सवाल मुस्लिम जगत की एकता का ,तो यह तो ख़ुद मुसलमानों के लिये दूर की कौड़ी है। आज पूरे विश्व में सबसे अधिक मुसलमान देश ही मुस्लिम देशों से या तो लड़ रहे हैं या एक दूसरे के विरुद्ध साज़िश का हिस्सा हैं। भारतीय मुसलमसानों की वफ़ादारी के सुबूत पोर्टब्लेयर की जेल में पत्थरों पर खुदे सैकड़ों नामों और इंडिया गेट पर पत्थरों पर उकेरे नामों से समझा जा सकता है। अंबेडकर के नाम पर अपना अर्धज्ञानपूर्ण विध्वंसकारी फ़लसफ़ा बघारना भारतीय मुसलमानों पर ‘तिहाड़ी प्रवचन ‘ के सिवा और कुछ नहीं।