शिक्षा की अलख जगाएं रखने और गुरु की रक्षा के लिए आदिवासी वीर बालिका काली बाई ने अपने सीने पर अंग्रेजों की गोली खाई

  • वीर बाला काली बाई के शहादत दिवस 19 जून को विशेष
  • शहादत की याद में दिल्ली के जनपथ पर होगा नाटक का मंचन

नीति गोपेंद्र भट्ट

दक्षिणी राजस्थान के गुजरात से सटे आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में आज से 75 साल पहले शिक्षा के लिए एक ऐसी अलख जगी और क्रान्ति हुई जो कि इतिहास में आज भी अमर और बेजोड़ है ।

अंग्रेजी हकूमत से देश को मिली आज़ादी से ठीक पहलें 19 जून 1947 को डूंगरपुर के आदिवासी इलाक़े में एक ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई जिसमें रियासत के रास्ता पाल गाँव की एक बहादुर आदिवासी बालिका काली बाई ने अपने गुरु सेंगा भाई और पाठशाला संचालक नाना भाई खांट की रक्षा के लिए अपने सीने पर अंग्रेजों की गोली खाकर आदिवासी इलाकों में शिक्षा की कभी नहीं बुझने वाली अलख जगाई।

15 अगस्त 1947 से पहले पूरे भारत में आजादी की ज़बर्दस्त जंग चल रही थी।इसके लिए भारत के कई वीर सपूतों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। आज़ादी की जंग से राजपूताना की डूंगरपुर रियासत भी अछूती नहीं थी।

इस दरम्यान राजपूताना के दक्षिणांचल वागड़ क्षेत्र के आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में अंग्रेजों के साथ-साथ शिक्षा की आजादी के लिए भी एक जंग चल रही थी। इसके लिए राजस्थान सेवा संघ के माणिक्य लाल वर्मा,वागड़ गाँधी भोगी लाल पण्ड्या और वागड़ के युवा तुर्क लोह पुरुष हरिदेव जोशी (कालान्तर में राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहें) आदि अंग्रेजों और तत्कालीन रियासत से संघर्ष करते हुए लोहा ले रहें थे,लेकिन इस दौरान हुई एक ऐसी अप्रिय घटना हुई जिसमें एक आदिवासी बाला काली बाई को अपने प्राण न्योछावर करने पड़े।

आदिवासी इलाकों में शिक्षा की देवी के नाम से जानी जाने वाली काली बाई के जीवन और उनके बलिदान की कहानी अद्भुत और प्रेरक है। वीरबाला कालीबाई का जन्म वर्ष 1936 में डूंगरपुर रियासत के रास्तापाल गांव में एक साधारण गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। उस समय अंग्रेजों का शासन था और डूंगरपुर रियासत के अन्तिम शासक महारावल लक्ष्मणसिंह (बाद में राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष रहें) वहाँ के राजा थे । महारावल स्वयं शिक्षा प्रेमी और प्रगतिशील विचारों के लोकप्रिय राजा थे । उन्होंने रियासत में विकास के कई काम किए और अनेक स्कूल-अस्पताल खुलवायें एवं मेवाड़ से वागड़ में आयें जाने माने स्वतंत्रता सैनानी माणिक्य लाल वर्मा को सेवा संघ के स्कूल खोलने के लिए वित्तीय सहायता भी की।साथ ही डूंगरपुर के महारावल हाई स्कूल में बनारस से अच्छे शिक्षक भी लायें, लेकिन अंग्रेजी रेजीडेंट आदिवासी इलाक़ों में शिक्षा के विरोधी थे और तत्कालीन रियासत और महारावल के छोटे भाई दीवान (रियासत के प्रधानमंत्री) की ज़िम्मेदारी सम्भाल रहें वीरभद्र सिंह उनका हूकम मानने को मजबूर थे। राजस्थान सेवा संघ संस्था ने वागड़ में शिक्षा का प्रचार प्रसार करते हुए डूंगरपुर के रास्तापाल गाँव में एक पाठशाला खोली जो अंग्रेज रेजीडेंट को नागवार गुजरी और 19 जून 1947 को डूंगरपुर रियासत के सैनिक और अंग्रेज हथियार लेकर रास्पाताल गांव में उस पाठशाला को बंद कराने पंहुच गए।पाठशाला में शिक्षा संचालक नाना भाई खांट और अध्यापक सेंगा भाई ने स्कूल बन्द करने से इंकार कर दिया।दोनों ने पाठशाला बंद करने से मना कर दिया, जिस पर झगड़ा बढ़ गया और नाना भाई अंग्रेजों की बंदूक के हत्थों की मार और गोली लगने से मारे गये। इसके बाद अंग्रेज सैनिक शिक्षक सेंगा भाई को भी जीप के पीछे रस्सी से बांध कर घसीटने लगे। इस दौरान गाँव के भोले भाले किसी भी व्यक्ति को उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं हुई, लेकिन जीप जब कुछ दूरी पर पंहुची तो सेंगा भाई की शिष्या 11 वर्षीय काली बाई भील ने अपने गुरु को बचाने के लिए घास काटने वाली दरांती से जीप की रस्सी काट दी। वहाँ मौजूद सभी लोग हैरान थे कि अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत एक नन्ही सी बालिका में कैसे आई? बालिका का यह दुस्साहस सैनिकों को नागवार गुजरा और उन्होंने नन्ही बालिका पर गोली चला दी, जिससे वह लहूलुहान हो गई और बाद में उसकी मौत हो गई।

शिक्षा के लिए नानाभाई खांट, शिक्षक सेंगा भाई और वीर बाला काली बाई के इस बलिदान को आज भी यहाँ श्रद्धा के साथ याद किया जाता है।

साथ ही प्रदेश में बनी कांग्रेसऔर भाजपा सरकारों ने भी इस कालजयी घटना को सदियों तक याद रखने और भावी पीढ़ी को शिक्षा का महत्व समझाने और प्रेरित करने के लिए रास्तापाल गांव के सरकारी स्कूल का नाम काली बाई के नाम से किया हैं। वहीं डूंगरपुर जिला मुख्यालय पर काली बाई कन्या महाविद्यालय, डूंगरपुर शहर की तहसील के सामने काली बाई नाना भाई चौराहा और गेप सागर झील से सटा नाना भाई पार्क बनाकर उनकी प्रतिमाएं स्थापित की हैं।कालान्तर में वसुंधरा राजे सरकार ने शहर से सटे मांडवा खपारड़ा गांव में करोड़ों की लागत से काली बाई पैनोरमा का निर्माण भी कराया है।इस पैनोरमा में काली बाई की जीवनी और उनके बलिदान से जुड़ी पूरी कहानी शिलालेखों और प्रदर्शनी के माध्यम से प्रदर्शित की हैं। इसी तरह अशोक गहलोत की सरकार ने भी आदिवासी समाज मे शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आदिवासी बालिकाओं की स्कूटी योजना एवं स्कॉलरशिप योजना में बजट मंज़ूर किया है जिसका फायदा यहां के आदिवासी विद्यार्थियों को मिल रहा है।

बलिदान से जगाई शिक्षा की ज्योत

काली बाई के बलिदान से आदिवासी अंचल डूंगरपुर में शिक्षा ऐसी ज्योत जली कि उसके उजाले में आज हजारों-लाखों आदिवासी युवा शिक्षा अर्जित कर अपना भविष्य बना रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक आज डूंगरपुर जिले में आदिवासी समाज से हज़ारों शिक्षक, सेकडों डॉक्टर, प्रशासनिक अधिकारी और हजारों की संख्या में सरकारी कर्मचारी कार्यरत हैं और उनके सर्वांगीण विकास का यह कारवां लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

जनपथ पर होगा नाटक का मंचन

वीर बाला काली बाई के शहादत की याद में दिल्ली की एक संस्था ‘उड़ान’-द सेंटर ऑफ थिएटर आर्ट एंड चाइल्ड डेवलपमेंट 25 जून शनिवार को नई दिल्ली के जनपथ पर एक नाटक का मंचन करेगा।