
- देश को बाहर से नहीं, भीतर से खतरा है। जब कोई सुरक्षा गार्ड, छात्र या यूट्यूबर चंद रुपयों या झूठे डिजिटल रिश्तों के लिए दुश्मन का एजेंट बन जाए, तो सवाल सिर्फ सुरक्षा तंत्र का नहीं, हमारी सामाजिक चेतना का है।
- आईएसआई से जुड़े जासूसों की हालिया गिरफ्तारी बताती है कि दुश्मन अब बम या गोली से नहीं, मोबाइल और मैसेज से युद्ध लड़ रहा है। कुछ फोटो, कुछ जानकारी, और एक झूठा रिश्ता – यही आज देशद्रोह की नई परिभाषा बन गई है।
- क्या हमारी शिक्षा इतनी खोखली हो गई है कि राष्ट्रभक्ति बिक रही है? क्या बेरोजगारी ने युवाओं को इतना तोड़ दिया है कि वे देश की पीठ में छुरा घोंपने को तैयार हैं?
- यह खतरा केवल सुरक्षा एजेंसियों का सिरदर्द नहीं है। यह पूरे राष्ट्र की आत्मा पर आघात है। हमें अपने भीतर झांकना होगा – क्या हम सचमुच राष्ट्र के प्रहरी हैं या अंधे उपभोक्ता?
- घर के भेदी, लंका से भी खतरनाक होते हैं। जब दुश्मन को भीतर से रास्ता मिल जाए, तब सरहद पर बंदूकें भी बेअसर हो जाती हैं।
प्रियंका सौरभ
जब राष्ट्र की सीमाओं पर दुश्मन की गोलियां चलती हैं, तो पूरा देश एकजुट होकर सैनिकों के साहस का गुणगान करता है। पर जब वही दुश्मन बिना गोली चलाए, हमारे बीच से ही कुछ लोगों को अपने जाल में फंसाकर, देश की जड़ें खोदता है — तब? तब यह सवाल केवल सुरक्षा एजेंसियों का नहीं, बल्कि हर देशवासी के आत्मावलोकन का बन जाता है।
हाल ही में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा ऐसे कई मामलों का भंडाफोड़ किया गया है, जहाँ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) के लिए काम कर रहे भारतीय नागरिकों को गिरफ्तार किया गया। इनमें छात्र, यूट्यूबर, सुरक्षा गार्ड, रेलवे कर्मचारी और मजदूर तक शामिल हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि दुश्मन अब युद्ध की पारंपरिक विधियों से नहीं, बल्कि ‘भीतरघात’ और ‘डिजिटल छल’ से हमला कर रहा है — और सबसे दुखद यह है कि उसके औज़ार हम ही बन रहे हैं।
देशभक्ति की दीवार में सेंध
इन मामलों में जो सबसे चौंकाने वाली बात सामने आई, वह यह थी कि जासूसी में लिप्त कुछ आरोपी अत्यंत साधारण पृष्ठभूमि से थे। कोई 10-15 हज़ार रुपये की नौकरी कर रहा था, कोई बेरोजगारी से तंग आकर सोशल मीडिया पर काम ढूंढ रहा था। ऐसे में जब दुश्मन एजेंसी आकर्षक पैसों, डिजिटल संबंधों या सहानुभूति के बहाने संपर्क करती है, तो ये लोग जल्दी फंस जाते हैं।
क्या देशभक्ति इतनी सस्ती हो गई है कि कुछ हज़ार रुपये या झूठे प्रेम संबंधों के बहकावे में लोग राष्ट्रविरोधी बन जाएं? यह प्रश्न केवल सुरक्षा एजेंसियों के लिए नहीं, पूरे समाज के लिए चिंतन योग्य है।
डिजिटल युग का नया मोर्चा
आज की जासूसी पारंपरिक कैमरे या फाइल चोरी करने तक सीमित नहीं है। अब यह सारा खेल मोबाइल फोन, सोशल मीडिया, व्हाट्सऐप, और ईमेल के ज़रिए खेला जा रहा है। कई मामलों में आईएसआई ने फेक फेसबुक प्रोफाइल बनाकर ‘लड़की’ बनकर संपर्क साधा, प्रेम में फंसाकर ‘देशभक्ति’ को प्रेम की बलि चढ़ा दिया गया।
ऐसे मामलों में:
- जवानों से सैन्य गतिविधियों की जानकारी ली गई
- रेलवे कर्मचारियों से सेना की मूवमेंट के रूट पूछे गए
- छात्रों और यूट्यूबर्स से सुरक्षा इंतजामों से जुड़ी सूचनाएं मंगवाई गईं
- यह साइबर युद्ध है, जो गोली नहीं चलाता, लेकिन राष्ट्र की रीढ़ पर वार करता है।
सवाल उठते हैं…
- क्या हमारी शिक्षा प्रणाली में नैतिकता और राष्ट्रभक्ति की शिक्षा का अभाव है?
- क्या बेरोजगारी ने युवा मन को इतना असुरक्षित बना दिया है कि वह अपने ही देश के खिलाफ बिकने को तैयार है?
- क्या सोशल मीडिया की अंधी दौड़ में हम यह भूल चुके हैं कि कौन दुश्मन है और कौन दोस्त?
ये सवाल किसी एक राज्य, संस्था या सरकार से नहीं, बल्कि पूरे समाज से हैं। और इनके उत्तर भी हम सबको मिलकर खोजने होंगे।
भीतर का क्षरण: संस्कृति बनाम साजिश
‘घर के भेदी’ केवल एक संज्ञा नहीं है, यह उस मनोवैज्ञानिक क्षरण का प्रतीक है, जो राष्ट्र की आत्मा को खोखला करता है। जब राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्त व्यक्ति यह तर्क देता है कि “मैंने तो सिर्फ एक फोटो भेजी थी, कौन सा बम फोड़ा?”, तो स्पष्ट हो जाता है कि हमने अपने नागरिकों को ‘राष्ट्र’ की चेतना देना ही छोड़ दिया है।
समाधान की दिशा में 5 जरूरी कदम
- राष्ट्रीय चेतना आधारित शिक्षा: स्कूल-कॉलेजों में सिर्फ इतिहास पढ़ाना काफी नहीं, हमें यह सिखाना होगा कि देश सिर्फ भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि एक जीवंत चेतना है।
- डिजिटल साक्षरता: युवाओं को यह समझाना जरूरी है कि सोशल मीडिया पर हर सुंदर चेहरा दोस्त नहीं होता, और हर ऑफर सच्चा नहीं।
- साइबर इंटेलिजेंस यूनिट्स को सशक्त बनाना: हर जिले में साइबर जासूसी रोकने के लिए स्थानीय निगरानी केंद्र बनाए जाने चाहिए।
- युवाओं के लिए राष्ट्र निर्माण अभियान: NCC, NSS जैसे संगठनों के दायरे को स्कूलों से गाँवों तक बढ़ाया जाए।
- मूलभूत रोजगार और सम्मान: जब तक युवा को रोज़गार, सम्मान और पहचान नहीं मिलेगी, वह बाहरी जाल में फंसने के लिए सबसे आसान शिकार रहेगा।
राष्ट्र की आत्मा की रक्षा का समय
आज का भारत केवल बॉर्डर पर नहीं लड़ रहा। असली लड़ाई उस सोच से है, जो चुपचाप हमारे भीतर फैल रही है — लालच, दिशाहीनता और डिजिटल भ्रम के रूप में। सुरक्षा बलों का काम है दुश्मन को पकड़ना, पर समाज का काम है देशभक्ति को बचाना।
हम कबीर की उस चेतावनी को याद करें—
“घर का भेदी लंका ढाहे, बाहर वाला क्या कर पाए।
अंतर की आग बुझा न सके, जो मन से राष्ट्र न अपनाए।”
देश को बाहर से जितना खतरा है, अब उतना ही भीतर से भी है। ज़रूरत है सजग नागरिकों की, जो यह समझें कि राष्ट्र केवल एक भूखंड नहीं, वह हमारे विचार, कर्म और चेतना का नाम है।