सुविधा और दुविधा में फंसी यूपी के बेसिक शिक्षकों की तबादला नीति

Transfer policy of basic teachers of Uttar Pradesh stuck between convenience and dilemma

संजय सक्सेना

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षकों के लिए सात साल बाद तबादले खोलकर षिक्षक समाज को बड़ी राहत प्रदान की है। सरकार द्वारा अंतर-जनपदीय और जिला-स्तरीय तबादलों का रास्ता खुलने से शिक्षक खुश तो हैं,लेकिन इसमें वह (शिक्षक) कुछ कमियों की बात करते हुए इन्हें दूर करने की बात भी कह रहे हैं। तबादला प्रक्रिया शिक्षकों के लिए लंबे समय से प्रतीक्षित थी, क्योंकि कई शिक्षक अपने गृह जनपद या परिवार के नजदीक स्थानांतरित होने की उम्मीद में वर्षों से इंतजार कर रहे थे। इस प्रक्रिया की शुरुआत जून 2025 में हुई, जब बेसिक शिक्षा परिषद ने शिक्षकों के लिए ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया शुरू की। लेकिन जैसे-जैसे यह प्रक्रिया आगे बढ़ी, शिक्षकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिन्होंने उनके उत्साह को निराशा में बदल दिया है।

उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग में लाखों शिक्षक कार्यरत हैं, और इनमें से कई अपने गृह जनपद से सैकड़ों किलोमीटर दूर तैनात हैं। परिवार से दूरी, बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल और अन्य सामाजिक जिम्मेदारियों के कारण शिक्षक लंबे समय से तबादले की मांग कर रहे थे। सात साल बाद जब सरकार ने तबादलों की अनुमति दी, तो शिक्षकों में खुशी की लहर दौड़ गई। बेसिक शिक्षा परिषद ने 9 से 12 जून 2025 तक ऑनलाइन आवेदन मांगे, और आवेदन की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए मानव संपदा पोर्टल का उपयोग किया गया। इसके बाद 13 जून तक आवेदन के प्रिंटआउट जमा करने और 16 जून को तबादला सूची जारी करने की तारीख तय की गई थी। लेकिन जैसे ही शिक्षकों ने आवेदन शुरू किए, तकनीकी और प्रशासनिक समस्याओं ने उनका रास्ता रोक लिया। सबसे बड़ी परेशानी जो शिक्षकों को हुई, वह थी मानव संपदा पोर्टल की तकनीकी खामियां। कई शिक्षकों ने शिकायत की कि पोर्टल पर उनकी जानकारी गलत दर्ज थी, जैसे कि उनकी सेवा अवधि, जन्म तिथि, या वर्तमान तैनाती का विवरण। कुछ शिक्षकों की मानव संपदा आईडी ही अपडेट नहीं थी, जिसके कारण वे आवेदन प्रक्रिया में भाग नहीं ले सके। इसके अलावा, पोर्टल पर अचानक सर्वर डाउन होने की समस्या ने भी शिक्षकों को परेशान किया।ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले शिक्षकों के लिए यह और भी मुश्किल था, क्योंकि उनके पास इंटरनेट की सुविधा सीमित थी। कई शिक्षकों को साइबर कैफे का सहारा लेना पड़ा, जहां उन्हें अतिरिक्त खर्च और समय की बर्बादी का सामना करना पड़ा।

एक और बड़ी समस्या थी तबादले के लिए सीमित जिला विकल्प। बेसिक शिक्षा विभाग ने अंतर-जनपदीय तबादलों के लिए केवल 15 जिलों का विकल्प दिया, जबकि 60 अन्य जिलों में तबादले के लिए आवेदन स्वीकार नहीं किए गए। इससे उन शिक्षकों में निराशा फैल गई, जो अपने गृह जनपद या परिवार के नजदीक किसी विशेष जिले में जाना चाहते थे। विभाग ने यह तर्क दिया कि इन 15 जिलों में शिक्षकों की कमी है, और इसलिए प्राथमिकता इन्हीं जिलों को दी गई। लेकिन शिक्षकों का कहना था कि यह फैसला एकतरफा था और उनकी व्यक्तिगत जरूरतों को नजरअंदाज किया गया। कुछ शिक्षकों ने तो यह भी आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया कुछ खास लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई है। यही वजह है तबादला सूची जारी होने के बाद भी शिक्षकों की परेशानियां कम नहीं हुईं।

कई शिक्षकों को उनके द्वारा चुने गए विकल्पों से अलग जिलों में स्थानांतरित कर दिया गया। कुछ मामलों में, शिक्षकों को ऐसे स्कूलों में भेजा गया, जहां बुनियादी सुविधाएं, जैसे कि बिजली, पानी, या शौचालय, भी उपलब्ध नहीं थे। इससे खासकर महिला शिक्षकों को ज्यादा परेशानी हुई, क्योंकि उनके लिए नए स्थान पर रहना और काम करना असुरक्षित था। इसके अलावा, तबादले के बाद भी कई शिक्षकों को रिलीव नहीं किया गया। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक का तबादला पीलीभीत के एक प्राथमिक विद्यालय में हुआ, लेकिन उनके मूल स्कूल ने उन्हें छोड़ने से इनकार कर दिया, जिससे वे न तो नए स्कूल में जॉइन कर सके और न ही पुराने स्कूल में नियमित रूप से काम कर पाए।

तबादलों के दौरान वेतन संबंधी समस्याएं भी शिक्षकों के लिए सिरदर्द बनीं। तबादले के बाद कई शिक्षकों की मानव संपदा आईडी और लास्ट पे सर्टिफिकेट (एलपीसी) ट्रांसफर नहीं हुए, जिसके कारण उनका जून 2025 का वेतन रुक गया। यह समस्या खासकर उन शिक्षकों के लिए गंभीर थी, जो आर्थिक रूप से कमजोर थे और परिवार का खर्च चलाने के लिए वेतन पर निर्भर थे। शिक्षकों ने इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर भी अपनी नाराजगी जताई, और कई ने बेसिक शिक्षा परिषद से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की। लेकिन विभाग की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं मिला, जिससे शिक्षकों का गुस्सा और बढ़ गया। प्रशासनिक स्तर पर भी तबादलों में कई अनियमितताएं देखी गईं।

कुछ शिक्षकों ने यह भी आरोप लगाया कि प्रभावशाली लोग अपने रसूख का इस्तेमाल कर मनचाहे स्थानों पर तबादला करवा रहे थे, जबकि सामान्य शिक्षकों को अनदेखा किया जा रहा था। इसके अलावा, तबादला प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी ने भी शिक्षकों का भरोसा तोड़ा। कई शिक्षकों को यह समझ नहीं आया कि उनकी प्राथमिकता के बावजूद उन्हें दूसरा जिला क्यों मिला। कुछ शिक्षकों ने तो यह भी कहा कि तबादला सूची में उनके नाम ही गायब थे, जबकि उन्होंने समय पर आवेदन किया था।

इसके अलावा, सरकार के हाल के फैसले ने भी शिक्षकों को और परेशान कर दिया क्योंकि एक तरफ शिक्षकों के तबादले खोले गये तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर बेसिक शिक्षा विभाग में तबादलों पर अस्थायी रोक लगा दी गई। इसका कारण स्कूल चलो अभियान और अन्य विभागीय कार्यों को सुचारू रूप से चलाना बताया गया। शिक्षकों का कहना था कि यह रोक उनके साथ नाइंसाफी है, क्योंकि तबादला प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी थी और कई शिक्षक नए स्कूलों में जॉइन करने की तैयारी कर रहे थे। इस रोक ने उन शिक्षकों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया, जो अपने परिवार के करीब जाने का सपना देख रहे थे। अधिकांश शिक्षकों का कहना है कि योगी सरकार की तबादला नीति से उन्हें सुविधा कम दुविधा जैसा हो रही है।

शिक्षकों की इन परेशानियों ने बेसिक शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। एक ओर, सरकार ने तबादलों को पारदर्शी और शिक्षक हित में बताया, लेकिन दूसरी ओर, तकनीकी खामियां, सीमित विकल्प, और प्रशासनिक अनियमितताओं ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया। शिक्षकों का कहना है कि अगर विभाग ने पहले से तैयारी की होती, तो ये समस्याएं नहीं आतीं। कई शिक्षकों ने तो यह भी मांग की है कि तबादला प्रक्रिया को फिर से शुरू किया जाए, ताकि उनकी समस्याओं का समाधान हो सके। बहरहाल, तबादला चाहने वाले शिक्षक अभी भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उनकी परेशानियां जल्द दूर होंगी।

तबादला प्रक्रिया पारदर्शी रहेगी

सरकार ने 24 मई 2025 को नई तबादला नीति जारी की, जिसमें 5 साल की न्यूनतम सेवा अवधि की बाध्यता हटा दी गई। इसका उद्देश्य अधिक से अधिक शिक्षकों को तबादले का अवसर देना था, खासकर उन नए शिक्षकों को जो 68500 और 69000 सहायक अध्यापक भर्ती में चयनित हुए थे। विभाग का दावा है कि इस नीति से 6 लाख से अधिक शिक्षक लाभान्वित होंगे।वहीं तबादला प्रक्रिया में आ रही समस्याओं के संबंध में बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना था कि शिक्षकों की तबादला प्रक्रिया को पारदर्शी और व्यवस्थित बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, जैसे ऑनलाइन आवेदन, सेवा अवधि की बाध्यता हटाना, और आवेदन तारीख बढ़ाना आदि शमिल है। हालांकि, तकनीकी और प्रशासनिक चुनौतियों के कारण कुछ समस्याएं आई हैं, जिन्हें हल करने के लिए विभाग काम कर रहा है। तबादलों पर अस्थायी रोक को सरकार ने विभागीय कार्यों की प्राथमिकता के रूप में उचित ठहराया है। शिक्षकों की शिकायतों के बावजूद, सरकार का दावा है कि यह प्रक्रिया उनके हित में है और जल्द ही बाकी मुद्दों का समाधान कर लिया जाएगा।

खाली पड़े हैं 85152 सहायक अध्यापक पद

उत्तर प्रदेश सरकार ने 06 फरवरी में बजट सत्र के दौरान विधानसभा में बताया था कि राज्य में प्रधानाध्यापक और सहायक अध्यापक के 85152 पद रिक्त हैं। हालांकि, शिक्षामित्रों और अनुदेशकों को मिलाकर छात्र-शिक्षक का अनुपात पूरा है और पढ़ाई में कोई दिक्कत नहीं है। विभाग में शिक्षा मित्र, अनुदेशक और सहायक अध्यापकों को मिलाकर वर्तमान में शिक्षकों की संख्या 6,28,915 है। संचालित प्राथमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यापक और सहायक अध्यापक के 85152 पद रिक्त हैं। प्रदेश के परिषदीय प्राइमरी स्कूलों में कुल 4,59,450 शिक्षक हैं। इनमें 3,38,590 प्राइमरी में है जबकि 1,20, 860 शिक्षक अपर प्राइमरी स्कूलों में है। इसी प्रकार से प्राइमरी स्कूलों की संख्या 1,11614 हैं जबकि अपर प्राइमरी स्कूल 45,651 है।