नरेंद्र तिवारी ‘पत्रकार’
भारतीय समाज में अंधविश्वास की गहरी पैठ हैं। समाज का बहुत बड़ा वर्ग अभी भी अपने दकियानूसी विश्वासों पर कायम हैं। धर्म की आड़ में अंधविश्वासों को मिलती ताकत को समाज मे वैज्ञानिक चेतना के माध्यम से न सिर्फ समाप्त किया जा सकता हैं, अपितु समाज मे अंधविश्वास के कारोबार में लगे लोगो ओर संस्थाओं को बेनकाब भी किया जा सकता हैं। हाल-फिलहाल की घटनाएं जिसमे अमीर बनने की चाह में मॉनव-बलि, सन्तान प्राप्ति ओर धन को दुगुना करने के चक्कर मे ठगी का शिकार, महिला के शरीर मे भूत होने की शंका में मारपीट कर उसकी हत्या किए जाने की खबरें न सिर्फ विचलित करतीं है। यह घटनाए समाज मे फैले अंधविश्वास की ओर इशारा करती हैं। ऐसी बहुत सी घटनाएं आए दिन हमारे इर्दगिर्द भी घटित होती हैं जो समाज के एक बड़े वर्ग के अंधविश्वासी होने की तरफ इशारा करती है। देश के सबसे शिक्षित राज्य केरल में दिलदहला देने वाली घटना ने तो आदिम युग की यादों को ताजा कर दिया हैं। इस घटना में अमीर बनने की लालच में दो महिलाओं की बलि देने उनके अंगों को काटे जाने की बात सामने आई हैं। इस घटना में मॉनव मांस को पकाकर भक्षण करने की सम्भावना भी जताई गई हैं। पुलिस के अनुसार साजिश रचने वाला शख्स मानसिक तौर पर विकृत इंसान हैं। पुलिस इस पहलू पर भी जांच कर रहीं हैं कि मौत के घाट उतारने के पहले दोनों महिलाओं से दुष्कर्म तो नहीं किया गया। केरल मॉनव-बलि मामले में कोच्चि शहर के पुलिस आयुक्त सीएच नागराजू ने बताया कि जब हमने मुख्य आरोपी शफी से पूछताछ की तो पहले हमें कुछ नहीं मिला, लेकिन बाद में ऐसे संकेत मिले जो साबित करते हैं कि वह साइको किलर हैं। ऐसी आशंका है, कि आरोपियों ने पीड़ितों की हत्या करने के बाद शरीर के कुछ अंगों को खाया भी हो सकता हैं। इसमे मुख्य साजिशकर्ता ने फेसबुक का इस्तेमाल किया उसने भगवल सिंह और लैला को ऐसा पाया जो मानव बलि में रुचि रखने वाले हैं। जिन्होंने अपनी लालच की पूर्ति के लिए तांत्रिक क्रियाओं को सहारा लेते हुए रोजनील ओर पदमा नामक महिलाओं की बेहरमी से हत्या की घटना को अंजाम दिया हैं। यह घटना कितनी बर्बर, अमानुषिक ओर ह्रदयविदारक होगी जिसकी सामान्य अवस्था मे कल्पना करने से ही रूह कांप जाती हैं। यह घटना हमारे समाज में व्याप्त अंधविश्वास की पुष्टि करती हैं। मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले की कटँगी तहसील में महिला के शरीर मे भूत होने के नाम पर मार-मारकर हत्या किए जाने की घटना में कटंगी थाना प्रभारी अमित सारस्वत के अनुसार मृतक महिला गीताबाई 40 वर्ष की तबियत खराब होने पर महिला का पति सुंदरलाल बाहेश्वर उसे ग्राम खजरी के तांत्रिक जूनियर मात्रे ओर टामलाल बाहेश्वर के पास ले गए थै। दोनों तांत्रिकों ने महिला के शरीर मे प्रेतात्मा होने की बात कहतें हुए उसके साथ बेरहमी से मारपीट करतें हुए दांतो से काटा ओर गर्दन की हड्डी भी तोड़ दी जब गीताबाई बेसुध हो गयी तब इन तांत्रिकों ने महिला के पति को डॉक्टर के पास जाने को कहा डॉक्टरों ने महिला को मृत घोषित कर दिया। पुलिस ने दोनों हत्यारे तांत्रिकों को गिरफ्तार कर लिया है। मध्यप्रदेश के इंदौर में घटित एक अन्य घटना में सन्तान प्राप्ति की चाह में 8 लाख रु की ठगी की शिकार हुई दम्पति की कहानी ग्रामीण नहीं शहरी परिवेश में अंधविश्वास ओर दकियानूसी सोच का ताजातरीन उदाहरण हैं। घटनाएं ओर भी हैं, जिनका इस सन्दर्भ में जिक्र किया जा सकता हैं। ये घटनाए समाज के अंदर से बाहर आ गयी ओर समाचारों की सुर्खियां बन गयी। ऐसी बहुत सी घटनाओं को समाज मे अंजाम दिया गया, अब भी दिया जा रहा हैं। तंत्र-मंत्र जादू-टोना ओर धार्मिक अंधविश्वास से ग्रसित हमारा समाज आधुनिक भारत के निर्माण में बाधक हैं। समाज में व्याप्त इन अंधविश्वासों को वैज्ञानिक चेतना के माध्यम से ही समाप्त किया जा सकता हैं। इसके लिए सरकारी मशीनरी की उपयोगिता से इंकार नहीं किया जा सकता हैं। यह कार्य निजी संस्थाओं के माध्यम से भी किया जाना चाहिए। इसमे टीवी, रेडियों के माध्यम से अंधविश्वास की पोल खोलने वाले नाटक, सीरियल-ड्रामा, चमत्कारों का पर्दाफाश, तर्कशील सोसायटी के कार्यक्रम, अखबार-मैगजीन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, विज्ञान ब्लाग, मोबाइल फोन नुक्कड़ नाटक, तमाशा, नवचेतना रैली आदि ऐसे माध्यम हैं जिनके प्रयोग से समाज मे वैज्ञानिक चेतना की स्थापना कर अंधविश्वास से मुक्ति दिलाई जा सकती हैं। देश मे धर्म के नाम पर पर भी अंधविश्वासों को फैलाए जाने का क्रम जारी हैं। इस हेतु समाज के धार्मिक संगठनों की भी भूमिका अहम हो जाती हैं। अंधविश्वास ओर दकियानूसी सोच भारतीय समाज की तरक्की में बाधक हैं। यह आधुनिक होतें भारत की राह में बाधक भी बन रहे हैं। धर्म और लालच के नाम पर अंधविश्वासों को बढ़ाना भी आपराधिक एवं राष्ट्र विरोधी कार्य हैं। एक जागरूक समाज को वैज्ञानिक चेतना से परिपूर्ण रहना चाहिए। इस हेतु पुलिस विभाग भी महती भूमिका निभा सकता हैं। प्रत्येक राज्य में पुलिस के अभियानों में वैज्ञानिक चेतना के अभियान को भी शामिल किया जाना चाहिए। पुलिस का यह अभियान वैज्ञानिक चेतना के प्रसार के साथ अंधविश्वासों को बढ़ावा देने वाले लोगों और संस्थाओं के विरुद्ध अपराध भी कायम कर सकेगा। भारतीय समाज मे एक विडम्बना यह भी हैं कि धर्म की आड़ में समाज मे व्याप्त अंधविश्वासों को राजनैतिक नेताओं और दलों का समर्थन भी प्राप्त होता है, जिसके बल पर यह संस्थाएं बेख़ौप अपना कार्य करती है। भारत राष्ट्र को दुनियाँ की सर्वोच्च ताकत बनाने का सपना देख रहें देशवासियों को चाहिए कि वह अंधविश्वासों के विरुद्ध वैज्ञानिक चेतना के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करें। स्कूली शिक्षा में अंधविश्वास के निर्मूलन के पाठ को शामिल किया जाना चाहिए। अंधविश्वासों को समाप्त करने के लिए समाज में वैज्ञानिक चेतना के क्रम में प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया और सोश्यल मीडिया भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता हैं। भारतीय परिवेश में धार्मिक शिक्षाएं तर्क और वैज्ञानिक सोच पर आधारित है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में कर्म की महत्ता को स्थापित किया हैं। आडम्बर ओर अंधविश्वास को अंधविश्वास के कारोबारियों ने बढ़ाया हैं। देश हित मे इन अंधविश्वासों का बेनकाब होना बेहद जरूरी हैं।