मंगेशकर परिवार की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘जैत रे जैत’ की 48वीं वर्षगांठ पर पंडित हृदयनाथ मंगेशकर और उषा मंगेशकर को श्रद्धांजलि

Tribute to Pandit Hridaynath Mangeshkar and Usha Mangeshkar on the 48th anniversary of the Mangeshkar family's blockbuster film 'Jait Re Jait'

मुंबई (अनिल बेदाग) : कालजयी फिल्म जैत रे जैत की 48वीं वर्षगांठ पर 5 अगस्त 2025 को यशवंतराव चव्हाण नाट्यगृह, कोथरुड, पुणे में एक भव्य संगीत समारोह का आयोजन किया गया। महक द्वारा प्रस्तुत इस विशेष कार्यक्रम में पद्मश्री पंडित हृदयनाथ मंगेशकर और उषा मंगेशकर के अद्वितीय योगदान को सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत एक पैनल चर्चा से हुई, जिसमें पंडित हृदयनाथ मंगेशकर, उषा मंगेशकर और वरिष्ठ अभिनेता डॉ. मोहन अगाशे शामिल थे। मृणाल कुलकर्णी ने इस कार्यक्रम का संचालन स्पृह जोशी द्वारा अत्यंत भावपूर्ण और सटीक ढंग से किया।

पं. हृदयनाथ मंगेशकर ने अपनी संगीत यात्रा के बारे में बात करते हुए कहा,”मैंने ये गीत पहचान पाने के लिए नहीं, बल्कि एक अनसुनी आवाज़ को सम्मान देने के लिए रचे हैं। जैत रे जैत सिर्फ़ मेरा नहीं है – यह जंगल में जीवन यापन कर रहे उन लोगों का है, जो बाहर की दुनिया मे भुला दिए गए है।”

उषा मंगेशकर ने एक साहसिक कलाकृति के निर्माण की रचनात्मक प्रक्रिया और संघर्ष को याद किया। आदिवासी कहानियों को पर्दे पर लाने के प्रयासों का विवरण देते हुए, डॉ. मोहन अगाशे ने नागा की भूमिका में अपने अनुभव साझा किए।

इस चर्चा के बाद, जैत रे जैत के अमर गीतों का लाइव प्रदर्शन किया गया। रवींद्र साठे, मनीषा निश्चल और विभावरी आप्टे के मधुर निर्देशन में इन गीतों में नई जान फूंक दी गई।

मी रात तकली, जांभुल पिकल्या ज़ादाखली, अमे ठाकर ठाकर जैसे गीतों को सिर्फ़ सुना ही नहीं गया – बल्कि उन्हें अनुभव भी किया गया। उन धुनों ने हॉल को मंत्रमुग्ध कर दिया।

जैत रे जैत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि यह कोई फ़िल्म नहीं – बल्कि एक आंदोलन है। यह एक सांस्कृतिक मंत्र है। और यह कार्यक्रम उस संघर्ष, उस संगीत और उस मिट्टी का एक संगीतमय प्रमाण बन गया क्योंकि कुछ गीत सिर्फ़ गाए नहीं जाते जबकि वो एक इतिहास के पन्नो में दर्ज हो जाते हैं जो अन्त कालो तक याद किये जाते है और कुछ कलाकार सिर्फ़ कलाकार नहीं होते। वे संस्कृति के संरक्षक होते हैं।