
- ट्रंप प्रशासन “अमेरिका फर्स्ट” और“मेक इन अमेरिका”की नीति को फार्मास्यूटिकल सेक्टर में और मज़बूत करना चाहता है।
- ट्रंप टेरिफ़,ब्रांडेड और पेटेंट वाली फार्मास्युटिकल दवाओं पर लगेगा ,जबकि भारत जेनेरिक दवा उत्पादक और निर्यातक देश है, इस फैसले से भारत प्रभावित नहीं होगा
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
वैश्विक स्तरपर अंतरराष्ट्रीय व्यापार की दुनियाँ में नीति-निर्माण अक्सर केवल आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक, रणनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी जुड़ा होता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100 पर्सेंट टैरिफ लगाने की जो घोषणा की है,वह इसी तथ्य का प्रमाण है। यह निर्णय 1 अक्टूबर 2025 से प्रभावी होगा। उल्लेखनीय है कि यह टैरिफ उन कंपनियों पर लागू नहीं होगा जो अमेरिका के भीतर उत्पादन इकाइयां स्थापितकरेंगी। इसका सीधा अर्थ है कि ट्रंप प्रशासन“अमेरिका फर्स्ट”और “मेक इन अमेरिका” की नीति को फार्मास्यूटिकल सेक्टर में और मजबूत करना चाहता है।यह कदम न केवल अमेरिकी उपभोक्ताओं और कंपनियों पर असर डालेगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तरपर भी इसकी गूंज सुनाई देगी। किचन कैबिनेट, बाथरूम वैनिटी पर भी 50 पर्सेंट टैरिफ लगाया-ट्रम्प ने किचन कैबिनेट, बाथरूम वैनिटी और उनसे जुड़े सभी सामानों पर भी टैरिफ लगाया है। उन्होंने कहा- ‘हम 1 अक्टूबर 2025 से, किचन कैबिनेट, बाथरूम वैनिटी और उनसे जुड़े सभी सामानों पर 50, पर्सेंट टैरिफ लगाना शुरू कर देंगे। इसके अलावा, हम अपहोल्स्टर्ड फर्नीचर (गद्देदार या फोम वाला फर्नीचर) पर 30 पर्सेंट टैक्स लेंगे।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र ऐसा मानता हूं कि भारत, जो दुनियाँ का सबसे बड़ा जेनेरिक दवा उत्पादक और निर्यातक देश है, इस फैसले से विशेष रूप से प्रभावित होगा क्योंकि अमेरिका उसका सबसे बड़ा बाजार है।हालांकि आदेश में जेनेरिक दवाइयों के बारे में स्पष्ट नहीं है यदि इसके बारे में भी लागू हो जाता है तो निश्चित तौर पर असर पढ़ना निश्चित है क्योंकि,अमेरिका लंबे समय से इस बात पर चिंतित रहा है कि दवाओं की कीमतें उसके घरेलू बाजार में लगातार बढ़ रही हैं। दूसरी ओर, विदेशों से आयातित दवाएं सस्ती और प्रतिस्पर्धी होती हैं, जिससे अमेरिकी कंपनियों का दबाव बढ़ जाता है।ट्रंप की मंशा,स्थानीय उत्पादन बढ़ाना, रोजगार सृजित करना और अमेरिका को आयात पर निर्भरता से मुक्त करना। इस आदेश में राजनीतिक संदेश भी छिपा हुआ है,यह कदम घरेलू मतदाताओं को यह संदेश देता है कि ट्रंप अमेरिकी उद्योग और उपभोक्ताओं के हित में कठोर फैसले लेने से पीछे नहीं हटेंगे।इसमें रणनीतिक दबावयह है कि चीन, भारत और यूरोप जैसे देशों पर यह अप्रत्यक्ष दबाव है कि वे अमेरिका को केवल उपभोक्ता बाजार की तरह न देखें, बल्कि वहां निवेश करें। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्धजानकारी के सहयोग से इसआर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, ट्रंप ने भारत पर फोड़ा टैरिफ बम- दवाओं पर 100 पर्सेंट टैरिफ-वैश्विक अर्थव्यवस्था, भारत और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर विश्लेषण।
साथियों बात अगर हम भारत के फार्मा सेक्टर सेक्टर की करें तो,यह अंतरराष्ट्रीय स्तरपरअपनी सस्ती और गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाओं के लिए जाना जाता है। यह इस तरह प्रभावित होगा कि
(1) निर्यात पर सीधा असर- अमेरिका भारत की दवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक बाजार है। 2024 में भारत ने अमेरिका को लगभग 8-9 बिलियन डॉलर की दवाइयां निर्यात की थीं। 100 पर्सेंट टैरिफ लगने से यह व्यापार तुरंत प्रभावित होगा
(2) कीमत और प्रतिस्पर्धा-भारतीयकंपनियों की दवाएं अमेरिकी उपभोक्ताओं को अब दोगुनी कीमत पर मिलेंगी ,जिससे उनकी प्रतिस्पर्धा कम होगी।
(3) निवेश दबाव- भारतीय कंपनियों पर अमेरिका में उत्पादन इकाइयां लगाने का दबाव बढ़ेगा।इससे भारतीय दवा कंपनियों को एफडीआई और मर्जर एंड अक्विजीशन के रास्ते तलाशने पड़ सकते हैं।
(4) रोजगार पर असर-भारत में लाखों लोग फार्मा इंडस्ट्री से जुड़े हैं। यदि निर्यात घटा तो उत्पादन और रोजगार दोनों पर दबाव पड़ेगा।
साथियों बात अगर हम भारत को जेनेरिक दवाइयों के एंगिल देखें तो यदि जेनेरिक दवाइयों को छूट रहती है तो भारत को ज्यादा असर नहीं पड़ेगा,भारत जेनेरिक दवाइयाँ अमेरिका को एक्सपोर्ट करने वाला सबसे बड़ा देश है। 2024 में भारत ने अमेरिका को लगभग 8.73 अरब डॉलर (करीब 77 हजार करोड़ रुपए) की दवाइयां भेजीं, जो भारत के कुल दवा एक्सपोर्ट का करीब 31 पर्सेंट था।(1) अमेरिका में डॉक्टर जो प्रिस्क्रिप्शन लिखते हैं, उनमें से हर 10 में से लगभग 4 दवाइयां भारतीय कंपनियों की बनाई होती हैं।(2)एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में अमेरिका के हेल्थकेयर सिस्टम के 219 अरब डॉलर बचे थे। 2013 से 2022 के बीच यह बचत 1.3 ट्रिलियन थी।(3) भारत की बड़ी फार्मा कंपनियां, जैसे डॉ. रेड्डीज, सन फार्मा, ल्यूपिन सिर्फ जेनेरिक दवाएं ही नहीं बेचती, बल्कि कुछ पेटेंट वाली दवाएं भी बेचती हैं। बाकी भारत अधिगम निर्यात जेनेरिक दवाइयां का ही करता है।
साथियों बात अगर हम ब्रांडेड या पेटेंटेड दवाई और जेनरिक दवाई में अंतर को समझने की करें तो,ब्रांडेड दवाई-(1) यह वो ओरिजिनल दवाई होती है जिसकी खोज किसी फार्मा कंपनी ने बहुत रिसर्च और भारी- भरकम खर्च के बाद की होती है।(2) इसे बनाने वाली कंपनी को एक तय समय (आमतौर पर 20 साल) के लिए पेटेंट अधिकार मिल जाता है।(3) इस दौरान कोई भी दूसरी कंपनी उस फॉर्मूले का इस्तेमाल करके वह दवाई नहीं बना सकती।(4) रिसर्च और डेवलपमेंट पर हुए खर्च को वसूलने के लिए इसकी कीमत बहुत ज़्यादा होती है।
जेनरिक दवाई-(1) यह वो दवाई होती है जो ब्रांडेड दवाई का पेटेंट खत्म होने के बाद बाज़ार में आती है। यह ब्रांडेड दवाई के समान फॉर्मूले का इस्तेमाल करके बनाई जाती है।(2) इसका कोई नया पेटेंट नहीं होता, क्योंकि यह पहले से मौजूद फॉर्मूले की नकल होती है।(3)जेनेरिक दवा बनाने वाली कंपनियों को रिसर्च का खर्च नहीं उठाना पड़ता, इसलिए इसकी कीमत ब्रांडेड दवा के मुकाबले 80 पर्सेंट से 90 पर्सेंट तक कम हो सकती है। अब दो जरूरी बातों को इसमें समझना जरूरी है(1) ब्रांडेड दवाओं पर टैरिफ लगाने का फैसला ट्रम्प ने क्यों लिया?-ट्रम्प ने ब्रांडेड दवाओं पर टैरिफ लगाने का फैसला अमेरिका में दवा उत्पादन को बढ़ाने के लिए लिया है। ट्रम्प का यह कदम उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ और ‘मेक इन अमेरिका’ नीति का हिस्सा है।ट्रम्प प्रशासन का यह भी मानना है कि दवाओं के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।महामारी के दौरान यह बात साफ हुई थी कि अगर सप्लाई चेन टूटती है तो अमेरिका में दवाओं की भारी कमी हो सकती है।ब्रांडेड दवाओं पर दबाव डालकर, वे पूरी फार्मा सप्लाई चेन को सुरक्षित करना चाहते हैं।(2) जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ क्यों नहीं लगाया गया?-जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं से 80 पर्सेंट से 90 पर्सेंट तक सस्ती होती हैं। अमेरिकी हेल्थकेयर सिस्टम जेनेरिक दवाओं पर बहुत ज़्यादा निर्भर है। अगर जेनेरिक दवाओं पर भी 100 पर्सेंट टैरिफ लग जाता, तो उनकी कीमत बहुत बढ़ जाती। इससे अमेरिकी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवा बहुत महंगी हो जाती, और यह सीधे तौर पर कंज्यूमर्स कोबहुत अधिक प्रभावित करता।
साथियों बात अगर हम वैश्विक व्यापार पर असर को समझने की करें तो,यह निर्णय केवल भारत तक सीमित नहीं रहेगा,बल्कि पूरी वैश्विक दवा सप्लाई चेन को प्रभावित करेगा।(1) यूरोपीय यूनियन -कई यूरोपीय कंपनियां भी अमेरिका में दवाएं निर्यात करती हैं। टैरिफ के कारण वे भी प्रभावित होंगी।(2) चीन- अमेरिका पहले ही चीन के साथ टकराव की स्थिति में है। अब फार्मा सेक्टर पर यह टैरिफ उसके खिलाफ एक और मोर्चा खोल सकता है।(3) विकासशील देश-अमेरिका में दवाएं महंगी होने का मतलब है कि गरीब देशों तक पहुंचने वाली सस्ती जेनेरिक दवाओं पर भी असर पड़ेगा क्योंकि सप्लाई चैन और प्राइसिंग ग्लोबल स्तर पर प्रभावित होंगी।
साथियों बात अगर हम अमेरिका के उपभोक्ताओं के लिए लाभ या हानि? को समझने की करें तो, ट्रंप प्रशासन दावा करता है कि यह कदम घरेलू उत्पादन बढ़ाकर अमेरिकी उपभोक्ताओं को दीर्घकालीन लाभ देगा।परंतु अल्पकालिक दृष्टिकोण से स्थिति विपरीत हो सकती है लाभ- अमेरिका में नई फैक्ट्रियों के खुलने से रोजगार बढ़ेगा,रिसर्च और इनोवेशन पर भी सकारात्मक असर होगा।हानि-दवाएं तत्काल महंगी हो जाएंगी क्योंकि घरेलू उत्पादन को गति देने में समय लगेगा।गरीब और मध्यमवर्गीय मरीजों को सबसे अधिक कठिनाई होगी।
साथियों बात अगर हम भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया को समझने की करें तो, भारत के लिए यह परिस्थिति चुनौतीपूर्ण तो है,परंतु अवसर भी छिपे हैं।(1)नए बाजारों की तलाश: भारत यूरोप, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के अन्य देशों में अपना निर्यात बढ़ा सकता है। (2) द्विपक्षीय समझौते: भारत अमेरिका से इस निर्णय में राहत पाने के लिए कूटनीतिक दबाव बना सकता है, जैसे कि “मेक इन इंडिया” बनाम “मेक इन अमेरिका” का सहयोग मॉडल। (3) घरेलू नवाचार-भारत को केवल जेनेरिक दवाओं तक सीमित न रहकर ब्रांडेड और नवाचारी दवाओं के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना होगा।(4) उद्योग का भारत की करें तो पुनर्गठन- बड़े भारतीय समूह अमेरिका में स्थानीय उत्पादन इकाइयां स्थापित कर सकते हैं, जबकि छोटे और मध्यम उद्योग वैकल्पिक बाजारों की ओर रुख करेंगे।
साथियों बात अगर हम अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति क़े आयाम को समझने की करें तो,ट्रंप का यह निर्णय केवल आर्थिक कदम नहीं है, बल्कि इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय राजनीति भी है।भारत-अमेरिका संबंध: हाल के वर्षों में भारत और अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी मजबूत हुई है। लेकिन यह निर्णय द्विपक्षीय संबंधों में तनाव ला सकता है। भारत-चीन प्रतिस्पर्धा-भारत इस स्थिति का उपयोग कर सकता है कि चीन की तुलना में अमेरिका को अधिक विश्वसनीय सप्लाई पार्टनर के रूप में खुद को पेश करे।वैश्विक स्वास्थ्य संकट- यदि किसी महामारी जैसी स्थिति आती है, तो इस तरह के टैरिफ वैश्विक सहयोग को कमजोर कर सकते हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का दवाओं पर 100 पर्सेंट टैरिफ लगाने का निर्णय वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक संतुलन को प्रभावित करने वाला कदम है। अमेरिका ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने घरेलू उद्योगों को प्राथमिकता देगा, भले ही इसके लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों और साझेदारियों पर असर क्यों न पड़े।भारत के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है क्योंकि उसका सबसे बड़ा निर्यातक बाजार प्रभावित होगा। हालांकि, भारत अपनी कूटनीतिक और आर्थिक रणनीति के जरिए नए अवसर भी तलाश सकता है। यह फैसला इस बात की भी याद दिलाता है किवैश्विक व्यापार में कोई भी नीति केवल एक देश तक सीमित नहीं रहती, बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित करती है।