
प्रेम प्रकाश
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने वक्तव्यों में खासे विरोधाभासी रहे हैं। खासतौर पर भारत-पाक के सीजफायर और टैरिफ विवाद में वे बार-बार बड़बोले दिखे हैं। अब जब भारत अपनी नई कूटनीति के साथ देश की आर्थिकी को मजबूत करने में जुटा है तो ट्रंप के सुर एक बार फिर बदल गए हैं। वे अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपने अच्छे संबंध की बात कर हैं। अलबत्ता, इन सब बातों पर गौर करते हुए किसी निर्णय से पहुंचने से पहले हमें वैश्विक घटनाक्रम से जुड़ी कुछ अन्य अहम बातों पर भी गौर करना होगा। गौरतलब है कि हाल में दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार के 80 साल पूरे होने पर चीन ने बहुचर्चित विक्ट्री डे परेड मनाया। इस मौके पर चीन ने अमेरिका तक मार करने वाली मिसाइलें दुनिया को दिखाईं। यही नहीं, परेड की सलामी लेने के लिए चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग माओ जैसी पोशाक में पहुंचे। जिनपिंग ने बेलाग लहजे में कहा कि चीन किसी की धमकियों से नहीं डरता और हमेशा आगे बढ़ता रहता है। गौरतलब है कि इस तरह की तमाम छवियां और घोषणाएं ये दिखा रही हैं कि अमेरिका के सैन्य और आर्थिक सामर्थ्य के साथ विश्व के शीर्ष राष्ट्र होने के उसके दावे को चुनौती मिल रही है। यही वजह है कि जिंनपिंग की रूसी राष्ट्रपति पुतिन और उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग की एक साथ चहलकदमी जब कैमरे में कैद हुई तो सबसे ज्यादा हैरान जो देश हुआ, वह था अमेरिका। ये सब दुनिया में एक बड़े परिवर्तन के गाढ़े संकेत हैं। निश्चित रूप से भविष्य की दुनिया में चौधराहट की भाषा बोलने का लाइसेंस किसी एक देश के पास नहीं होगा।
इस स्थिति को थोड़े ठहराव के साथ देखें-समझें तो हम पाएंगे कि डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद न सिर्फ अमेरिका की बल्कि इसने पूरी दुनिया की स्थिति और संतुलन को झकझोर कर रख दिया है। आमतौर पर नई सरकार बनने के बाद हर देश में स्थिति बदलती है, नए सिरे से नीतिगत प्राथमिकताएं तय होती हैं। भारत खुद इस स्थिति को बीते एक दशक से देख रहा है। रही बात अमेरिका की तो ट्रंप ने वहां दोबारा सत्ता में वापसी करके अपना सियासी दमखम दिखाया है। राष्ट्रपति बनने के बाद से वे लगातार अपनी नीति और बयानों से दुनिया को हतप्रभ किए हुए हैं। अलबत्ता विमर्श की दुनिया में ट्रंप की मानसिकता और प्राथमिकताओं को कहीं से भी न तो सुविचारित ठहराया जा रहा है, न ही इससे अमेरिकी हितों को लेकर कोई दूरदर्शी विजन मान रहा है।
ट्रंप नीति के जिन दो सिरों को लेकर लगातार चर्चा है, वे हैं उनकी व्यापार और हथियारों को लेकर दुनिया के देशों से करार। बड़ी बात यह है कि अब तक ऐसा कोई आकलन सामने नहीं आया है, जिसमें इन दोनों मुद्दों पर ट्रंप के विवेक और निर्णय को अमेरिका सहित पूरे विश्व के लिए शुभ माना गया हो। हाल में इस लिहाज से एक बड़ा खुलासा हुआ है। ईरान के साथ इजराइल के संघर्ष के बीच अमेरिका के अचानक कूद जाने के फैसले से उसके 25 फीसद जरूरी हथियार खत्म हो चुके हैं। यह एक हैरान करने वाली स्थिति है।
ईरान-इजराइल युद्ध में अमेरिका ने थाड मिसाइल इंटरसेप्टर्स का 25 फीसद स्टॉक इस्तेमाल किया, जबकि वहां इसका उत्पादन बेहद धीमा है। यह खुलासा सीएनएन की एक रिपोर्ट में हुआ है। इस रिपोर्ट से जो तथ्य सामने आए हैं उसमें 2024 में सिर्फ 11 और अगले वर्ष तक अमेरिका महज 37 इंटरसेप्टर्स ही बना सकेगा। गौरतलब है कि थाड मिसाइल जिसे टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस कहा जाता है, वह अमेरिका की सबसे ताकतवर एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली है। इसका मुख्य काम छोटी और मध्यवर्ती दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को उनके अंतिम चरण में रोकना और नष्ट करना है। दुनिया में युद्ध की मौजूदा सूरत में इस तरह की उच्च तकनीकी क्षमता का इस्तेमाल अमेरिका की बड़ी ताकत तो है ही, इसका लोहा दुनिया के बाकी देश भी मानते हैं।
रक्षा विषयों पर नजर रखने वाले भूले नहीं है कि थाड को 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान इराक द्वारा दागे गए स्कड मिसाइलों के जवाब में विकसित किया गया था। आज की तारीख में अमेरिका ने इसे संयुक्त अरब अमीरात, इजराइल, रोमानिया और दक्षिण कोरिया जैसे कई देशों में बने सैन्य अड्डों पर तैनात कर रखा है। जिस थाड की ताकत पर अमेरिका ने ईरानी हमलों से अपना बचाव किया, उसकी एक और बैटरी हाल में उसने इजराइल को भी भेजी है, जो ईरान से बढ़ते तनाव के बीच एक महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम है।
अमेरिकी दावे कुछ भी हों पर इस तथ्य को छिपाना मुश्किल है कि ईरान और इजराइल के बीच चले 12 दिनों के हालिया युद्ध ने अमेरिका को भारी नुकसान पहुंचाया। इस दौरान अमेरिका ने बचाव के लिए खासतौर पर थाड इंटरसेप्टर्स को ही ईरानी बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने के लिए तैनात किए थे। सीएनएन की रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका ने ईरान पर 100 से 150 के करीब थाड इंटरसेप्टर दागे। ऐसे में इस मिसाइल की बची हुई उपलब्धता अमेरिका के लिए एक बड़े संकट की तरह है। अगर किसी तरह की कोई आकस्मिक स्थिति बनती है तो न तो अमेरिका खुद की और न ही साथी मुल्क की थाड के जरिए अपेक्षित तरीके से सुरक्षा कर पाएगा। इस बात से इनकार नहीं है कि पेंटागन का 2025-26 के बजट में मिसाइल सुरक्षा और आपूर्ति श्रृंखला पर खासा जोर है। उसने अपने बजट में 1.3 अरब डॉलर आपूर्ति श्रृंखला सुधार और 2.5 अरब डॉलर मिसाइल उत्पादन पर खर्च करने का फैसला किया है। यह कदम खासतौर पर ईरान और रूस के जंगी रुख के कारण उठाया गया है। इन दोनों मुल्कों के आक्रामक तेवर ने अमेरिका को यह सोचने पर विवश किया कि उसकी मौजूदा एयर डिफेंस प्रणाली मौजूदा परिस्थितियों से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसा इसलिए कि अमेरिका के साथ ईरान ने हालिया संघर्ष में 500 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। थाड के जोर पर अमेरिका इनमें 86 फीसद को ही इंटरसेप्ट कर पाया था।
यह भी एक बड़ा विरोधाभास ही है कि एक ऐसे दौर में जब अमेरिकी समाज में गन कल्चर हावी हो रहा है, यह देश खुद सुरक्षा के मोर्चे पर एक नई तरह की चिंता से घिरा है। अगर सब कुछ समय से सामान्य नहीं हुआ तो कल का इतिहास इस बात को हिकारत के साथ कहेगा कि जिस डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के गौरव को वापस लाने के नाम पर सत्ता में वापसी की, उनके दौर में अमेरिकी समाज का तानाबाना तो तांबे और पीतल की गोलियों से छिन्न-भिन्न हो ही रहा था, यह देश भी अपनी सुरक्षा को लेकर भी सबसे खतरनाक और नाजुक दौर से गुजर रहा था। यह देखने वाली बात होगी कि ट्रंप शासन की आक्रामक व्यापार नीति उसे इस स्थिति से बाहर निकालने में मददगार होगी कि नुकसानदेह। अगर इस बारे में कोई कयास ही लगाना हो ते हम कह सकते हैं कि बड़बोले ट्रंप ने अमेरिका के लिए जोखिम और खतरों को ही अब तक ज्यादा बढ़ाया है, उसके आगे अवसर और लाभ की जमीन लगातार कम पड़ती जा रही है।