युवराज सिद्धार्थ सिंह
भारत ने कोरोना वायरस के खिलाफ दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू करने के एक साल बाद 2 अरब वैक्सीन खुराक देने का एक बड़ा मील का पत्थर पार कर लिया है। ताजा कोविड लहरों पर वैश्विक चिंताओं के बीच, देश टीकाकरण के प्रयासों को तेज़ करने की कोशिश कर रहा है। एशियाई देशों में जापान में मामलों की वृद्धि पाई गई है, जबकि फ्रांस वैश्विक डैशबोर्ड में शीर्ष रहा है। जिस प्रकार से कोरोना प्रोटोकॉल की उपेक्षा की जा रही है, तीसरी लहर का खतरा भी मंडरा रहा है। कुछ ‘मोंनकी पोकस’ का खतरा मंडरा रहा है।पिछले दिनों एक ‘मोंनकी पोकस’ के मरीज़ को अस्पताल से इलाज कर स्वस्थ्य कर भेजा गया। कोविड-19 की दूसरी लहर की रफ्तार बेशक मंद पड़ रही हो, लेकिन टीकाकरण की रफ़्तार ने तेज़ी पकड़ी है। अगर ‘हर्ड इम्यूनिटी’ पाने के लिए हमें अपनी 70 फीसदी आबादी को वैक्सीनेट करना है तो समूचे देश में तेज़ी से टीकाकरण अभियान चलाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के तहत सभी देशवासियों को केंद्र सरकार की तरफ से नि:शुल्क वैक्सीन मिली है। इसलिए अब कोई नीतिगत कारण नहीं आता है कि जिसके चलते टीकाकरण में कोई बाधा हो। अब दो चीज़ें महत्वपूर्ण है; पहली; टीकाकरण अभियान में जुटे स्वास्थ्य कर्मियों की तत्परता बनी रहनी चाहिए, उनकी सुविधाओं में कोई कमी नहीं आनी चाहिए। दूसरी; देश में टीके की उपलब्ब्धता में कमी नहीं आनी चाहिए। अभी दो टीके कोविशील्ड व कोवैक्सीन देश में बन रहे हैं। रूसी वैक्सीन स्पूतनिक-वी बनाने के लिए डा. रैड्डी लैब से करार हुआ है। भारत की आबादी व विशालता को देखते हुए वैक्सीन बनाने का जिम्मा अधिक से अधिक योग्य कंपनियों को दिया जाना चाहिए। भारत सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। भले ही भारत एक बड़ा मील का पत्थर पार कर गया हो, बूस्टर खुराक कवरेज चिंता का विषय रहा है। सरकार ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि देश की कुल आबादी के 8 प्रतिशत लोगों को अब तक कोविड के खिलाफ तीसरा शॉट मिला है। लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए देश भर में सरकारी केंद्रों पर मुफ्त बूस्टर शॉट्स के लिए 75 दिवसीय अभियान शुरू किया गया है। यह अभियान भारत की आज़ादीे के 75 साल पूरे होने का भी प्रतीक है जिसे देश अगले महीने पूरा कर रहा है। नरेंद्र मोदी सरकार ने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए टीकाकरण की खुराक की संख्या निर्धारित करने के लिए, पीछे की ओर टिक कर एक डिजिटल घड़ी स्थापित की थी, क्योंकि भारत उपलब्धि के करीब पहुंच गया था। पिछले डेढ़ वर्षोप्रांत भी कोरोना का दंश जारी है। डेटा बेस तथा वैक्सीन की कमी तीसरी लहर में परिवर्तित हो सकती है। घातक कोरोना वायरस को जब तक जड़ से नहीं उखाड़ा जायेगा तब तक लोगों की मृत्य होती रहेगी। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संदेश में कहा कि कोरोना वैक्सीन की खरीद के लिये देशभर में निर्माण की मात्रा को तीव्र कर दिया गया है। कोविशील्ड, कोवैक्सीन व स्पूतनिक-वी की मात्रा, भारतीय जनसंख्या को वैक्सीनेट करने से बहुत कम है। ‘राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान’ को घोषित कर दिया गया था, लेकिन वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित व सुलभ नहीं की गई है।सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था का पर्दाफाश तो पहले ही हो चुका है। कमियों से ऊपर उठ कर हमें आगे का सोचना चाहिए। निःशुल्क टीकाकरण को सफल बनाने के लिए डिमांड एंड सप्लाई के गैप को कम करना होगा। चूंकि जनसंख्या अनुपात में टीके की मांग अधिक है और आपूर्ति कम है, ऐसे में ‘टीका निर्माण नीति’ को व्यापक किया जाना चाहिए। लक्ष्य बड़ा है, इसलिए वैक्सीनेशन को तेज़ किए जाने की आवश्यकता है। कोविड वायरस का डेल्टा प्लस वैरिएंट भी खतरा बढ़ा सकता है। ब्रिटेन को दुबारा लॉकडाउन इसी वैरिएंट की वजह से करना पड़ा था। ऐसे में भारत के लिए सुस्त गति से चलने का वक्त नहीं है। टीका उत्पादन के लिए सीरम इंस्टीट्यूट तथा भारत बायोटेक ने प्रशंसनीय कार्य किया है। दोनों कंपनियां बेशक अपनी पूरी क्षमता से टीके बना रही हों, परंतु ज़रूरत बहुत अधिक है। डा. रेडडी लेब द्वारा स्पूतनिक-वी बनाने के बाद भी मांग व आपूर्ति में गैप है। कोरोना के चलते दो साल से हमारी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है, इसलिए इसका अंत जरूरी है। वर्षों तक हम कोरोना में नहीं उलझे रह सकते हैं। भारत में ग्लोबल मानकों के अनुरूप दवा बनाने वाली कंपनियों की भरमार है। भारतीय कंपनियों की दवाइयां विश्व भर में निर्यात की जा रही हैं। फिर वैक्सीन मैन्युफैकचरर्स को खुले आर्थिक समीकरण के तहत वैक्सीन उत्पादन का लाइसेंस देने चाहिए । टौरेंट, ग्लेनमार्क, बायोकान, कैडिला हेल्थ केयर, डाः रेड्डी लेबोरेट्री, सिपला, अरबिंदो, ल्यूपिन, सन फार्मास्युटिकल्स तथा अन्य भारतीय कंपनियां वैश्विक गुणवत्ता के साथ विश्व भर को दवाइयां दे रही हैं। नि:शुल्क टीकाकरण अभियान के उपरांत इन सभी कंपनियों को शोध और निर्माण कार्य के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। ‘सोशल कारर्पोरेट रिसपोंसिबिलिटी’ के तहत सभी उद्योगपतियों को टीका निर्माण के लिए फंड बनाने में आर्थिक सहयोग देना चाहिए। जब मायो क्लिनिक अमेरिका, में डा: रेड्डी लेब की दवाइयां दी जा रहीं हों, तो भारत में भी टीकाकरण कार्यक्रम को वास्तविक स्वरूप तभी दिया जा सकता है, जब महत्वपूर्ण फार्मास्युटिकल् कम्पनियों को निर्माण हेतु सहयोगात्मक बनाया जाये। भारत बायोटेक की चेयरपर्सन डा. कृष्णा ऐला ने वैक्सीन निर्माण में तीव्रता लाने की प्रक्रिया का आह्वान किया है। बायोकॉन की चेयरपर्सन किरण माजुमदार शॉ ने एक कहा है, कि भारत की जनसंख्या और डेटा आभाव के कारण अनेक कठिनाइयां सामने आएंगी। कोरोना का भीषण प्रकोप ग्रामीण भारत में भी हो चुका है। अधिक मांग की पूर्ति – अधिक उत्पादन द्वारा ही संभव है। आपूर्ति के मामले में हमें पूरा विवरण देने का प्रयास करना चाहिए। इन आयामों के बिना टीका आपूर्तिकरण पर ब्यान अधूरा साबित हो सकता है। “घर घर टीका” अभियान, मात्र नारा नहीं है, इसके लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने निजी कंपनियों द्वारा निर्मित वैक्सीन को मंजूरी देने की घोषणा की है। खरीद की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार पर है, इसलिए राज्यों को टीकाकरण कार्यक्रम को अधिकाधिक कार्यान्वित करने की ओर ध्यान देना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र व विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तेज़ टीकाकरण कार्यक्रम का आग्रह किया है। अमेरिका में तो नब्बे प्रतिशत वैक्सीन लग चुकी है। यूरोपीय देशों ने वैक्सीनेशन प्लान को सफलतापूर्वक लागू किया है। फ्रांस के राष्ट्रपति एमानुएल मेक्रों को खुले आम कैफे मे काफी पीने के वीडियो ने विश्व भर को आश्वस्त किया है कि हम भी कोरोना मुक्त राष्ट्र बन सकते हैं। टीकाकरण अभियान के दम पर अतीत में भारत चेचक और पोलियो जैसी घातक बीमारियों को दूर करने में सफल रहा है। इसी तरह कोरोना वायरस के ताबूत में आखिरी कील ठोकने के लिए राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान की शानदार सफलता नरेंद्र मोदी सरकार का महत्वपूर्ण योगदान है। इसमें जनता को भी सराहना आवश्यक है। भारत कोविड-19 वायरस से मुक्त हो, विश्व मानक बन सकता है।