राजस्थान के दो मुख्यमंत्री वागड़ शक्ति पीठ माता त्रिपुरा सुन्दरी के अनन्य भक्त बने

  • दिवंगत मुख्यमंत्री श्री हरिदेव जोशी की आराध्य देवी थी त्रिपुरा सुन्दरी , राजस्थान की प्रथम महिला मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने दी माता के मन्दिर को भव्यता

नीति गोपेंद्र भट्ट

नई दिल्ली : धर्म निरपेक्ष भारत में अनेक राजनेताओं के मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारों चर्च आदि धार्मिक स्थलों पर जाने और साधु संतों से आशीर्वाद लेने के कई किस्से देखें और सुने जातें रहें हैं। भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस परम्परा को देश की सीमाओं से बाहर भी फैलाया है और अरब सहित अन्य कई देशों में भव्य भारतीय मन्दिर के निर्माण भी हुए है तथा हों रहें हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अयोद्धा में बन रहें विशाल राम मन्दिर की प्रगति को स्वयं समीक्षा करते है। उन्होंने अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी सहित देश के विभिन्न विख्यात धार्मिक स्थलों पर विशाल कोरिडोर बनाने की दिशा में सराहनीय पहल कर भारत की विश्व के आध्यात्मिक गुरु होने की पहचान को एक नया रूप दिया है।

इन दिनों देश में चैत्री नवरात्री की धूम है । हिन्दू धर्वावलंबी इन दिनों देवी की पूजा अर्चना में जुटे हुए हैं। इस मध्य पाठक एक दिलचस्प संयोग को पढ़ कर आनंदित होंगे। दक्षिणी राजस्थान के वागड़ अंचल के बाँसवाड़ा में माता त्रिपुरा सुन्दरी का एक अति प्राचीन देवी मन्दिर है । इसे वागड़ का शक्ति पीठ माना जाता है। यह एक सुखद संयोग ही कहा जा सकता है कि प्रदेश के दो मुख्यमंत्रियों श्री हरिदेव जोशी और श्रीमती वसुन्धरा राजे माता त्रिपुरा सुन्दरी की अनन्य भक्त बनी और दोनों राजनीति के शिखर तक पहुँचें। त्रिपुरा सुन्दरी दिवंगत मुख्यमंत्री श्री हरिदेव जोशी की आराध्य देवी थी और उन्होंने बियाबान जंगल के मध्य स्थित माता के इस मन्दिर का सर्व प्रथम जीर्णोद्धार कराया और यहाँ कई धार्मिक आयोजन करायें वहीं राजस्थान की प्रथम महिला मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने माता के मन्दिर को अति भव्य स्वरूप देने में महती भूमिका निभाई।

विलक्षण व्यक्तित्व के धनी राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी की माता त्रिपुरा सुन्दरी में गहरी आस्था थी। वे माता के अनन्य भक्त थे । वे अपने गृह अंचल की हर यात्रा की शुरूआत बांसवाड़ा से सत्रह किमी दूर तलवाड़ा कस्बे और हवाई पट्टी के निकट स्थित त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति पीठ के अति प्राचीन मंदिर में जाकर ही करते थे। वे वहां पूजा अर्चना करने के बाद ही अपना दूसरा कोई काम शुरू करते थे।उनकी इस आस्था का ही परिणाम रहा कि एक छोटे से गाँव में गरीब परिवार में जन्मे जोशी राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री बने। उनके अथक प्रयासों से त्रिपुरा सुन्दरी देवी का यह तीर्थ निरन्तर विकसित और देश-विदेश में प्रसिद्ध होता गया। श्री जोशी ने पांचाल समाज के साथ मिल इस ऐतिहासिक मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और प्राण प्रतिष्ठा आदि आयोजनों में गहरी रूचि लेते हुए इस प्राचीन पीठ तक आने जाने वाले मार्गों और सड़कों आदि का निर्माण करवा आवागमन को सुगम बनाया ।

कालांतर में राजस्थान की एक और मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे भी मध्यप्रदेश के दतियाँ स्थित अपनी कुल देवी पीताम्बरा माता के साथ ही त्रिपुरा सुंदरी माता की अनन्य भक्त हुई और उन्होंने मन्दिर के वैभव को और अधिक बढ़ाया और मंदिर के सौन्दर्यकरण आदि कई काम करवा मन्दिर को भव्य स्वरूप दिया । साथ ही यहाँ हवाई पट्टी का निर्माण भी कराया । बताया जाता है कि सदियों पुराना यह शक्ति पीठ प्राचीनकाल में भी तत्कालीन राजा-महाराजाओं के लिए शक्ति संचय एवं दैवी कृपा पाने का अनन्य आश्रय स्थल रहा। बहुत कम लोग ही यह जानते होंगे कि राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत श्री हरिदेव जोशी अपने पिताजी पं. पन्नालाल जोशी की ही तरह एक अच्छे ज्योतिषी और प्राच्य विद्याओं के मर्मज्ञ थे। देश के कुछ लब्ध-प्रतिष्ठित माने हुए ज्योतिषियों ने ज्योतिषीय दृष्टि से उनके प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने के योग बताये थे। बताया जाता है कि यह भविष्यवाणी विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्विद विश्व विजय पंचांग एवं प्रसिद्ध ज्योतिष पत्रिका ’’ज्योतिष्मती’’ के संपादक पं. हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने की थी। बकायदा यह राय उन्होंने १२ जनवरी १९७४ को श्री जोशी के पिता पं. पन्नालाल जोशी को लिखे पत्र में भीव्यक्त की । पं. हरदेव शर्मा ने ९ जनवरी १९७४ से ६ अप्रेल १९७४ की ज्योतिष्मती पत्रिका में भी इस बात कासंकेत दिया था। इस पत्रिका में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के प्रतिनिधि श्री राम निवास मिर्धाको हरा कर मुख्यमंत्री का पद प्राप्त करने में सफल रहे श्री हरिदेव जोशी के विलक्षण व्यक्तित्व पर भी प्रकाशडाला गया था । बताते है कि स्वयं पंडित हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने इस दौरान जयपुर में एक दिसम्बर ७३ की रातश्री जोशी को कुछ प्रयोग बताए थे जिनमें कवच कुंजिका स्तोत्र और अर्जुनकृत दुर्गास्तुति का नित्यपाठ करनेकी सलाह दी थी। साथ ही श्री जोशी के पिता श्री पन्नालाल जोशी को भी यह सुझाव दिया था कि वे सार्ध-नवदुर्गा प्रयोग कराएँ। उनका मानना है कि यदि यह तमाम अनुष्ठान ठीक-ठीक हो गए होते तो श्री हरिदेव जोशी हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री पद पर प्रतिष्ठित होते ।

पं० हरदेव शर्मा त्रिवेदी श्री हरिदेव जोशी को पग-पग पर सलाह देते रहे और एक-एक दिन की कुण्डली एवं ग्रहों की स्थिति से वाकिफ करवाते थे। वे अपने मित्र तथा सिद्ध ज्योतिर्विद जोशी के पिता पन्नालाल जोशीसे भी अक्सर ज्योतिष योग एवं तंत्र आदि विषयों पर विचार-विमर्श करते रहते थे।श्री हरिदेव जोशी का भी ज्योतिष और योग मार्ग आदि पर गहरा आस्था एवं विश्वास था। वे विशेषज्ञ पंडितों से प्रायः अनुष्ठान करवाते थे। उनके जयपुर निवास पर भी अक्सर पंडितों का जमावड़ा रहता था।

श्री हरिदेव जोशी के गृह जिले बांसवाड़ा में भी अनुष्ठानों का क्रम अक्सर बना रहता था। श्री हरिदेव जोशी ने कई बार जाने माने पं. महादेव शुक्ल के निर्देशन में शतचण्डी सहस्रचण्डी लघुरूद्र महारूद्र महामृत्युन्जय सम्पुट सहित रूद्रार्चन कराये। खासकर माता त्रिपुर सुन्दरी की अर्चना के निमित्त श्रीयंत्र पूजा श्रीविद्याविधानम् बगलामुखी आदि तमाम साधनाओं में उन्होंने भी कई बार हिस्सा लिया । श्री हरिदेव जोशी ने त्रिपुरासुन्दरी शक्तिपीठ में कई बार पं. महादेव शुक्ल के निर्देशन में सर्वविध कल्याण एवं विभिन्न बाधाओं से मुक्तिके लिए मन्दिर परिसर में पीताम्बरा महायज्ञ एवं जपानुष्ठान कराया। प्रायः संकट एवं चुनाव के दिनों में श्री जोशी ने आध्यात्मिक प्रयोगों का सहारा लिया और अक्सर होते रहने वाले अनुष्ठानों का ही असर रहा कि श्री हरिदेव जोशी कभी अपने राजनैतिक शत्रुओं से परास्त नहीं हुए और कइयों को उनसे मुँह की खानी पड़ी । श्री जोशी के जीते जी वे कभी सर न उठा सके। इसे चमत्कार ही कहा जा सकता है कि श्री जोशी के कई विरोधी चुनाव समीप आते ही उनके भक्त हो जाते थे ।

एक बार राजनैतिक साजिश का शिकार होने के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री राजीव गाँधी ने श्री जोशी को कुछ प्रदेशों का राज्यपाल बना कर प्रदेश की राजनीति से दूर भेज दिया था लेकिन बाद में उन्ही श्री राजीव गाँधी ने अपनी गलती सुधार कर श्री जोशी को पुनः तीसरी बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया। यह सत्य ही है कि श्री हरिदेव जोशी वह शख्सियत थी जो सन् १९७७ के जनता लहर वाले चुनाव में बांसवाड़ा से बहुमत के साथ विजयी हुए यह वह समय था जब जनता लहर में बड़े-बड़े नेताओं को भी पराजय के साथ चुनावों में धूल चाटनी पड़ी थी। इससे पूर्व भी देश की सबसे ताकतवर मानी जाने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मती इंदिरा गाँधी की इच्छा जोशी को मुख्यमंत्री बनाने की नहीं थी मगर अपनी लोकप्रियता बुद्धि चातुर्य और देव शक्ति के बलबूते पर प्रदेश के विधयकों ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए चुन लिया । इस बारे में पं. हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने लिखा है- ’’राजस्थान के छठे मुख्यमंत्री के रूप में वे विरोधियों को ’’जेतारमपराजित’’ करके चुने गए हैं।’ ’तत्कालीन राजनैतिक कुटिलताओं का खाका खिंचते हुए वे आगे लिखते हैं- कतिपय लोगों की योजना थी कि पंजाब हरियाणा के समान राजस्थान में भी कोई जाट नेता मुख्यमंत्री बनाया जाए। इस प्रकार जैसलमेर गंगानगर से अमृतसर तक स्वेच्छा चारी जाट राज्य स्थापित हो जाएगा और राजनीतिक प्रभुता पाकर वह सदा दिल्ली को वोट देंगे। सरदार स्वर्णसिंह जाट साम्राज्य के स्वप्न दृष्टा हैं। इससे पहले सरदार बलदेव सिंह थे। लेकिन हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अपने व्यवहार से अन्य वर्गो को असन्तुष्ट कर दिया और तत्कालीन गृहमंत्री श्री उमा शंकर दीक्षित और कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. शंकरदयाल शर्मा और श्री नवल किशोर शर्मा अग्रणी हो कर आगे आये । प्रधानमंत्री के इन विश्वस्त सहयोगियों का श्री हरिदेव जोशी को आशीर्वाद और समर्थन प्राप्त था फिर राजपूतों जाटों और कम्युनिस्टों ने भी श्री जोशी का समर्थन किया।’ज्योतिष्मती’’ के इसीअंक में आगे लिखा कि जोशी सामन्तवाद के कट्टर विरोधी रहे हैं उस वक्त ब्राह्मण राजपूतों आदि का समर्थन भी उनको मिला। उस वक्त की राजनीति को रेखांकित करते हुए पत्रिका ने लिखा कि श्री चन्द्रेशखर की पहली रिपोर्ट को तत्कालीन विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह ने गलत बताया था। इस समय तक श्री रामनिवास मिर्धा का नाम तक सुनाई नहीं पड़ा था। सरदार स्वर्णसिंह आगे बढ़े और प्रधानमंत्री को कहकर श्री मिर्धा को उम्मीदवार बनाया लेकिन पराजय की आशंका से खुलकर नहीं कहा कि श्री राम निवास मिर्धा को चुनो। जमीनी हकीकत श्री जोशी के पक्ष में होने की जानकारी मिलने पर हाईकमान ने भी रणक्षेत्र से लौटने में ही अपनी मानरक्षा मानी।’’पत्रिका ने लिखा कि श्री जोशी अपराजित को जीतने वाले हैं। जोशी भारत के रंगमंच पर नूतन शक्ति है।उन्होंने राजस्थान में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का पथ दृढ़ता से अपनाया और अंग्रेजों शासन केअभिशाप से परेश को सर्वथा मुक्त करने में अहम् भूमिका निभाई तभी वे जन नेता बनने में सफल हुए तो विश्वास करना चाहिए कि श्री हरिदेव जोशी एक दिन नई दिल्ली के प्रधानमंत्री के निवास गृह में विराजेंगे।

श्री हरिदेव जोशी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हुए पत्रिका में कहा गया कि यह उनकी संगठन शक्ति का ही परिणाम था कि प्रधानमंत्री पंडित श्री जवाहर लाल नेहरू के समक्ष श्री मोहनलाल सुखाड़िया के पक्ष में मजबूती से अपनी बातें रखी और श्री सुखाड़िया देश में सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने और सन् १९५५ से १९७१ तक श्री सुखाड़िया मंत्रिमण्डल टिका रहा। श्री हरिदेव जोशी सुखाड़िया जी और उनके बाद मुख्यमंत्री बने श्री बरकतुल्ला खान मंत्रिमण्डल की ताकतवर शक्ति रहे । जैसे पाण्डवों की शक्ति भगवान कृष्ण थे। श्री हरिदेव जोशी ने एक पत्रकार और ’’नवयुग दैनिक’’ के संपादक के रूप में भी अपनी अलग पहचान बनाई। हालाँकि वे पत्रकारिता को ज्यादा दिन जारी नहीं रख पाएँ लेकिन राजनीति में उनको आगे बढ़ने से कोई ताकत नही रोक सकी।राजयोग सम्पन्न व्यक्तित्व के धनी श्री जोशी ने अपने जीवन में सदैव ईश्वरीय शक्तियों में गहन आस्था रखी और दक्षिणी राजस्थान के वागड़ अंचल ही नहीं बल्कि प्रदेश एवं देश के मूर्धन्य वेद विद्वानों ज्योतिर्विदों और महात्माओं से अपना निरन्तर सम्पर्क बनाए रखा । कितनी ही कठिन परिस्थितियाँ रही हो मगर श्री जोशी ने नित्य कर्म और साधना का परित्याग नहीं किया। वे प्रतिदिन अल सुबह उठते थे और संध्या ध्यान पूजा-अर्चना करने के बाद ही अपने दिन की शुरुआत करते थे । उनके जीवन की सफलता के पीछे भाग्य के साथ-साथ चोटी के संतों की कृपा तथा ईश्वरीय सत्ता के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा और विश्वास भी प्रमुख कारण रहे थे।