सुनील कुमार महला
वीं और 8 वीं कक्षाओं में ‘नो डिटेंशन पालिसी’ के खात्मे के साथ अब सरकार ने उच्च शिक्षा क्षेत्र में भी हाल ही में नये शैक्षणिक बदलाव करते हुए एक ड्राफ्ट जारी किया है। उल्लेखनीय है कि अब विश्वविद्यालयों में बिना नेट(नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट) और पीएचडी के भी कुलपति बना जा सकेगा। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विनिमय 2025 का ड्राफ्ट जारी किया है, जिसके अनुसार अब ऐसे कैंडिडेट्स भी कुलपति बन सकेंगे जिन्होंने नेट-पीएचडी नहीं किया है। दूसरे शब्दों में कहें तो अब कोई भी इंडस्ट्री, पब्लिक पॉलिसी, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन या पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग का शख्स वीसी बन सकता है।कुलपति ही नहीं, विश्वविद्यालयों सहित देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर जैसे पदों पर भर्ती से जुड़े नियमों में भी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा बदलाव किया गया है। यह उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक नायाब और बड़ी पहल है। नायाब और बड़ी पहल इसलिए क्यों कि इससे जहां एक ओर विभिन्न विश्वविद्यालयों को बड़ी संख्या में दूरदर्शी, प्रशासनिक क्षमता रखने वाले विद्वान या यूं कहें कि लीडरशिप वाले कुलपति मिल सकेंगे, वहीं दूसरी ओर सरकार के इस निर्णय से उच्च शिक्षण संस्थाओं को भी असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर मिल सकेंगे। पाठकों को बताता चलूं कि नए नियमों के अनुसार कुलपति के लिए अब दस साल का शिक्षण अनुभव अनिवार्य नहीं होगा। वर्तमान में सरकार द्वारा इसे समाप्त कर दिया गया है और कुलपति नियुक्ति नियमों को पहले से कहीं अधिक लचीला बनाया गया है। वर्तमान नियमों के अनुसार अब शिक्षण कार्य के साथ शोध, शैक्षणिक संस्थान, उद्योग व लोक प्रशासक आदि क्षेत्रों में भी दस साल का अनुभव रखने वाले कुलपति बनने के पात्र होंगे। यह भी गौरतलब है कि आयोग ने इसके साथ ही कुलपति के चयन से जुड़ी सर्च कमेटी में बदलाव की सिफारिश की है। इसमें यूजीसी के प्रतिनिधि भी अब अनिवार्य रूप से शामिल होंगे। यूजीसी ने उम्र को लेकर भी नियमों में बदलाव किया है। इन नियमों के तहत अब कुलपति को एक संस्थान में अधिकतम दो कार्यकाल ही मिलेंगे, जो पांच-पांच साल के होंगे। हालांकि, यह भी उल्लेखनीय है कि इस पद पर उन्हें सिर्फ सत्तर साल की उम्र तक ही नियुक्त किया जाएगा। इस दौरान जो पहले समाप्त हो जाएगा, वह जुड़ेगा। यूजीसी ने अपने ड्राफ्ट में यह प्रस्ताव किया है यदि नए नियमों के तहत किसी भी संस्थान में कुलपति की तैनाती नहीं दी जाएगी, तो उसे शून्य घोषित माना जाएगा। इसके अतिरिक्त, विश्वविद्यालयों सहित उच्च शिक्षण संस्थानों में बगैर पीएचडी व नेट के सिर्फ मास्टर डिग्री करने वालों को भी असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति देने की सिफारिश यूजीसी ने की है। जानकारी के अनुसार इनमें एमई, एमटेक जैसे डिग्री हासिल करने वाले शामिल होंगे। गौरतलब है कि यूजीसी ने छह जनवरी को जारी भर्ती नियमों से जुड़े इस मसौदे को लेकर लोगों से पांच फरवरी तक सुझाव देने को कहा है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों में अनेक ऐसे विद्वान व विशेषज्ञ हैं जिन्होंने भले ही कभी किन्हीं महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य नहीं किया हो, लेकिन ऐसे लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता और अनुभव लिए होते हैं। ऐसे में इन सभी लोगों को शिक्षा के क्षेत्र में शामिल होने का सुअवसर प्राप्त हो सकेगा और वे अनुभवों और विशेषज्ञता से शिक्षा के क्षेत्र में नवाचारों को जन्म देकर भारतीय शिक्षण क्षेत्र को नई ऊंचाइयों की ओर ले जा सकेंगे। अब तक कुलपतियों को दस साल का अनुभव न होने के कारण, अनेक विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्ति में अनेक विश्वविद्यालयों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। यह अत्यंत काबिले-तारीफ है कि यूजीसी ने नए नियमों में नेतृत्व क्षमता और प्रशासनिक कौशल को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया है। वास्तव में, यूजीसी ने कुलपति नियुक्ति में जो बदलाव किया है, वह कोई नया बदलाव नहीं है। इससे पहले भी इस तरह की नियुक्तियां की जातीं रहीं हैं। मसलन, गुजरात में ‘रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय’, जिसे बाद में राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया था,प्रशासनिक अनुभव रखने वाले व्यक्ति को कुलपति बनाया गया था। इसी प्रकार से राजस्थान में सरदार पटेल पुलिस सुरक्षा विश्वविद्यालय जैसे संस्थान में पुलिस अधिकारियों को, तथा गुजरात के वड़ोदरा में गति शक्ति विश्वविद्यालय में रेलवे के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्ति को कुलपति बनाया गया। इतना ही नहीं कई यूनिवर्सिटीज में तो प्रशासनिक अधिकारी जैसे आईएएस ऑफिसर भी वीसी बने हैं।हालांकि, यहां यह भी उल्लेखनीय है कि यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (यूजीसी) के अपॉइंटमेंट और प्रमोशन के लिए प्रस्तावित नए नियमों को लेकर मिली-जुली प्रक्रियाएं सामने आ रही हैं। कुछ लोग इसे फायदेमंद तो कुछ लोग इसमें खामियां बता रहे हैं। कुछ लोगों का नये ड्राफ्ट के संबंध में यह कहना है कि इन नये नियमों से टीचिंग और मुश्किल बन जाएगी। इस संबंध में कई टीचर्स ऑर्गनाइजेशन ने मांग की है कि इस ड्राफ्ट – ‘यूजीसी रेगुलेशंस 2025’ (यूनिवर्सिटी में नियुक्ति और प्रमोशन के लिए न्यूनतम क्वॉलिफिकेशंस) को वापस लिया जाए। जबकि कुछ लोग यह मानते हैं कि नये नियमों से फील्ड एक्सपर्ट्स के लिए नये रास्ते खुल गए हैं। उल्लेखनीय है कि पहले के रेगुलेशंस के तहत उम्मीदवारों को जर्नल और कॉन्फ्रेस के पब्लिकेशन की संख्या पर प्रेफरेंस दी जाती थी। मगर नए ड्राफ्ट के साथ इस अकैडमिक परफॉर्मेंस इंडेक्स (एपीआई) को खत्म कर दिया जाएगा और अब सेलेक्शन कमिटी उम्मीदवारों को टीचिंग में इनोवेटिव स्किल्स के आधार पर चुनने पर जोर देगी। यह भी कि नये ड्राफ्ट के अनुसार नियुक्ति में सेलेक्शन कमिटी को 100% वेटेज दिया गया है। यानी अकैडमिक प्रोफाइल, रिसर्च पब्लिकेशन और टीचिंग के अनुभव को कोई श्रेय नहीं दिया जा रहा है। कुछ का यह भी कहना है कि नये नियमों में इंटरव्यू और आखिरी राउंड के सेलेक्शन के लिए शॉर्टलिस्ट करने की प्रक्रिया भी पारदर्शी नहीं है। कुछ एक्सपर्ट्स ने यह भी माना है कि इससे क्वालिटी टीचिंग पर व्यापक असर पड़ेगा और प्रमोशन तक में दिक्कतें होंगी।नये नियमों से यूजी और पीजी का अनुभव बेस इससे पीछे छूट जाएगा। बहरहाल, अंत में यही कहूंगा कि जो भी हो, यूजीसी का नया नियम एक प्रकार से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक नया प्रयोग और नवाचार है। जब भी ऐसे नये प्रयोग, नवाचार किसी क्षेत्र में होते हैं तो उनके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के पहलू होते हैं।कभी कुछ अच्छी चीजें निकल कर सामने आतीं हैं तो कुछ नकारात्मक चीजें भी इससे सामने आतीं हैं, लेकिन परिवर्तन समय की जरूरत होती है। हाल फिलहाल,फिलहाल यूजीसी ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बदलावों से जुड़ा एक ड्राफ्ट जारी कर विभिन्न विश्वविद्यालयों और देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों से इस संदर्भ में उनकी राय मांगी है। अब यह तो समय ही बताएगा कि यूजीसी का नया ड्राफ्ट किस कदर सफल होता है।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।