ललित गर्ग
रूस-यूक्रेन युद्ध रुकने का नाम नहीं ले रहा है, जैसे-जैसे समय बीत रहा है, अधिक विनाश एवं विध्वंस की संभावनाएं बढ़ती जा रही है। विश्व युद्ध का संकट भी मंडराने लगा है। रूस-यूक्रेन के युद्ध विराम के मामले में भारत ने प्रयास किये, उसे व्यापक प्रयास करते हुए युद्ध विराम का श्रेय हासिल करना चाहिए था, ऐसा करने की सामर्थ्य एवं शक्ति भारत एवं उसके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास है, यूक्रेन-विवाद शांत करने के लिए भारत की पहल सबसे ज्यादा सार्थक हो सकती है लेकिन जो पहल हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की, उसे आगे बढ़ाना चाहिए था, लेकिन वह कोशिश अब संयुक्तराष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतरेस ने कर दी और वे काफी हद तक सफल भी हो गए। गुतरेस खुद जाकर पूतिन और झेलेंस्की से मिले। उन्होंने दोनों राष्ट्रों के सर्वोच्च नेतृत्व को समझाने-बुझाने की कोशिश की। दुनिया को विश्वयुद्ध से बचाने के लिये इस तरह की युद्ध-विराम की कोशिश बहुत जरूरी है और ऐसी कोशिशों में तीव्र गति लायी जानी चाहिए। क्योंकि युद्ध भले ही यूक्रेन और रूस की धरती पर हो रहा हो, लेकिन उसका असर सम्पूर्ण विश्व को झेलना पड़ रहा है।
यूक्रेन और रूस में शांति का उजाला करने, अभय का वातावरण, शुभ की कामना और मंगल का फैलाव करने के लिये भारत को एक बार फिर शांति प्रयासों को तीव्र गति देनी चाहिए। मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध की विभीषिका से मुक्ति देने के लिये यह जरूरी है। इन दोनों देशों को युद्ध विराम से अभय बनकर विश्व को निर्भय बनाना चाहिए। निश्चय ही यह किसी एक देश या दूसरे देश की जीत नहीं बल्कि समूची मानव-जाति की जीत होगी। यह समय की नजाकत को देखते हुए जरूरी है और इस जरूरत को महसूस करते हुए दोनों देशांे को अपनी-अपनी सेनाएं हटाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। यह रूस का अहंकार एवं अंधापन ही है कि वह पहले दिन से ही ऐसे व्यवहार कर रहा है जैसे यूक्रेन उसके समक्ष कुछ भी नहीं, सचाई भी यही है कि यूक्रेन रूस के सामने नगण्य है। यथार्थ यह है कि अंधकार प्रकाश की ओर चलता है, पर अंधापन मृत्यु-विनाश की ओर। लेकिन रूस ने अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य का अहसास एक गलत समय पर गलत उद्देश्य के लिये कराया है।
भारत की नीति यह थी कि रूस का विरोध या समर्थन करने की बजाय हमें अपनी ताकत युद्ध को बंद करवाने में लगानी चाहिए। अभी युद्ध तो बंद नहीं हुआ है लेकिन गुतेरस के प्रयत्नों से एक कमाल का काम यह हुआ है कि सुरक्षा परिषद में सर्वसम्मति से यूक्रेन पर एक प्रस्ताव पारित कर दिया है। उसके समर्थन में नाटो देशों और भारत जैसे सदस्यों ने तो हाथ ऊँचा किया ही है। सुरक्षा परिषद का एक भी स्थायी सदस्य किसी प्रस्ताव का विरोध करे तो वह पारित नहीं हो सकता। रूस ने वीटो नहीं किया। क्योंकि इस प्रस्ताव में रूसी हमले के लिए ‘युद्ध’, ‘आक्रमण’ या ‘अतिक्रमण’ जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाकर उसे सिर्फ ‘विवाद’ कहा गया है। इस ‘विवाद’ को बातचीत से हल करने की पेशकश की गई है। यही बात भारत हमेशा कहता रहा है। इस प्रस्ताव को नार्वे और मेक्सिको ने पेश किया था। यह प्रस्ताव तब पास हुआ है, जब सुरक्षा परिषद का आजकल अमेरिका अध्यक्ष है। वास्तव में इसे हम भारत के दृष्टिकोण को मिली विश्व-स्वीकृति भी कह सकते हैं। इस प्रस्ताव के बावजूद यूक्रेन-युद्ध अभी बंद नहीं हुआ है। भारत के लिए अभी भी मौका है अपने शांति प्रयास एवं युद्ध विराम की कोशिशें तीव्र करें। रूस और नाटो राष्ट्र, दोनों ही भारत से घनिष्टता बढ़ाना चाहते हैं और दोनों ही भारत का सम्मान करते हैं। यदि प्रधानमंत्री मोदी अब भी पहल करें तो यूक्रेन-युद्ध तुरंत बंद हो सकता है। ऐसा संभव होता है तो यह भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जायेगी। भले ही भारत के रिश्ते रूस के साथ दोस्ताना के रहे हैं, लेकिन इसकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि यूक्रेन पर रूस के भीषण हमलों में वहां लोगों की जान जा रही है-न केवल निर्दोष-निहत्थे यूक्रेनियों की, बल्कि अन्य देशों के नागरिकों की भी।
यूक्रेन के साथ कोई अनहोनी होती है तो इसके लिए केवल रूस ही जिम्मेदार होगा। रूस एवं यूक्रेन के बीच इस तरह युद्धरत बने रहना खुद में एक असाधारण और अति-संवेदनशील मामला है, जो समूची दुनिया को विनाश एवं विध्वंस की ओर धकेलने जैसा है। ऐसे युद्ध का होना विजेता एवं विजित दोनों ही राष्ट्रों को सदियों तक पीछे धकेल देगा, इससे भौतिक हानि के अतिरिक्त मानवता के अपाहिज और विकलांग होने का भी बड़ा कारण बनेगा। विश्व के एक बड़े हिस्से में रूस पहले ही एक खलनायक जैसा उभर आया है। उसे विश्वशांति एवं मानवता की रक्षा का ध्यान रखते हुए युद्ध विराम के लिये अग्रसर होना चाहिए।
यह सही है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस के सुरक्षा हितों की उपेक्षा करते हुए यूक्रेन को सैन्य संगठन नाटो का हिस्सा बनाने की अनावश्यक पहल की, यही वह वजह है जिसके कारण युद्ध उग्रत्तर होता गया लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन के आम लोगों के साथ वहां रह रहे विदेशी नागरिकों की जान की परवाह न करें। फिलहाल वह ऐसा ही करते दिख रहे हैं और इसीलिए पश्चिम के साथ-साथ दुनिया के अन्य हिस्सों में भी निंदा का पात्र बने हुए हैं। खुद भारत ने सुरक्षा परिषद में यह साफ किया है कि यूक्रेन में हमला करके रूस ने उसकी संप्रभुता का उल्लंघन करने के साथ जिस तरह अंतरराष्ट्रीय नियमों की अवहेलना की, उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध में भारतीय पक्ष का रुख न केवल संवेदनशील, बल्कि संतुलित भी है। भारत ने हमले की निंदा खुले शब्दों में भले न की हो, लेकिन उसने रूसी हमले का पक्ष भी नहीं लिया है और यूक्रेन की स्वतंत्रता और संप्रभुता के पक्ष में डटा हुआ है। कुल मिलाकर, भारत शांति का पक्षधर है और रूस एवं यूक्रेन युद्ध के सन्दर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि एक साहसी लेकिन अहिंसक नेता के रूप में उभरी है।
युद्ध जब शुरू हुआ था, तब भारत पर विशेष दबाव था कि वह युद्ध रोकने की पहल करे और भारत ने अपने दायरे में रहते हुए पुरजोर कोशिश की भी है। यहां तक कि भारत के रुख से अमेरिका को भी कोई शिकायत नहीं है। रूस भारत का आजमाया हुआ मित्र देश है, इस हिसाब से भी भारत का संतुलित रुख वास्तव में युद्ध का विरोध ही है। भारत में पदस्थ रूसी राजदूत ने भी संयुक्त राष्ट्र में भारत द्वारा अपनाए गए निष्पक्ष और संतुलित रुख के लिए आभार जताया है। भारत ने न केवल संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का आह्वान किया है, बल्कि हिंसा और शत्रुता को तत्काल समाप्त करने की भी मांग की है। भारत इस समस्या का समाधान कूटनीति के रास्ते से देखना चाहता है। वह युद्ध का अंधेरा नहीं, शांति का उजाला चाहता है। पिछले दिनों कुछ व्यग्रता का परिचय देते हुए पोलैंड जैसे देश भारत या भारतीयों के खिलाफ दिखने लगे थे, लेकिन उन्हें भी भारत की कोशिशों का महत्व समझ में आ गया है। भारत की कोशिशें उन देशों से कहीं बेहतर हैं, जो यूक्रेन को हथियार देकर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। लेकिन उन्हें यह सोच लेना चाहिए, जब रूस में तबाही शुरू होगी, तब इस युद्ध का क्या रुख होगा? यह तबाही रूस नहीं, बल्कि समूची दुनिया की तबाही होगी, क्योंकि रूस परमाणु विस्फोट करने को विवश होगा, जो दुनिया की बड़ी चिन्ता का सबब है।
बड़े शक्तिसम्पन्न राष्ट्रों को इस युद्ध को विराम देने के प्रयास करने चाहिए। जबकि वे हिंसक एवं घातक मारक अस़्त्र-शस़्त्र देकर युद्ध को और तीव्र कर रहे हैं, जबकि युद्ध क्षेत्र में आम लोगों तक हर जरूरी मानवीय मदद पहुंचाने की जरूरत है, भारत ने मानवीय आधार पर इसी तरह की राहत सामग्री यूक्रेन भेजी है। भारत ने उचित ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को यह भी बता दिया है कि वह सभी संबंधित पक्षों के संपर्क में है और उनसे बातचीत की मेज पर लौटने का आग्रह कर रहा है। निस्संदेह, भारत को मानवता के पक्ष के साथ-साथ अपना हित देखते हुए शांति और राहत के प्रयासों में जुटे रहना चाहिए और अपने युद्ध-विराम प्रयासों को तीव्र गति देनी चाहिए।