यूसीसी देश की राजनीति के सबसे विवादित मुद्दों में रहा है। हालांकि संविधान में भी नीति निर्देशक तत्वों के रूप में इसका उल्लेख है। समानता एक सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदेशिक लोकतांत्रिक मूल्य है। इस मूल्य की प्रतिष्ठापना के लिये समान कानून की अपेक्षा है। इस लिहाज से राजनीति की सभी धाराएं इस बात पर एकमत रही हैं कि देश में सभी पंथों, आस्थाओं से जुड़े लोगों पर संपत्ति के अधिग्रहण और संचालन, विवाह, उत्तराधिकार, तलाक और गोद लेना आदि को लेकर एक ही तरह के कानून लागू होने चाहिए। राष्ट्र का कोई भी व्यक्ति, वर्ग, सम्प्रदाय, जाति जब-तक कानूनी प्रावधानों के भेदभाव को झेलेगा, तब तक राष्ट्रीय एकता, एक राष्ट्र की चेतना जागरण का स्वप्न पूरा नहीं हो सकता। भारत में समान नागरिक संहिता हाल ही में एक व्यापक रूप से बहस का विषय है क्योंकि राष्ट्रीय एकता और लैंगिक न्याय, समानता और महिलाओं की गरिमा को बढ़ावा देने के लिए यह आवश्यक है। समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि समाज के सभी वर्गों के साथ, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, राष्ट्रीय नागरिक संहिता के अनुसार समान व्यवहार किया जाएगा, जो सभी पर समान रूप से लागू होगा। यह विवाह, तलाक, रखरखाव, विरासत, गोद लेने और संपत्ति के उत्तराधिकार जैसे क्षेत्रों को कवर करती हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ की अनुमति देकर हमने एक वैकल्पिक न्यायिक प्रणाली का गठन किया है जो अभी भी हजारों साल पुराने मूल्यों पर चल रही है। एक समान नागरिक संहिता इसे बदल देगी। यह इस आधार पर आधारित है कि आधुनिक सभ्यता में धर्म और कानून के बीच कोई संबंध नहीं है। संविधान के भाग IV, अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि “राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा”।
प्रियंका सौरभ
देश का संविधान हमें समानता और समरसता के लिए प्रेरित करता है और समान नागरिक संहिता कानून लागू करने की प्रतिबद्धता इस प्रेरणा को साकार करने के लिए एक सेतु का कार्य करेगी।” संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता की चर्चा की गई है। राज्य के नीति-निर्देशक तत्व से संबंधित इस अनुच्छेद में कहा गया है कि ‘राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा’।
भारतीय संविधान के मुताबिक भारत एक धर्म-निरपेक्ष देश है, जिसमें सभी धर्मों व संप्रदायों (जैसे – हिंदू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, आदि) को मानने वालों को अपने-अपने धर्म से सम्बन्धित कानून बनाने का अधिकार है। भारत में दो प्रकार के पर्सनल लॉ हैं। पहला है हिंदू मैरिज एक्ट 1956 जो कि हिंदू, सिख, जैन व अन्य संप्रदायों पर लागू होता है। दूसरा, मुस्लिम धर्म को मानने वालों के लिए लागू होने वाला मुस्लिम पर्सनल लॉ। ऐसे में जबकि मुस्लिमों को छोड़कर अन्य सभी धर्मों व संप्रदायों के लिए भारतीय संविधान के प्रावधानों के तहत बनाया गया हिंदू मैरिज एक्ट 1956 लागू है तो मुस्लिम धर्म के लिए भी समान कानून लागू होने की बात की जा रही है, जो प्रासंगिक होने के साथ नये बन रहे भारत की अपेक्षा है। भारत की कानून विषयक विसंगतियों को दूर करना अपेक्षित है। क्योंकि विश्व के कई देशों में समान नागरिक संहिता का पालन होता है। इन देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्किये, इंडोनेशिया, सूडान, मिस्र, अमेरिका, आयरलैंड आदि शामिल हैं। इन सभी देशों में सभी धर्मों के लिए एकसमान कानून है और किसी धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग कानून नहीं हैं। लेकिन भारत में राजनीतिक फायदे के लिए तुष्टिकरण का ऐसा खेल खेला गया, जो विविधता में एकता एवं वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन को तार-तार कर रहा है।
निजी कानूनों के कारण कहीं-कहीं विसंगति के हालात भी पैदा हो रहे हैं। सामुदायिक घटनाओं को भी राजनीतिक दृष्टि से देखा जाता है, घटना को देखने का यह नजरिया वास्तव में वर्ग भेद को बढ़ावा देने वाला है। समान नागरिक संहिता कानून बनते ही देश की विशेषकर आधी मुस्लिम आबादी के साथ न्याय हो सकेगा। बहुविवाह पर रोक लगेगी। महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलेगा, बच्चों को गोद लेने का भी अधिकार पाना संभव होगा। सभी धर्मों में लड़की की शादी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष होगी। वर्तमान में मुस्लिम समाज शरिया पर आधारित पर्सनल लॉ के तहत संचालित है। इसमें मुस्लिम पुरुषों को चार विवाह की इजाजत है। इसके लागू होते ही एक विवाह ही मान्य होगा। मुस्लिम लड़कियों को भी लड़कों के बराबर अधिकार मिलेगा। इद्दत और हलाला जैसी कुप्रथा पर प्रतिबंध लगेगा। तलाक के मामले में शौहर और बीवी को बराबर अधिकार मिलेंगे। भारत कई धर्मों, रीति-रिवाजों और प्रथाओं वाला देश है। समान नागरिक संहिता भारत को आजादी के बाद से अब तक की तुलना में अधिक एकीकृत करने में मदद करेगी। यह प्रत्येक भारतीय को, उसकी जाति, धर्म या जनजाति के बावजूद, एक राष्ट्रीय नागरिक आचार संहिता के तहत लाने में मदद करेगा। यूसीसी वोट बैंक की राजनीति को कम करने में भी मदद करेगी जो कि ज्यादातर राजनीतिक दल हर चुनाव के दौरान करते हैं। यूसीसी समाज को आगे बढ़ने में मदद करेगा और भारत को वास्तव में विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य की ओर ले जाएगा।
यूसीसी यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है कि सभी भारतीयों के साथ समान व्यवहार किया जाए। विवाह, विरासत, परिवार, भूमि आदि से संबंधित सभी कानून सभी भारतीयों के लिए समान होने चाहिए। एक समान नागरिक संहिता का मतलब यह नहीं है कि यह लोगों की अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता को सीमित कर देगा, इसका मतलब सिर्फ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाएगा और भारत के सभी नागरिकों को समान कानूनों का पालन करना होगा चाहे कुछ भी हो कोई भी धर्म. विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के संहिताकरण और एकीकरण से अधिक सुसंगत कानूनी प्रणाली का निर्माण होगा। इससे मौजूदा भ्रम कम होगा और न्यायपालिका द्वारा कानूनों का आसान और अधिक कुशल प्रशासन संभव हो सकेगा। भारत में हिंदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों के संहिताबद्ध व्यक्तिगत कानूनों का एक अनूठा मिश्रण है। सभी भारतीयों के लिए एक ही क़ानून पुस्तक में कोई समान परिवार-संबंधी कानून मौजूद नहीं है जो भारत में सह-अस्तित्व वाले सभी धार्मिक समुदायों के लिए स्वीकार्य हो। यूसीसी निश्चित रूप से वांछनीय है और भारतीय राष्ट्रीयता को मजबूत करने और समेकित करने में काफी मदद करेगा। मतभेद इसके समय और इसे साकार करने के तरीके पर हैं। राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इसे एक भावनात्मक मुद्दे के रूप में उपयोग करने के बजाय, राजनीतिक और बौद्धिक नेताओं को आम सहमति बनाने का प्रयास करना चाहिए।
सवाल अल्पसंख्यकों की सुरक्षा या यहां तक कि राष्ट्रीय एकता का भी नहीं है, यह तो बस प्रत्येक मानव व्यक्ति के साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार करने का है, जिसे करने में व्यक्तिगत कानून अब तक विफल रहे हैं। धार्मिक व्यक्तिगत कानून प्रकृति में स्त्री-द्वेषी हैं और पुराने धार्मिक नियमों को पारिवारिक जीवन को नियंत्रित करने की अनुमति देकर हम सभी भारतीय महिलाओं को अधीनता और दुर्व्यवहार की निंदा कर रहे हैं। समान नागरिक संहिता से भारत में महिलाओं की स्थिति सुधारने में भी मदद मिलेगी। इसी प्रकार से सभी धर्म के लोगों को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। इसमें विवाह का पंजीकरण भी जरूरी है। साथ ही अन्य भी बहुत कुछ है जो स्त्री-पुरुष के बीच के विभेद को इसके माध्यम से समाप्त किया जा सकता है। अच्छा हो कि इसकी खूबियों को सभी समझें, विरोध छोड़ उसकी प्रशंसा करने आगे आएं। वहीं आज जरूरत इस बात की है कि देश के सभी राज्य और केंद्र सरकार जल्द इस पर कानून बनायें। अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे। शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर भी असर पड़ेगा और राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे और वोटों का धूू्रवीकरण नहीं होगा। समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में भी सुधार आएगा। अगर हम यह चिंतन भारतीय भाव से करेंगे तो स्वाभाविक रूप से यही दिखाई देगा कि समान नागरिक कानून देश और समाज के विकास का महत्वपूर्ण आधार बनेगा।