केन्द्रीय गृह अमित शाह का 31 मार्च 2026 के पहले नक्सलवाद को खत्म करने के आश्वासन पर बढ़ते कदम

Union Home Minister Amit Shah's promise to end Naxalism before 31 March 2026

अशोक भाटिया

नक्सलवाद को खत्म करने की लड़ाई में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में एक ऑपरेशन में सीपीआई -माओवादी के महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बासवराजू सहित 27 खूंखार माओवादियों को मार गिराया । छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ चल रहा अभियान बहुत बड़े मुकाम तक पहुंचा है। इसमें 21 मई 2025 को नक्सली इतिहास के पन्ने में नक्सली सफाई का एक ऐसा अध्याय लिख दिया गया है, जो अब नक्सलियों के सफाई की अंतिम कहानी को लिखेगा। साल 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी की कोख से जन्मे नक्सलवाद और उसकी लड़ाई में पहली बार ऐसा हुआ है, जब नक्सलियों के महासचिव की टीम से सीधी टक्कर हुई है। जिसमें उनका शीर्ष कमांडर मारा गया हो। नक्सलियों ने जब से अभियान की शुरुआत की थी, तब से लेकर आज तक ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी महासचिव कमांडर से सुरक्षा बलों की सीधी टक्कर हुई और इस टक्कर में सुरक्षा बलों को बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। इससे पहले महासचिव स्तर के कमांडर नीतियां बनाते थे। लड़ाई पहले लेयर के नक्सली लड़ते थे। लेकिन अब शायद वह लेयर भी खत्म हो गया है, जो सुरक्षा बलों के चलाए जा रहे अभियान की सबसे बड़ी कामयाबी है।

बताया जाता है कि नक्सलियों के लिए मई और जून का महीना उनके हिसाब किताब का महीना होता है। इस महीने में नक्सली अपने पूरे नेटवर्क का हिसाब किताब करते हैं। इस महीने को नक्सलियों के हिसाब किताब का महीना कहा जाता है। नक्सलियों के हिसाब किताब के महीने से तात्पर्य सिर्फ इस बात का नहीं है कि नक्सलियों को कितनी लेवी आई है या नक्सली कितना पैसा वसूले हैं। हिसाब किताब का महीना इसलिए इसे कहा जाता है कि नक्सली चाहे दवा का भंडारण हो या फिर खाने का सामान या बंदूक की जरूरत हो या फिर गोलियों की यह सभी हिसाब किताब मई और जून महीने में कर लेते हैं।

इस सफलता के पीछे की सबसे बड़ी वजह यह भी बताई जाती है कि जंगल में जहां नक्सली रहते हैं, उसके आसपास छोटी बड़ी नदियां होती हैं। मई और जून के महीने में इन नदियों में पानी नहीं होता है। जिसके कारण परिवहन बहुत आसान होता है। खाने पीने का सामान, दवाई या उससे जुड़ी चीज आसानी से बाजार से लेकर जंगल में उनके ठिकाने तक पहुंचाई जाती है। बारिश का महीना होने के बाद नदियों में पानी आ जाता है। फिर नदी पार करके इन सामानों को लाना काफी मुश्किल हो जाता है। इसलिए इस महीने में इनके भंडारण का सबसे ज्यादा काम होता है। इस बार इसी हिसाब किताब के महीने पर सुरक्षा एजेंसियों ने सबसे ज्यादा पहरा बैठा दिया है। जिसका परिणाम है कि अब नक्सलियों के महासचिव स्तर के कमांडर मारे जा रहे हैं।

इस ऑपरेशन में हमारे सुरक्षा बलों ने जिन 27 खूंखार माओवादियों को मार गिराया, उनमे ही नंबाला केशव राव, उर्फ बासवराजू भी शामिल है, जो सीपीआई-माओवादी का महासचिव, शीर्ष नेता और नक्सल आंदोलन की रीढ़ था। यह पहली बार है जब भारत की नक्सलवाद के खिलाफ तीन दशकों की लड़ाई में महासचिव स्तर के नेता को हमारे सुरक्षा बलों ने मार गिराया है।गृह मंत्री ने कहा कि इस बड़ी सफलता के लिए वे हमारे बहादुर सुरक्षा बलों और एजेंसियों की सराहना करते हैं। श्री शाह ने कहा कि यह भी खुशी की बात है कि ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के पूरा होने के बाद छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया और 84 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है।

ज्ञात हो कि नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू पर छत्तीसगढ़ सरकार ने एक करोड़ रुपए का इनाम घोषित किया था। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में भी उस पर अलग-अलग इनाम घोषित थे। उसकी गिनती उन चुनिंदा नक्सल नेताओं में होती थी जो पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति दोनों सर्वोच्च निकायों में शामिल था। उसे एक ऐसा नक्सल नेता माना जाता था जो जंगल में अपनी तीन स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था और नेटवर्क के कारण कभी भी पकड़ा नहीं गया। लेकिन इस बार सुरक्षा बलों ने उसे चकमा देते हुए मार गिराया है।

बसवराजू का जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियान्नापेटा गांव में हुआ था। उसने वारंगल के इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक किया था। लेकिन पढ़ाई के बाद उसने बंदूक उठा लिया। साल 1970 के दशक में उसने नक्सली आंदोलन से जुड़कर प्रकाश, कृष्णा, विजय, उमेश और कमलू जैसे कई छद्म नामों से काम करना शुरू कर दिया। वो शुरू में जमीनी कार्यकर्ता था, लेकिन जल्द ही संगठन की रणनीति और हथियारों की ट्रेनिंग में माहिर हो गया। साल 1992 में उसे पीपुल्स वार ग्रुप की केंद्रीय समिति का सदस्य बनाया गया।

उस वक्त इस ग्रुप का महासचिव गणपति हुआ करता था। बसवराजू को गणपति और सीतारामैया जैसे नेताओं से गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण मिला। उसने धीरे-धीरे सैन्य रणनीति, आईडी और बारूदी सुरंगों के संचालन में महारत हासिल कर लिया। साल 2018 में बसवराजू को सीपीआई (माओवादी) का महासचिव नियुक्त किया गया। उसने गणपति की जगह ली, जिसने उम्र और बीमारी के चलते पद छोड़ दिया था। लेकिन बसवराजू की कमजोरी यह रही कि उसके पास संगठन को राजनीतिक रूप से चलाने का अनुभव नहीं था।

इसलिए सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि उसके कार्यकाल में माओवादी आंदोलन रणनीतिक रूप से कमजोर हुआ। हालांकि वह सैन्य अभियानों के लिए जिम्मेदार रहा और बस्तर में कई बड़े हमलों की साजिश रचता रहा। सुरक्षा विशेषज्ञ और प्रोफेसर डॉ। गिरीशकांत पांडे बताते हैं, “बसवराजू एक सैन्य रणनीतिकार था लेकिन उसके पास राजनीतिक सोच का अभाव था। उसके नेतृत्व में माओवादी आंदोलन ने दिशा खो दी। यही वजह है कि माओवादी आंदोलन दिशा भटक गया। उसकी मौत माओवादी नेटवर्क की रीढ़ तोड़ने जैसा है।”

नक्सलियों के खिलाफ पिछले दिनों हुई कारवाई की मिली जानकारी के अनुसार 1। 21 मई 2025 से पहले 21 दिनों में 31 नक्सली मारे गए हैं।2। नक्सलियों के लिए हथियार बनाने वाली लेथ मशीन को जप्त किया गया है। 3।नक्सलियों के 818 BGL सेल को बरामद किया गया है।4। 450 आईडी बम डिफ्यूज किए गए हैं।5। 2 साल के लिए नक्सलियों द्वारा रखा गया राशन जप्त किया गया है।6। बंदूक और दूसरे हथियार बनाने की दो फैक्ट्रियों को पकड़ा गया है।7। नक्सलियों के एक दर्जन से ज्यादा कैंप को ध्वस्त किया गया है।8। नक्सलियों के इलाज के लिए बनाए गए चार अस्पताल को पूरे तौर पर ध्वस्त कर दिया गया है।9। हथियारों का बड़ा जखीरा पुलिस ने बरामद किया है। 10। 21 मई 2025 को महासचिव को मारकर सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के मनोबल को तोड़ दिया है।

पिछली नक्सलवादी घटनाओं के देखे तो 2003 में अलीपीरी बम विस्फोट:- आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सीएम चंद्रबाबू नायडू की हत्या का प्रयास।2010 में दंतेवाड़ा नरसंहार:- इस हमले में 76 सीआरपीएफ जवान मारे गए थे।2013 में झीरम घाटी हमला:- इसमें वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं सहित 27 लोग मारे गए थे।
2019 में श्यामगिरी हमला:- बीजेपी विधायक भीमा मंडावी सहित पांच लोग मारे गए।
2020 में मिनपा एंबुश:- सुकमा में हुए नक्सली हमले में 17 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे।
2021 में टेकलगुड़ेम हमला:- बीजापुर में उस साल का सबसे बड़ा नक्सली हमला, जिसमें 22 जवान शहीद हो गए।

सुरक्षा बलों को खुफिया सूचना मिली थी कि बसवराजू समेत संगठन की केंद्रीय समिति और पोलित ब्यूरो के कई सदस्य अबूझमाड़ के नारायणपुर-बीजापुर-दंतेवाड़ा ट्राई-जंक्शन पर डेरा डाले हुए हैं। इसके बाद चार जिलों नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा और कोंडागांव की डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड, एसटीएफ और अन्य इकाइयों ने संयुक्त ऑपरेशन शुरू किया। 70 घंटे चले इस अभियान में एक बड़े जंगल क्षेत्र की घेराबंदी की गई। मुठभेड़ के दौरान भारी गोलीबारी हुई। सुरक्षा बल बसवराजू के सुरक्षा घेरे को तोड़ने में सफल रहे।

इस अभियान में बसवराजू मारा गया। ऑपरेशन में डीआरजी का एक जवान शहीद हुआ, जबकि कुछ अन्य घायल हुए। बड़ी मात्रा में हथियार, गोला-बारूद और इलेक्ट्रॉनिक सामग्री बरामद की गई। उसकी मौत से सीपीआई (माओवादी) को बड़ा झटका लगा है। सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, अब संगठन में ऐसा कोई अनुभवी नेता नहीं बचा है जो 40 से 50 वर्ष की उम्र का हो और नेतृत्व की क्षमता रखता हो। मौजूदा नेतृत्व या तो बुजुर्ग है या अनुभवहीन है। इससे नक्सली नेटवर्क के बिखराव की आशंका जताई जा रही है।छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि नक्सलियों के खिलाफ यह निर्णायक लड़ाई है। सुरक्षा बलों ने निश्चित तौर पर बड़ा काम किया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि हमने अपने एक सिपाही को खोया है। लेकिन उसके बाद भी सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ा हुआ है। हर हाल में तय समय सीमा के भीतर हम नक्सल समस्या का समाधान छत्तीसगढ़ में करके रहेंगे। मोदी सरकार 31 मार्च 2026 से पहले नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करने के लिए कटिबद्ध है।

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार