डॉ. वेदप्रताप वैदिक
26 जनवरी के दिन अक्सर हम पहले फौजी परेड देखते हैं और फिर रात को राष्ट्रपति भवन में प्रीति-भोज होता है लेकिन इस बार गुजरात के पालीताणा नामक स्थान में मेरा यह गणतंत्र दिवस बीता। यहां रहकर जो अनुभव हुआ, यह जीवन में कभी नहीं हुआ। आज सूरत निवासी सेतुक अनिल भाई शाह को जैन मुनि की दीक्षा दी गई। पिछले 50-55 साल में मुझे लगभग सभी धर्मों के तीर्थ स्थलों पर जाने का अवसर मिला है। भारत में तो सर्वत्र गया ही हूं लेकिन इटली में वेटिकन, ईरान में मशद, एराक में बगदाद की गैलानी दरगाह, चीन और जापान के बौद्ध स्थलों और समारोहों में भी शामिल होने के मौके मुझे मिले हैं लेकिन पालीताणा में प्रवेश करते ही एकदम विलक्षण अनुभूति हुई। अहमदाबाद से लगभग 200 किमी पर स्थित इस कस्बे में जैसे ही घुसे, एक जैन मंदिर के बाद दूसरा जैन मंदिर दिखाई दिया। यहां जो धर्मशालाएं बनी हैं, उनका वास्तुशास्त्र भी मंदिर जैसा ही है। सेतुक शाह आज से मुनि बन गए हैं। वे सूरत के अरबपति परिवार के युवक हैं। वे जब कल मुझसे मिले तो मुझे लगा कि ये कोई राजकुमार तो नहीं है? कल जिसका हीरों-मोतियों से जड़ा अत्यंत भव्य वेश और अत्यंत प्रेमल व्यवहार दिखा, उसे आज सफेद अंग-वस्त्र और मुंडित सिर में देखकर आप दंग रह जाएंगे। आज से सेतुक संन्यासी, भिक्षु, मुनि बन गया है। निर्लिप्त, अनासक्त, त्यागी, निर्मोही। सेतुक के वस्त्रों की बोली (नीलामी) लगी तो करोड़ों रु. इकट्ठे हो गए। यह पैसा परमार्थ में खर्च होगा। उसके दीक्षा-समारोह में भाग लेने के लिए लगभग 10 हजार लोग पालीताणा में उपस्थित हुए थे। हजारों लोग एक साथ गाते-बजाते, हुंकार करते, मंत्रोच्चार करते! इतना सम्मोहक वातावरण आज तक मैंने किसी मंदिर, किसी मस्जिद, किसी गिरजे, किसी गुरूद्वारे और किसी साइनेगाॅग में नहीं देखा। इन हजारों लोगों के सोने, खाने और आने-जाने का इंतजाम इतना बढ़िया था कि उसे देखकर दंग रह जाना पड़ता है। दीक्षा-समारोह की पूर्व-रात्रि को विशाल सभा-स्थल की सजावट आश्चर्यजनक थी। बिजली का एक भी गोला वहां नहीं जल रहा था। लाखों दीपकों से सभा-स्थल प्रकाशित था। हजारों लोगों तक प्रवचनों और संचालकों की आवाज बिना लाउडस्पीकर के ही पहुंच रही थी। मोबाइल फोनों पर पूर्ण प्रतिबंध था। उपहार की सैकड़ों चांदी-सोने, पीतल-तांबे और काष्ठ की कलाकृतियां सब हाथ से बनी हुई थीं। रात को कुछ प्रमुख मुनियों से आर्यावर्त्त के महावीर स्वामी के स्वप्न और मेरी जन-दक्षेस की धारणा के बारे में भी संवाद हुआ। अब सेतुक का नाम त्रिभुवनहित विजय हो गया है। मुनि के रूप में अब सेतुक से आशा है कि वह भारत में ही नहीं, दक्षेस के सभी 16 पड़ौसी देशों में अहिंसा और अपरिग्रह का संदेश फैलाएंगे।