
ऋतुपर्ण दवे
रंगमंच शब्द ग्रीक शब्द ‘थिएट्रॉन’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘देखने की जगह’। भारत में रंगमंच का इतिहास बहुत पुराना है। भरत मुनि को नाट्यशास्त्र के लिए जाना जाता है। हमारे रंगमंचीय इतिहास बहुत पुराना है। शुरू से यही वो माध्यम है जिसे समझकर उसके सौंदर्य और महत्व, के साथ मनोरंजन के माध्यम से दैनिक जीवन में जश्न यानी खुशी प्रदर्शित की जाती है। विश्व रंगमंच दिवस इसी का प्रतीक है। रंगमंच वह विधा भी है जिससे दुनिया भर की सरकारों, राजनेताओं, संस्थानों और हितधारकों को भी मंच के जरिए सूचित व सचेत किया जाता है कि समाज की ऐसी संस्थाओं और लोगों के प्रति कैसी जनधारणा है।
वास्तव में यह अभिव्यक्ति की वह कला है जिसमें कलाकार वास्तविक जीवन या घटनाओं का एक तरह से नाट्य रूपांतरण यानी रिक्रिएशन करते हैं, दोहराते और याद दिलाते हैं। इसे मनाने की शुरुआत 1961 से हुई थी। 27 मार्च, 1962 को, विश्व रंगमंच दिवस अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान केंद्रों, उसके सहयोगी सदस्यों, रंगमंच पेशेवरों और रंगमंच संगठनों द्वारा मनाया गया। अब, यह दिन विश्व के 90 से अधिक केंद्रों में मनाया जाता है, जिसमें दुनिया भर के रंगमंच विश्वविद्यालय, अकादमियाँ, स्कूल और रंगमंच प्रेमी शामिल होते हैं। संस्कृति, शिक्षा, शांति और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है इस दिन एक विशेष संदेश जारी किया जाता है, जो किसी प्रमुख रंगमंच हस्ती द्वारा लिखा जाता है। यह संदेश रंगमंच की भूमिका और इसके सामाजिक प्रभाव पर प्रकाश डालता है। हर वर्ष इसकी एक अलग थीम होती है। इस बार की थीम “रंगमंच और शांति की संस्कृति” है। जैसा कि नाम से ही साफ है, इस झुलसती और तृतीय विश्व युध्द की आहट के बीच बढ़ रही दुनिया को बड़ा संदेश देना उद्देश्य है।
जैसा कि साफ है रंगमंच या थिएटर प्रदर्शन वास्तव में कला के जरिए जीवंत प्रस्तुति,अभिव्यक्ति, स्वीकरण या अस्वीकरण का वह तरीका है जिसमें कलाकार किसी वास्तविक या काल्पनिक घटना के अनुभव को किसी विशिष्ट स्थान, पर आकर सामने नाट्या प्रदर्शन करते है। यह न तो रिकॉर्डेड होता है न ही बार-बार के रिटेक जैसी सुधार की संभावनाएं होती है। वास्तव में जीवंत प्रदर्शन बड़ी चुनौती सरीखे होती है जिसे कलाकार साक्षात प्रस्तुत कर उसमें जीते हुए दिखते हैं। जो बहुत ही आनन्दित करता है। निश्चित रूप से यह न केवल कठिन कार्य है बल्कि अभिनय की वह चुनौती है जिसे सामने बैठे दर्शकों के समक्ष मंच पर कलाकार करते हैं। एक तरह आज की भाषा में यह लाइव प्रदर्शन ही है।
अपने संवाद, हाव-भाव, भाषण, गीत, संगीत और नृत्य के संयोजन से की जा रही जीवंत प्रस्तुतियों का दर्शकों पर एक अलग छाप व प्रभाव पड़ता है ।ऐसे मंचन समाज के लिए न केवल बड़े संदेश देते हैं बल्कि कला के तत्व, और कृत्रिम संसाधनों जैसे चित्रित दृश्य और स्टेज क्राफ्ट व प्रकाश व्यवस्था का उपयोग कर वो अनुभव की भौतिकता, उपस्थिति और तात्कालिकता भी बढ़ाते हैं। समय के साथ-साथ इसमें काफी बदलाव भी आया है। आधुनिक रंगमंच में नाटकों और संगीत थिएटर का प्रदर्शन भी शामिल होने से यह और भी आकर्षक और लोकप्रिय होते जा रहे हैं।
रंगमंच कला भी कई रूप ले चुकी है। बैले और ओपेरा थिएटर की वो प्रस्तुतियां बन गईं हैं जिसमें पारंपरिक रूप से किए जाने अभिनय, वेशभूषाओं का उपयोग किया जाता है। समय के साथ इस कला का भी विकास आधुनिक होते हुए भी काफी हद तक पारंपरिक भी है। यह दिन थिएटर कला के महत्व और मनोरंजन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इस बात पर प्रकाश डालने के लिए भी मनाया जाता है ताकि उनका उपयोग शांति और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कैसे किया जा सकता है।
वास्तव में एक खास दिन इसको समूचे विश्व में एक साथ मनाने के पीछे भी बहुत बड़ी और व्यापक सोच है। रंगमंच के मूल्य के बारे में जागरूक करना, रंगमंच समुदायों को अपने काम को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने में सक्षम बनाना, दुनिया भर के रंगमंच कर्मियों और संगठनों को आपस में जोड़ना और एक-दूसरे परिचित कराना। विश्व में अलग-अलग रूपों में प्रचलित रंगमंच विधाओं का न केवल आनंद लेना बल्कि दूसरों के साथ आनंद साझा करना है। वास्तव में विश्व रंगमंच दिवस हमें रंगमंच के विभिन्न रूपों का जश्न मनाने और हमारे समाज में उनके महत्व की सराहना करने का मौका भी देता है।
सच में, रंगमंच वह कला है जो सदियों से जीवित है और सदियों तक रहेगी भी। भले ही समाज, विकास और तकनीक में कितने भी उतार-चढ़ाव आए हों लेकिन मूल भावना अब भी जीवन्त है। समय के साथ बदलाव के बावजूद रंगमंच की भावना जस की तस है। यह हर तरह की कलाओं को शिक्षा में समाहित कर, मनोरंजन के जरिए लोगों तक पहुंचाती है। अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस इसी लक्ष्य की पूर्ति करता है तथा रंगमंच समुदाय नाटक और संगीत के प्राचीन शिल्प को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक वर्ष प्रदर्शन, व्याख्यान और पुरस्कार प्रस्तुतियों की योजना बनाता है। निश्चित रूप से रंगमंच समाज में जागरूकता और चेतना का बड़ा जरिया है। आज नुक्कड़ नाटकों के जरिए दिए जाने वाले संदेश काफी प्रभाव छोड़ते हैं। यह समाज के लिए सचेतक जैसे होते हैं।
विश्व रंगमंच दिवस का उद्देश्य इसे जीवित रख और उन्नत बनाना है ताकि यह अपनी-अपनी भाषाओं, लोकगाथाओं, लोक कलाओं के जरिए वो संदेश दे सके जो मानवता के लिए अपरिहार्य, हितकारक और शांति-सद्भाव को बनाए रखने में सहायक हो।