प्रदीप शर्मा
देश की राजधानी और हरियाणा समेत विभिन्न राज्यों में भारतीय कुश्ती संघ के शीर्ष नेतृत्व पर कदाचार के आरोपों के चलते जो धरना-प्रदर्शन हुए, उन्हें पूरी दुनिया ने देखा था। जाहिर है दुनिया में भारतीय खेलों खासकर कुश्ती को लेकर कोई अच्छा संदेश नहीं गया। देश के असली पहलवान राजनीतिक पहलवानों के आगे लाचार नजर आए। यह दुखद ही था कि देश में मध्यम व गरीब परिवारों से आए पहलवानों की कड़ी मेहनत को प्रतिष्ठा नहीं मिल पायी। हम उन खिलाड़ियों को न्याय नहीं दिला पाये जो कड़े अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों के बाद देश के लिये पदक लेकर आए। यह उनकी तपस्या जैसी कड़ी मेहनत का ही फल होता है कि परदेस में भारतीय तिरंगा लहराये और राष्ट्रगान की धुन गूंजे।
कालांतर कुश्ती संघ का यह विवाद अंतर्राष्ट्रीय संगठनों तक पहुंचने से हमारी साख को बट्टा लगा। जिसका नतीजा ये हुआ कि विश्व कुश्ती की सर्वोच्च संचालन संस्था यूनाइटेड वर्ल्ड रेस्लिंग यानी यूडब्ल्यूडब्ल्यू ने भारतीय कुश्ती महासंघ को निलंबित कर दिया। दरअसल, तदर्थ पैनल को 45 दिन के भीतर कुश्ती महासंघ के चुनाव कराने को कहा गया था। लेकिन इस अवधि में चुनाव नहीं हुए। निस्संदेह, यह अप्रिय फैसला देश की प्रतिष्ठा पर आंच आने जैसा है। ये उन खिलाड़ियों के साथ अन्याय है जो अपना जीवन दांव पर लगाकर देश के लिये पदक लाते हैं। फैसला उनके मनोबल पर प्रतिकूल असर डालेगा। वे अब तिरंगे के साये में आगामी विश्व चैंपियनशिप में नहीं खेल पायेंगे। उन्हें अब तटस्थ खिलाड़ी के रूप में भाग लेना होगा।
उल्लेखनीय है कि जो खिलाड़ी आगामी विश्व चैंपियनशिप में विजेता होंगे, उनका चयन पेरिस में होने वाले ओलंपिक खेलों के लिये होगा। जाहिरा तौर पर एक राष्ट्र के ध्वज तले न खेल पाना खिलाड़ियों के मनोबल गिराने जैसा ही है। भारतीय कुश्ती महासंघ पर इस लापरवाही की जवाबदेही बनती है। ऐसे में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए कि यूडब्ल्यूडब्ल्यू के निर्देशों के चलते समय रहते चुनाव क्यों नहीं किये गये।
यहां सवाल ये उठता है कि जब कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष व सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर कदाचार के आरोप लगाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पहलवान आंदोलन कर रही थीं तो खेल मंत्रालय ने मामले की गंभीरता को क्यों नहीं समझा। यदि समय रहते कार्रवाई होती और चुनाव होते तो वैश्विक स्तर पर भारत की किरकिरी नहीं होती। सवाल यह भी है कि जब तीन माह पूर्व यूडब्ल्यूडब्ल्यू ने चुनाव कराने और समय पर चुनाव न होने पर कार्रवाई की चेतावनी दी थी, तो खेल मंत्रालय ने इस मुद्दे को गंभीरता से क्यों नहीं लिया?
निस्संदेह, असम कुश्ती संघ व हरियाणा कुश्ती संघ के अदालत चले जाने से चुनाव कराने में बाधा उत्पन्न हुई। लेकिन इस कार्रवाई के बाबत यूडब्ल्यूडब्ल्यू को अवगत कराकर संवाद के जरिये कोई समाधान निकालने का कोई प्रयास तो किया जा सकता था। इसमें दो राय नहीं कि यह स्थिति राजनीतिक रस्साकशी के चलते उत्पन्न हुई है। जिसका खमियाजा भारतीय कुश्ती महासंघ तथा उसके खिलाड़ियों को भुगतना पड़ रहा है। जाहिर है कि समय रहते इस मामले में केंद्र सरकार की तरफ से जो पहल होनी चाहिए थी, वह नहीं हुई। वास्तव में भारतीय कुश्ती महासंघ के चुनाव की प्रक्रिया तभी शुरू हो जानी चाहिए थी जब बृजभूषण शरण सिंह को उनके पद से हटाया गया था। वैसे भी उनका कार्यकाल मई में ही समाप्त हो जाना था।
कयास लगाये जा रहे हैं कि इस देरी के पीछे यह भी मकसद रहा होगा कि आरोप मुक्त होने के बाद अपने इलाके के कद्दावर नेता व पूर्व अध्यक्ष को एक और पारी का मौका मिल जायेगा। आक्षेप यह भी रहा है कि केंद्र अपनी पार्टी के सांसद व भारतीय कुश्ती महासंघ के विवादित अध्यक्ष को लेकर लचीला रुख अपनाता रहा है। यहां सवाल यह भी है कि खिलाड़ियों की मेहनत पर पानी फेरने वाले तथा अपने संकुचित लक्ष्यों को हासिल करने वाले राजनेताओं को खेल संघों पर काबिज होने का मौका क्यों दिया जाता है। यदि पुराने खिलाड़ियों व कोचों को इन पदों पर बैठने का मौका मिलेगा तो खेल व खिलाड़ियों के हित में ही होगा।