यूपीएससी परीक्षा परिणाम- हिंदी की बढ़ती ताकत

आर.के. सिन्हा

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की साल 2022 के परीक्षा के नतीजों का गहराई से विश्लेषण हो रहा है। यह हर साल होता ही है नतीजे आने के बाद। पर इस तरफ कोई चर्चा नहीं हो रही कि इस बार सफल हुए अभ्यार्थियों में हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वालों का आंकड़ा शानदार रहा है। यह पिछले 20-25 वर्षों का सर्वश्रेष्ठ परिणाम है। इस बार हिंदी माध्यम से कुल 54 उम्मीदवारों का चयन हुआ हैं, जिनमें रैंक -66,85,89,105 और 120 प्रमुख हैं। यूपीएससी द्वारा आयोजित इस परीक्षा में हिंदी माध्यम के विद्यार्थी पिछले कुछ सालों से लगातार अपेक्षित नतीजे नहीं दे पा रहे थे। चाहे बात चयनित विद्यार्थियों की हो या टॉप रैंक की, हिंदी माध्यम हमेशा से संघर्ष करता रहा है। इसलिए कहा जाने लगा था कि हिंदी माध्यम से देश की इस सबसे खास परीक्षा को उत्तीर्ण करना लगभग असंभव है। लेकिन इस साल 2022 के परिणाम बेहतरीन रहे हैं। ये एक तरह से बेहतर भविष्य की उम्मीद पैदा कर रहे हैं।

पिछले साल आए 2021 के परिणाम में हिंदी माध्यम वाले 24 उम्मीदवार सफल हुए थे। यानी हिंदी का ग्राफ धीरे-धीरे सुधर रहा है। हिंदी माध्यम की टॉपर 66वीं रैंक हासिल करने वाली कृतिका मिश्रा कानपुर की रहने वाली हैं। दिव्या तंवर ने इस बार 105वीं रैंक हासिल की है। 2021 बैच में भी दिव्या ने 438वीं रैंक हासिल की थी और सबसे कम उम्र ( सिर्फ 22 साल) की आईपीएस चुनी गई थीं। अब वह आईएएस हो गई हैं। दरअसल इस बार के नतीजों में सबसे खास बात यह है कि हिंदी के माध्यम से परीक्षा देने वाले 54 उम्मीदवारों में से 29 ने वैकल्पिक विषय के रूप में हिंदी साहित्य लेकर यह कामयाबी हासिल की है। पांच-पांच उम्मीदवार ऐसे भी सफल हुए जिन्होंने इतिहास, भूगोल व राजनीति विज्ञान विषय लिया था। दो छात्रों ने गणित विषय लेकर हिंदी माध्यम से सफलता हासिल की, जिनमें से एक ने 120वीं रैंक हासिल की है।

अगर बात पिछले साल की जारी रखें तो राजस्थान के रवि कुमार सिहाग 18वीं रैंक के साथ हिंदी मीडियम से परीक्षा देने वालों में टॉपर बने थे। सात साल के बाद हिंदी माध्यम का कोई छात्र यूपीएससी पास करने वाले शीर्ष 25 उम्मीदवारों में जगह बना पाया था। इससे पहले सिविल सेवा की 2014 की परीक्षा में निशांत कुमार जैन 13वें स्थान पर रहे थे। मैं आगे बढ़ने से पहले बताना चाहता हूं कि भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक संभवत: देश के हिंदी माध्यम से यूपीएससी की परीक्षा को क्लीयर करने वाले पहले उम्मीदवार थे। वे भारत के बहुत सफल विदेश सचिव के रूप में याद किए जाते हैं। इसी तरह से दिल्ली पुलिस के आला अफसर अजय चौधरी ने भी हिंदी को यूपीएससी में परीक्षा देने का माध्यम बनाया था। वे दिल्ली पुलिस के धाकड़ पुलिस रहे हैं।

देखिए, इस बेहतर परिणाम में सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी के लिये कोचिंग देने वाले दृष्टि आईएएस संस्थान का विशेष योगदान है। इस बार हिंदी माध्यम से चयनित 54 से अधिक विद्यार्थी परीक्षा के किसी न किसी स्तर पर दृष्टि संस्थान से जुड़े रहे हैं। यहां के प्रमुख विद्वान डॉ. विकास दिव्यकीर्ति कहते हैं कि हमने कुछ साल पहले हिंदी माध्यम के परिणाम को सुधारने के लिए कई पहलों की शुरुआत कर दी थी। जैसे कि ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले विद्यार्थियों को दिल्ली में रहने और पढ़ने की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए ‘अस्मिता’ नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया है। इसके अलावा परिणाम में सुधार करने के लिए हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को विशेष तौर पर मेंटरशिप और लाइब्रेरी की सुविधा भी दी जा रही है। इन्हीं तमाम प्रयासों का परिणाम रहा है कि आज इतना बेहतर हो सका है और उम्मीद है कि परिणाम भविष्य में और बेहतर हो सकेगा।

बहरहाल, अभी कहना थोड़ी जल्दी ही होगी कि यूपीएससी पैटर्न में 2013 में हुए बदलाव के बाद, हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वाले श्रेष्ठ प्रदर्शन करने लगे। यह भी कहा जा रहा है कि इस बार के परिणाम, बदलाव के बाद के सालों में बेहतर है, लेकिन यह अपवाद भी हो सकता है।

अगर बात हिंदी से हटकर करें तो जो अभ्यार्थी आईएएस, आईपीएस, आईएफएस और अन्य सेवाओं में जाएंगे उनसे देश को अनेक उम्मीदें रहेंगी। उनसे पहली अपेक्षा तो यही होगी कि वे समाज के अंतिम व्यक्ति तक सरकार के जनकल्याण के कार्यक्रमों का लाभ पहुंचाएं। देखिए, सरकार की तरफ से आने वाली योजनाओं को लागू करने का काम तो अफसरों पर ही निर्भर होता है। उन्हें यह देखना होता है कि सरकारी कार्यक्रम सही से लागू हों। इस मोर्चे पर बहुत से अफसर निकम्मे ही साबित होते हैं।

पर, सरकार को अपने ईमानदार अफसरों के साथ हमेशा खड़ा होना होगा। कई बार ईमानदार अफसरों को जान से भी हाथ धोना पड़ा है। आपको याद होगा कि कुछ साल पहले चंडीगढ़ से सटे खरड़ शहर में जोनल लाइसेंसिंग अथॉरिटी में अधिकारी नेहा शौरी की उनके दफ्तर में गोली मार कर हत्या कर गई थी। उस केस ने सत्येंद्र दुबे और मंजूनाथ जैसे ईमानदार सरकारी अफसरों की नृशंस हत्यायों की यादें ताजा कर दी थीं। नेहा शौरी एक बेहद मेहनती और ईमानदार सरकारी अफसर थीं। बेईमानों को छोड़ती नहीं थीं। इसका खामियाजा उन्हें जान देकर देना पड़ा। नेहा से पहले सत्येंद्र दुबे हों, मंजूनाथ हों या अशोक खेमका, इन्हें ईमानदारी की भारी कीमत अदा करनी पड़ी थी। सत्य के साथ खड़ा होने वाले अफसरों का सरकार को साथ देना होगा।

हरियाणा कैडर के आईएएस अफसर अशोक खेमका की आप बीती से कौन वाकिफ नहीं है? उन्हें न जाने कितनी बार यहां से वहां किया जाता रहा क्योंकि वे रिश्वतखोर अफसर नहीं हैं और क्योंकि, वे सदा सच के साथ खड़े होते रहे हैं। दरअसल कड़वी दवा और कड़क ईमानदार अफसर को कम लोग ही पसंद करते हैं । ज्यादातर लोगों को बिकने वाले सरकारी बाबू चाहिये जो उनके हिसाब से काम करे।

बहरहाल, यूपीएससी की परीक्षा में हिंदी के माध्यम से सफल हुए सभी उम्मीदवारों को अलग से बधाई। उनसे उम्मीद तो यही रहेगी कि वे शशांक जी और अजय चौधरी जैसे बेहतरीन अफसरों के रूप में अपने को साबित करेंगे।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)