गिरीश पंकज
जिस समाज में नग्नता को धीरे-धीरे सामाजिक स्वीकृति मिलने लगी हो, उस दौर में अगर ‘साहित्य आज तक’ जैसे कार्यक्रम में खुलेआम फूहड़, अश्लीलता का भोंडा प्रदर्शन करने वाली किसी मॉडल को बुलाया जा रहा हो और उसे देखने के लिए ₹499 का टिकट लगाया जा रहा हो, तो इसमें बहुत अधिक चिंता करने की बात नहीं है. न इस मसले को लेकर शुद्धतावादियों को अपना खून सुखाने की जरूरत है. टीवी चैनल आज तक वालों की पत्रकारिता हम सब देख रहे हैं. वहाँ कितनी पत्रकारिता और कितनी प्रायोजकीयता होती है, वह किसी से छिपी नहीं है. और ऐसे लिटफेस्ट में साहित्य के नाम पर क्या कुछ होता है, यह भी कहने की आवश्यकता नहीं. यहां साहित्य गौण रहता है, ‘टीआरपी’ की भावना अधिक होती है. धीरे-धीरे हमारा पूरा साहित्यिक समाज कॉर्पोरेट घराने में तब्दील होता चला जा रहा है. अब ऐसा लगने लगा है कि साहित्य आम लोगों की चीज नहीं रही. साहित्य केवल प्रदर्शन का नाम हो गया है. तथाकथित बड़े प्रकाशक भी यही कोशिश करते रहे हैं कि बड़े अफसर या किसी पहुँच वाले शख्स की किताबें छापें, जो उन्हें मालामाल कर सके. और उसकी किताब बहुत शानदार ढंग से छपाते भी हैं. इतनी आकर्षक कि पहली नजर में देखकर लगता है कि यह कोई महान कृति है. बेचारा गुमराह पाठक खरीद लेता है और उसे पढ़ कर सिर पीटता है और गाली देते हुए कहता है कि उसका तो नुकसान हो गया. मॉडल के रूप में अपनी नग्नता को डंके की चोट पर सार्वजनिक करने वाली ‘अद्भुत प्रतिभा’ की धनी ऊर्फी जावेद को देखने-सुनने लोग 499 रुपये खर्च करके जाएंगे और शायद आनंदित होकर भी लौटें. पता नहीं आयोजन के दिन वह किस तरह के कपड़े पहन कर आएगी. अकसर तो वह जिस्मदिखाऊ अजीबोगरीब कपड़े पहनकर लोगों को चौंकाने का काम ही करती है. उसके डिज़ाइनर कपड़े शरीर को ढंकने वाले हों तो भी कोई बात है. लेकिन वह शरीर को दिखाने वाले ही वाहियात किस्म के कपड़े पहन कर निकलती है. और हालात यह होती है कि उसकी हर हरकत वायरल हो जाती है. पहले लोग ‘वायरल फीवर’ से ग्रस्त हुआ करते थे. अब लोगों की हरकतें ‘वायरल’ होती हैं. इसी कड़ी में सबसे चर्चित नाम अब ऊर्फी जावेद का है. हालांकि कई बार लोगों को यह भ्रम होता होगा कि क्या यह शायर जावेद अख्तर की कोई रिश्तेदार है, तो ऐसा कुछ नहीं है.ऊर्फी जावेद की अपनी एक कहानी है. यह अलग परिवार है. वह खुद बताती है कि उसकी अजीबोगरीब हरकत के कारण उसको घर में खूब डाटा डांटा-फटकारा जाता था, इसलिए वह सत्रह साल की उम्र में घर छोड़कर भाग गई थी. लेकिन अब वह फिर घर वालों के साथ रहती है, क्योंकि उन्हें कमा कर दे रही है. उर्फी की जबरदस्त चर्चा के कारण ही साहित्य आजतक वालों ने उसे अपने ‘शो’ में आमंत्रित किया है और टिकट भी लगाया है. इसी भरोसे कि आयोजन स्थल खचाखच भरा रहेगा. लोग उसे सुनने कम, देखने अधिक आएंगे. हम सब ऐसे बीमार समय में रह रहे हैं, जब साहित्य में भी नग्नता का बोलबाला है. कुछ फिल्मों में भी नग्नता खुलेआम नजर आती है. कभी-कभी अश्लील गालियां भी दी जाती हैं. और आश्चर्य की बात है कि सेंसर बोर्ड भी उसे सेंसर नहीं करता. बेडरूम सीन भी दिखा दिया जाता है. साहित्य में अश्लीलता के लिए अभी तक कोई रोक-टोक नहीं है. कोई सेंसर बोर्ड नहीं है. इसीलिए अब साहित्य के कथित मंच पर बेशर्म मॉडल भी बुला ली जाती है. मेरे लिए यह चौंकाने वाली बात बिल्कुल ही नहीं है. जो लोग आयोजन कर रहे हैं,उनका साहित्य से कोई लेना-देना नहीं है. उनका मकसद बाजार है. कि कैसे उन्हें अधिक-से-अधिक लोकप्रियता मिले और विज्ञापन अर्जित कर सकें. उनका असली लक्ष्य बाज़ार होता है, साहित्य नहीं. ऊर्फी जावेद को बुला कर आयोजक अपनी दुकानदारी जमा लेगा. वह अपनी कमाई कर लेगा और सच्चा साहित्य खून के आँसू रोएगा. और कुछ नहीं साहित्य का उर्फीकरण है.