ललित गर्ग
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ की गयी ‘पनौती’ (अपशकुन), जेबकतरा एवं कर्ज माफी जैसी अशोभनीय टिप्पणियों के कारण निशाने पर हैं। चुनाव आयोग (ईसी) ने हालिया टिप्पणियों के लिए राहुल गांधी को कारण बताओ नोटिस जारी करके निर्णायक कार्रवाई की है। यह कार्रवाई सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा चुनाव आयोग में दर्ज की गई एक शिकायत का संज्ञान लेते हुए की गयी है। चुनाव आयोग ने जहां पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा पर चिंता व्यक्त की वही भाजपा ने तर्क दिया कि ऐसी भाषा एक वरिष्ठ राजनीतिक नेता के लिए ‘अशोभनीय’ है। पिछले लम्बे दौर से विश्वनेता के रूप में प्रतिष्ठित देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दर्शन, उनके व्यक्तित्व, उनकी बढ़ती ख्याति, उनकी बहुआयामी योजनाओं व उनकी कार्य-पद्धतियांे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान में विपक्षी नेताओं और विशेषतः कांग्रेस नेताओं ने अमर्यादित, अशिष्ट, छिछालेदार भाषा का उपयोग कर राजनीतिक मर्यादाओं को तार-तार कर दिया है। विडम्बना देखिये मोदी को गालियां देकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करने वाले राहुल गांधी इसका खामियाजा भी भुगतते रहे हैं, लेकिन राजनीतिक अपरिवक्वता के कारण वे कोई सबक लेने का तैयार नहीं है।
निर्वाचन आयोग ने राहुल गांधी को याद दिलाया कि आदर्श चुनाव आचार संहिता नेताओं को राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ असत्यापित आरोप लगाने से रोकती है। लेकिन राहुल गांधी ने राजस्थान में हाल की रैलियों में प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए उनके लिए ‘पनौती’, जेबकतरे और अन्य विवादित शब्दों का इस्तेमाल किया था। राहुल गांधी के ये अशोभनीय एवं मर्यादाहीन बयान क्या रंग लायेगा, यह भविष्य के गर्भ में हैं, लेकिन स्वस्थ एवं आदर्श लोकतंत्र के लिये देश के प्रधानमंत्री के लिये इस तरह के निम्न, स्तरहीन एवं अमर्यादित शब्दों का प्रयोग होना, एक विडम्बना है, एक त्रासदी है, एक शर्मनाक स्थिति है। केवल कांग्रेस ही नहीं, अन्य राजनीतिक दल के नेता भी ऐसी अपरिपक्वता एवं अशालीनता का परिचय देते रहे हैं। पिछले नौ वर्षों में उद्योगपतियों को चौदह लाख करोड़ रुपये की छूट देने के आरोप भी सत्यता से परे, तथ्यहीन, भ्रामक एवं गुमराह करने वाले हैं। ‘जेबकतरे’ शब्द का प्रयोग करते हुए आरोप लगाया गया कि प्रधानमंत्री लोगों का ध्यान भटकाते हैं। जबकि उद्योगपति गौतम अडानी उनकी (लोगों की) जेब से पैसे निकालते हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि जेबकतरे इसी तरह काम करते हैं। आयोग ने राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी के बारे में भी बताया जिसमें कहा गया था कि अगर संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है तो प्रतिष्ठा के अधिकार को भी अनुच्छेद 21 में संरक्षित जीवन के अधिकार का एक अभिन्न हिस्सा माना जाता है। इन दो अधिकारों को संतुलित करना एक संवैधानिक आवश्यकता है। लेकिन राहुल गांधी को यह संतुलन साधना कहा आता है?
राहुल गांधी ने अहमदाबाद में विश्व कप क्रिकेट के फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया से भारत की हार के बाद राजस्थान में चुनावी भाषण में मोदी के खिलाफ ‘पनौती’ जैसे आपत्तिजनक, विवादित एवं अपशब्द का इस्तेमाल किया था। यह एक शब्दभर नहीं है, बल्कि अनेक कुटिलताओं की अभिव्यक्ति है, ‘पनौती’ मोटे तौर पर ऐसे शख्स के लिये उपयोग किया जाता है, जिसकी मौजूदगी होने भर से बनता काम बिगड़ जाता है। आम तौर पर पनौती शब्द ऐसे व्यक्ति के लिए इंगित किया जाता है जो बुरी किस्मत लाता है। वैसे इसका किसी ज्ञान-विज्ञान और तर्क से नाता नहीं है। जाने-माने भाषाविद् डॉक्टर सुरेश पंत के मुताबिक, हिंदी में -औती प्रत्यय से अनेक शब्द बनते हैं। इनमें कटौती, चुनौती, मनौती, बपौती इत्यादि शामिल हैं। पनौती शब्द नकारात्मकता एवं अशुभता का सूचक है। पनौती को शनि की बुरी दशा का समय माना जाता है। इसका मतलब बाढ़ भी होता है। पनौती तमिल शब्द पन्नादाई का अपभ्रंश भी है। इसका मतलब होता है ‘एक ढीला बुना हुआ कपड़ा’ या ‘मूर्ख’।
बात केवल राहुल गांधी की ही नहीं है, कौन भूल सकता है सोनिया गांधी का वह बयान, जिसने वास्तव में गुजरात की जनता को झकझोर कर रख दिया था। तब सोनिया ने गुजरात के तत्कालीन और बेहद लोकप्रिय मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ बताया था। सोनिया ने कहा था, “मेरा पूरा भरोसा है कि आप ऐसे लोगों को मंजूर नहीं करेंगे जो जहर के बीज बोते हैं।“ ‘मौत का सौदागर’ के बाद ‘जहर की खेती’ के इस बयान ने गुजरात ही नहीं, देश की जनता की भावना को जगा दिया। नतीजा लोकसभा चुनाव के परिणाम के रूप में सामने आया, जिसमें बीजेपी को 278 और कांग्रेस को 45 सीटें मिली। जनता को बेवकूफ एवं नासमझ समझने की भूल कांग्रेस बार-बार करती रही है और बार-बार मात खाती रही है। इन चुनावों में भी ऐसी मात खाने को मिले तो कोई आश्चर्य नहीं है। क्योंकि जनता अपने सर्वोच्च नेतृत्व को मर्यादाहीन तो कत्तई नहीं देखना चाहती। कोई पूर्व केबिनेट मंत्री मणिशंकर अय्यर मोदी को ‘नीच’ तक कह देता है तो राहुल तो सर्जिकल स्ट्राइक पर ‘खून की दलाली’ जैसे आरोप लगाते रहे हैं।
नोटबंदी को लेकर जहां पूरा देश नरेन्द्र मोदी के साथ खड़ा था, तब विपक्ष को काले कारोबारियों के साथ खड़ा होने में जरा भी शर्म नहीं आई। विपक्ष ने दुनिया के कुख्यात रहे तानाशाह हिटलर, मुसोलिनी, कर्नल गद्दाफी से प्रधानमंत्री मोदी की तुलना कर डाली। इस तरह के स्तरहीन, औछे एवं अमर्यादित बयानों से न केवल विपक्ष दलों के नेताओं बल्कि कांग्रेस पार्टी की न केवल फजीहत होती रही है, बल्कि उसकी बौखलाहट को दर्शाती रही है। इस तरह के लोग राजनीति में जगह बनाने के लिये ऐसी अनुशासनहीनता एवं अशिष्टता करते हैं। राहुल के इस तरह के ओछे, स्तरहीन एवं अशालीन शब्दों के प्रयोग का एक लम्बा सिलसिला है। मोदी पर गाली की बौछार में कभी उनको सांप, बिच्छू और गंदा आदमी कहा था। तो कभी लहू पुरुष, पानी पुरुष और असत्य का सौदागर भी बताया। सत्ता के शीर्ष पर बैठकर यदि इस तरह जनतंत्र के आदर्शों को भुला दिया जाता है तो वहां लोकतंत्र के आदर्शों की रक्षा नहीं हो सकती। राजनैतिक लोगों से महात्मा बनने की आशा नहीं की जा सकती, पर वे अशालीनता एवं अमर्यादा पर उतर आये, यह ठीक नहीं है। महात्मा गांधी ने कहा था कि मेरा ईश्वर दरिद्र-नारायणों में रहता है।’ आज यदि उनके भक्तों- कांग्रेसजनों से यही प्रश्न पूछा जाये तो संभवतः यही उत्तर मिलेगा कि हमारा ईश्वर कुर्सी में रहता है, सत्ता में रहता है। तभी उनमें अच्छाई-बुराई न दिखाई देकर केवल सत्तालोलुपता दिखती है।
ये तथाकथित लेता गाली ही नहीं देते रहे, बल्कि गोली तक की भाषा का इस्तेमाल करते रहे हैं। लेकिन कोई गाली या गोली मोदी का बाल भी बांका नहीं कर सकेंगी क्योंकि वे जनसमर्थन से इन ऊंचाइयों को पाया है। मोदी को तो बोटी-बोटी काट देने की धमकी खुलेआम दी गयी। किसी ने मोदी को रैबिज से पीड़ित बताया तो किसी ने उन्हें केवल चूहे मात्र माना। चायवाले से तो वे चर्चित हैं। लेकिन मोदी के व्यक्तित्व की ऊंचाई एवं गहराई है कि उन्होंने अपने विरोध को सदैव विनोद माना। मोदी को बार-बार कटघरे में खड़ा किया जाता रहा है। चुनाव का समय हो या सामान्य कार्य के दिवस मोदी ने कम गालियां नहीं खाईं। उनके विचारों को, कार्यक्रमों को, देश के लिये कुछ नया करने के संकल्प को बार-बार मारा जा रहा है। लेकिन मोदी भारत की आजादी के बाद बनी सरकारों के अकेले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्हंे कोई गोली या गाली नहीं मार सकती। क्योंकि मोदी की राजनीति व धर्म का आधार सत्ता नहीं, सेवा है, राष्ट्र-निर्माण है। जनता को भयमुक्त व वास्तविक आजादी दिलाना उनका लक्ष्य है। वे सम्पूर्ण भारतीयता की अमर धरोहर हैं। भ्रष्टाचार उन्मूलन, कालेधन पर शिकंजा कसने, वीआईपी संस्कृति को समाप्त करने, नया भारत निर्मित करने, स्वच्छता अभियान, दुनिया की सशक्त तीसरी आर्थिक ताकत बनाने, दलितों के उद्धार और उनकी प्रतिष्ठा के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर रखा है। उनके जीवन की विशेषता कथनी और करनी में अंतर नहीं होना है। चुनावी बिसात बिछते ही या फिर वर्तमान राजनीति में जिस प्रकार से भाषा की मर्यादाएं टूट रही हैं और हमारे राजनेताओं का जो आचरण सामने आ रहा है, उसे कहीं से भी हमारे लोकतंत्र, राजनीति, सभ्य समाज या हमारी युवा पीढ़ी के लिए आदर्श स्थिति नहीं कहा जा सकता ।