ऊषा चिलकुरी वाँस: एक सामान्य महिला से रातों-रात सुर्ख़ियों में क्यों?

Usha Chilkuri Vance: Why went from being an ordinary woman to being in the headlines overnight?

यह ऊषा चिलकुरी वाँस कोई और नहीं, उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जे डी वाँस की पत्नी हैं

लालितमोहन बंसल, लॉस एंजेल्स से

भारतीय अमेरिकी नागरिकों ने पिछले कुछ अर्से में सार्वजनिक जीवन में इतने योगदान दिये हैं कि उनकी गाथाएँ आज घर घर की कहानी बनते जा रहे हैं। इस बार राष्ट्रपति चुनाव-2024 में भारतीय मूल की ऊषा चिलकुरी वाँस का एक नाम और जुड़ गया है। इस सूची में इस बार डेमोक्रेट उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और रिपब्लिकन पूर्व गवर्नर निक्की हेली (दक्षिण कैरोलाइना) और रिपब्लिकन बिज़नेसमैन विवेक रामास्वामी। एक पूर्व भारतीय राजदूत मीरा शंकर को इस कड़ी में उपराष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदवार जेम्स डेविड वाँस की पत्नी ऊषा चिलुकुरी वाँस पर गर्व है। जे डी वाँस अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप के साथ उपराष्ट्रपति बनते हैं, तो निस्संदेह ऊषा चिलकुरी अमेरिका की दूसरी बड़ी महिला नागरिक होंगी।

कहते हैं, हर पुरुष की सफलता के पीछे उसकी पत्नी, महिला का हाथ होता है। एक तेलुगु हिन्दू परिवार में पली बढ़ी ऊषा चेलुकुरी वाँस (38वर्ष) को भी हिंदू होने पर गर्व है। ऊषा ने अपने पारिवारिक मूल्यों और सांस्कृतिक धरोहर के बल पर जे डी वाँस को शिखर की दहलीज़ तक पहुँचाने में एक भारतीय नारी और पत्नी के रूप में वह सब कुछ दिया है, जिसकी उन्हें दरकार थी। जे डी वाँस ( जन्म 2 अगस्त, 1984) एक राजनीतिज्ञ, अधिवक्ता, लेखक और जूनियर सीनेटर (ओहायो) कभी डॉनल्ड ट्रंप के बड़े आलोचक होते थे। जेम्स डेविड वाँस सन् 2016 में डॉनल्ड ट्रंप के आलोचक थे और कहते थे कि डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के ‘हिटलर’ साबित होंगे। उसी ट्रंप ने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में उन्हें अपना सहयोगी बनाया। उन्हें बड़े-बड़े सीनेटरों और गवर्नरों की पंक्ति में से चुना है। डेमोक्रेट के गढ़-मिल्वाकुई (विस्कॉन्सिन राज्य) में रिपब्लिकन नेशनल कांफ्रेंस में बुद्धवार को सौल्लास डॉनल्ड ट्रंप और वाँस को अधिकृत तौर पर नामांकित किया गया। इस कांफ्रेंस में पहली बार ऊषा चिलकुरी और जे डी वाँस मौजूद थे। इसे रिपब्लिकन की नई पीढ़ी में उदीयमान नेताओं के आगाज के रूप में देखा जा रहा है। इस युगल जोड़ी ने कैलिफ़ोर्निया के दक्षिण में सेन डिएगो से स्कूली फिर येल ला कॉलेज में स्नातक और फिर एक साल बाद ‘इंटरफ़ेथ मैरिज’ कर जिस तरह गृहस्थ जीवन में कदम रखते हुए राजनीति के सफ़र में इस मुक़ाम पर पहुँचे हैं, उसमें ऊषा चिलकुरी के योगदान को नज़रंदाज़ करना सहज नहीं होगा। इनमें एक कट्टरपंथी इवेंजिलिस्ट ईसाई जे डी वाँस और दूसरे हिन्दू ऊषा चिलकुरी ने येल ला कॉलेज की शिक्षा-दीक्षा के दौरान चंद वर्षों में परस्पर एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र करते हुए ऐसे मुक़ाम पर पहुँचे, जहां से वापस लौट पाना सहज नहीं था। इनमें धर्म से ऊपर उठ कर मानवीय पहलुओं की ऐसी कसक थी कि जे डी वाँस अपने कॉलेज की सहपाठी, सखा घरेलू जीवन के दुख-सुख में को चाह कर भी अलग नहीं कर पाए। इसमें ऊषा चिलकुरी ने एक हिंदू परिवार में पले-बढ़े होने और अपने पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों के बल पर सखा ईसाई जे डी वाँस को कदम कदम पर सँभाला, वह एक अद्वितीय मिसाल है। इसकी विवेचना स्वयं जे डी वाँस ने अपनी आत्मकथा में की है।

जे डी वाँस की आत्मकथा में ऊषा की भूमिका!

ऊषा की कहानी का वर्णन ओहायो के जूनियर सीनेटर जे डी वाँस ने चार वर्ष पूर्व विमोचित अपनी बेस्ट सेलर आत्मकथा ‘हिलबिल्ली इलेजी’ में किया है। यह पुस्तक इतनी चर्चित हुई कि हालीवुड में उसी वर्ष (सन् 2020) में एक फ़िल्म बनी गई थी। जे डी वाँस अपने को पारिवारिक मानते हैं और कहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा बच्चे हों।

वाँस का घरेलू जीवन बड़ा कष्टमय और संघर्षपूर्ण रहा । घर में आर्थिक तंगी, माँ का नियमित ड्रग सेवन करना और आहार के लिए छोटे से छोटे काम के लिए जे डी वाँस का तत्पर रहना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया था। एक जगह लिखा है कि उन्हें माँ बेटे के रिश्ते निभाने में भी बड़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता था, लेकिन ऊषा ने एक मित्र के नाते ‘भावनाओं के उठते ज्वार’ में हमेशा उनका साथ दिया। जे डी वाँस को एक बार लगा कि वह उन रिश्ते-नातों को छोड़-छाड़ कर चल दें। ऊषा ने ऐसा होने नहीं दिया। यही नहीं, अमेरिका में अपने परिवार के साथ ‘थैंक्स गिविंग’ पर्व पर उन्हें घर जाने को प्रेरित किया। अमेरिका में युवक-युवतियों में इन दिनों पति-पत्नी और माँ-बाप के प्रति विछोह की भावनाएँ ज़ोर पकड़ रही है। इस से पारस्परिक रिश्तों में कड़वाहट आ रही है।

वाँस लिखते हैं: इसके ठीक विपरीत ऊषा चिलकुरी की माँ ने उसके पिता के पीछे कभी उनकी बुराई नहीं की। उनके माता-पिता में कभी किसी झगड़े की चर्चा देखी सुनी नहीं गई । उनकी पीठ पीछे भी किसी ने उनकी बुराई अथवा चुग़ली नहीं की। ऊषा के माता पिता ने उन्हें अपने बच्चों की तरह प्यार दिया। दोनों की केंचुकी में इंटरफ़ेथ मैरिज के अनुसार शादी हुई।

वाँस ने हाल ही में एक मेगन केली पॉड शो में कहा था : ‘ऊषा ने अपने भरपूर प्यार और संस्कारों से उन्हें ज़मीन पर मज़बूती से खड़ा होना सिखाया। मैं कभी अपनी सफलताओं पर त्रुटि वश अहंकार कर बैठता था, तभी मुझे स्मरण हो आता था कि वह मुझ से कही ज्यादा सुलझी हुई हैं। मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ कि मुझे एक ऐसी सशक्त महिला के रूप में ऊषा का साथ मिला है, जो कह सकती है, ऐसा करो, ऐसा ना करो। पिछले महीने ही ऊषा ने कहा था कि ‘अब हमें अपने सभी मतभेद भुला कर रिपब्लिकन रंग में रंग जाना चाहिए और डॉनल्ड ट्रंप के सहयोगी के रूप में जुट जाना चाहिए।

ऊषा चिलुकुरी ने येल ला कॉलेज से वकालत की डिग्री लेने से पहले कैलिफ़ोर्निया के दक्षिण में सेन डिएगो में माउंट कैमल हाई स्कूल की सन् 2003 में शिक्षा पूरी की। उसके पिता राधाकृष्ण ‘क्रिश’ कृष्णा डिस्ट्रिक्ट के एक गाँव पमारू (आंध्र प्रदेश) से थे। वह 1980 में अमेरिका आ गये थे। वह पेशे से एक प्राध्यापक थे और सेन डिएगो यूनिवर्सिटी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की शिक्षा देते थे। उनकी माता लक्ष्मी मेरिन मॉलिक्यूलर बायोलाजिस्ट और बायोकैमिस्ट थीं। ऊषा की एक बहन है। इन बच्चों का लालन-पालन एक हिंदू परिवार में हुआ। ऊषा ने अमेरिका के प्रारंभिक इतिहास, फिर ला और अंत में इंग्लैंड में कैंब्रिज से दर्शनशास्त्र में मास्टर की डिग्री हासिल की। एक बार ‘फ़ॉक्स न्यूज़’ से बातचीत में ऊषा चिलकुरी ने कहा था, ‘’मुझे अपने हिन्दू माता पिता से ढेरों संस्कार मिले हैं। उन्हें हिंदू होने पर गर्व है। वह आज उन्हीं संस्कारों की बदौलत मज़बूती से खड़ी है। जे डी वाँस भी सेन डिएगो में एक उच्च मध्य परिवार में से थे।

ऊषा और जे डी वाँस की लव स्टोरी येल ला कॉलेज से शुरू हुई। ‘हिलबिल्ली इलेजी’ में वाँस कहते हैं कि शुरू में उनकी पहचान क्लास में असाइनमेंट को लेकर हुई थी। वह लिखने में बड़ी निपुण थीं। उस समय दोनों येल कॉलेज के ‘ला जर्नल के मास्टरहेड में संपादक और कार्यकारी संपादक थे। उन दिनों वह अमेरिका के ग्रामीण जीवन में अपेक्षित सुधार के लिए सामूहिक चर्चा में भी भाग लेते थे। कहते हैं, ‘मुझे पता था कि उषा विदेशी है, पर साथ होता तो मुझे लगता था कि मैं घर में हूँ।‘

ऊषा ने येल ला कॉलेज से स्नातक की डिगी लेने के बाद केम्ब्रिज से फ़िलासफ़ी में मास्टर डिग्री ली। उसने कुछ समय सुप्रीम कोर्ट एडवोकेसी क्लिनिक, मीडिया फ़्रीडम एंड इन्फ़ॉर्मेशन ऐक्सेस क्लिनिक में काम किया था , जबकि इराक़ी शरणार्थी सहयोग प्रोजेक्ट में उसकी विशेष रुचि रही है। ऊषा ने एक प्राइवेट फ़र्म में एक अधिवक्ता के रूप में काम करने से पहले डिस्टिक्ट ऑफ़ कोलंबिया में यूनाइटेड सेट्स ऑफ़ कोर्ट ऑफ़ अपील में जज ब्रेट कावनौघ के मातहत और फिर वाशिंगटन में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्याधीश जान राबर्ट के मातहत क्लर्क की भूमिका निभाई। अब जे डी वाँस के उपराष्ट्रपति पद पर नामांकन के बाद ऊषा चिलकुरी वाँस ने कैलिफ़ोर्निया में मुंगेर, टॉल्स एंड ओल्सन एलएलपी में अधिवक्ता पद से त्यागपत्र दे दिया हैं।

ऊषा चिलकुरी कभी राजनीति में तो नहीं रही, लेकिन उन्होंने 2018 में ओहायो में रिपब्लिकन मतदाता के रूप में पहली बार पंजीकरण मत कराया और चार वर्ष बाद उपचुनाव में रिपब्लिकन मतदाता के रूप में वोट भी दिया। इस से पहले वह जब कनेक्टिकट में थीं, तब डेमोक्रेट थी।

ऊषा चिलकुरी वाँस शाकाहारी है, पति भी शाकाहारी बन गये

ऊषा के गुणों में एक यह भी है कि वह शाकाहारी है। उन्होंने अपने पति जे डी वाँस को राजनीति में प्रेरित करने के साथ घर में भी शाकाहारी बना दिया है। यही नहीं, जे डी वाँस घर में फ़ुरसत में होते हैं तो पत्नी आर बच्चों के लिए ‘आलू के पराठे’ बनाना नहीं भूलते। शुरू में वह ख़ुद भी आलू के ढेरों व्यंजन बनाना और खाना पसंद करते रहे है। यही नहीं, उन्हें अपनी सास के लिए भारतीय भोजन बनाने में संकोच नहीं है। इनके तीन बच्चे इवान, विवेक और मिराबेल हैं।

सम्मेलन के तीसरे दिन परंपरानुसार ऊषा चिलकुरी वाँस ने मंच से अपने पति और उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकित जे डी वाँस का परिचय कराया। उन्होंने अपने संक्षित भाषण से पूर्व मांसाहार और शाकाहार के संदर्भ में कहा कि ऐसे भी अवसर आते थे, जब पति पत्नी में आहार को लेकर परिहास हो जाता था। उनके पति ‘जे डी’ मांसाहारी थे, उन्हें साथ में आलू के व्यंजन बहुत पसंद थे। वह जब सार्वजनिक जीवन में आये, सीनेटर बने, तो उनसे अक्सर लोग मिलने के लिये घर आते थे। इन लोगों में ऐसे भी लोग होते थे, जो स्वास्थ्य, धार्मिक अथवा नैतिक मूल्यों के कारण मांस नहीं खाते थे। इस पर अक्सर घर में चर्चा होती थी। इसमें स्वास्थ्य के परिप्रेक्ष्य में संतुलित आहार पर ज़ोर दिया जाता था। वह मेयो क्लिनिक के संदर्भ कहती थीं,’’ प्लांट आधारित आहार में ऐसे अनेकानेक गुण हैं कि इस से मोटापे पर अंकुश तो रहता ही है, हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसे रोग से भी बचाव रहता है।‘’ एस तरह उन्होंने अपनी बात भी कह दी और शाकाहार अपनाने पर ज़ोर भी दे दिया।