
नृपेन्द्र अभिषेक नृप
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में घटित एक घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। सासाराम बिहार की बेटी स्नेहा कुशवाहा (17 वर्ष), जो वाराणसी के एक हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही थी, संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाई गई। पुलिस इस मामले को आत्महत्या करार दे रही है, लेकिन मृतका के परिजन इसे एक सुनियोजित हत्या मान रहे हैं। इस मामले में कई संदेहास्पद पहलू उभरकर सामने आए हैं, जो इसे और भी पेचीदा बना रहे हैं।
1 फरवरी को भेलूपुर स्थित हॉस्टल के कमरे में स्नेहा का शव मिला। प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, उसकी गर्दन खिड़की से लटक रही थी, लेकिन जब परिजन मौके पर पहुँचे, तो उन्होंने पाया कि शव पहले ही नीचे उतार लिया गया था और बिस्तर पर लिटा दिया गया था। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि मृतका का एक पैर जमीन पर था और दूसरा बिस्तर पर, जो आत्महत्या की सामान्य परिस्थितियों से मेल नहीं खाता। यह स्थिति इस संदेह को जन्म देती है कि स्नेहा की हत्या कर उसे आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की गई।
मृतका के परिजनों का आरोप है कि उन्हें इस दुखद घटना की सूचना हॉस्टल प्रशासन या पुलिस द्वारा नहीं दी गई, बल्कि वाराणसी में रहने वाले एक जानकार से इस घटना की जानकारी मिली। जब वे हॉस्टल पहुंचे, तो उन्हें पहले ही शव नीचे उतारा हुआ मिला, जो अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। आमतौर पर किसी भी संदिग्ध मौत की स्थिति में पुलिस घटनास्थल की गहन जांच करती है, फॉरेंसिक टीम को बुलाया जाता है और सबूतों को सुरक्षित रखा जाता है। लेकिन इस मामले में पुलिस की तत्परता संदेह को और गहरा करती है।
परिजनों का यह भी कहना है कि पुलिस ने बिना उनकी अनुमति के जल्दबाजी में शव का पोस्टमार्टम करवा दिया और अंतिम संस्कार के लिए दबाव डाला। यह व्यवहार संदेहास्पद है और इसमें किसी बड़े प्रभावशाली व्यक्ति या समूह की संलिप्तता का संकेत देता है। अगर यह आत्महत्या थी, तो पुलिस को निष्पक्ष तरीके से जांच करनी चाहिए थी और परिजनों को पूरे मामले की जानकारी देनी चाहिए थी। लेकिन जिस तरह से पुलिस ने मामले को संभाला, वह यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं साक्ष्यों को मिटाने की कोशिश की जा रही थी।
इस घटना में रेप की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। यदि स्नेहा के साथ यौन उत्पीड़न हुआ था, तो यह मामला और भी गंभीर हो जाता है। ऐसे मामलों में पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही सबसे महत्वपूर्ण सबूत होती है, लेकिन अगर इसमें किसी प्रकार की छेड़छाड़ की गई, तो न्याय मिलने में बाधा आ सकती है। यही कारण है कि स्नेहा के परिजन पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर विशेष ध्यान देने की मांग कर रहे हैं।
सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया ने इस मामले को प्रमुखता से उठाया है, जिससे जनता में भारी आक्रोश देखने को मिल रहा है। सोशल मीडिया पर #JusticeForSneha जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं और लोग न्याय की गुहार लगा रहे हैं। अगर इस मामले की निष्पक्ष जांच नहीं हुई, तो यह अन्य ऐसे हजारों मामलों की तरह इतिहास के अंधेरे में खो जाएगा, जहां दोषी बच निकलते हैं और पीड़ित परिवारों को न्याय नहीं मिलता।
इस मामले की निष्पक्ष जांच के लिए जरूरी है कि इसे किसी स्वतंत्र एजेंसी जैसे CBI या SIT को सौंपा जाए। पुलिस की भूमिका पहले ही संदेह के घेरे में आ चुकी है, ऐसे में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र जांच आवश्यक है। इसके अलावा, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और फॉरेंसिक जांच को सार्वजनिक किया जाना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ की आशंका समाप्त हो सके।
हॉस्टल प्रशासन और पुलिस अधिकारियों से भी कड़ी पूछताछ होनी चाहिए। यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि मृतका की मौत के बाद तुरंत परिजनों को सूचना क्यों नहीं दी गई। इसके साथ ही, यदि रेप की आशंका जताई जा रही है, तो मामले से जुड़े सभी संदिग्ध व्यक्तियों को तुरंत हिरासत में लिया जाना चाहिए और उन पर उचित कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।
स्नेहा कुशवाहा की मौत एक गंभीर मामला है, जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। यदि इस मामले की निष्पक्ष जांच नहीं हुई, तो यह केवल एक लड़की की मौत नहीं होगी, बल्कि न्याय प्रणाली और प्रशासनिक तंत्र की विफलता भी साबित होगी। जनता की ओर से लगातार इस मामले में न्याय की मांग की जा रही है, और यदि समय पर उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो यह केस भी उन हजारों मामलों में शामिल हो जाएगा, जो समय के साथ भुला दिए जाते हैं।
यह केवल स्नेहा के परिवार की लड़ाई नहीं है, बल्कि समाज की हर उस बेटी की लड़ाई है, जो शिक्षा के लिए घर से दूर जाती है और ऐसी घटनाओं का शिकार बनती है। न्याय की आस में स्नेहा का परिवार आज भी उम्मीद लगाए बैठा है कि उसकी मौत का सच दुनिया के सामने आएगा और दोषियों को सजा मिलेगी। अब यह देखना होगा कि प्रशासन इस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई करता है या इसे भी समय के साथ ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।