वीर सावरकर: कॉलेज के नाम पर विवाद क्यों?

Veer Savarkar: Why the controversy over the name of the college?

प्रो. महेश चंद गुप्ता

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल में दिल्ली यूनिवर्सिटी में महान स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर वीर सावरकर के नाम पर नए कॉलेज की आधारशिला रखी। इसी के साथ सावरकर के नाम पर राजनीति शुरू हो गई है। कांग्रेस ने सावरकर के नाम पर विरोध जताना शुरू कर दिया है। कांग्रेस इस कॉलेज का नाम पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम पर रखने की वकालत कर रही है जबकि वामपंथी कॉलेज का नाम देश की पहली अध्यापिका सावित्री बाई फुले के नाम पर रखे जाने के पक्ष मेंं हैं। बड़ा प्रश्न है कि आखिर वीर सावरकर के नाम पर कांग्रेस परेशान क्यों हो उठती है?

देश मेंं दशकों तक सत्ता सुख भोगती रही कांग्रेस के नेता केन्द्र मेंं मोदी सरकार बनने के बाद से बुरी तरह निराश और हताश हैं। वह सत्ता में वापसी के लिए जितने तडफ़ड़ा रहे हैं, हकीकत में सत्ता उनसे उतनी ही दूर होती जा रही है। जब कांग्रेस पार्टी सरकार में थी तो उसने लंबे समय तक देश की राजनीति को नेहरू-गांधी परिवार के हिसाब से आकार दिया है। कांग्रेस ने जिस तरह परिवारवाद को बढ़ावा दिया, देश की संस्थाओं के नामकरण में पक्षपात किया और सरदार पटेल, अंबेडकर और लालबहादुर शास्त्री जैसे नेताओं को हाशिये पर धकेला, उस बारे में सब जानते हैं। कांग्रेस मेंं पहले जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी छाए रहे और अब सोनिया गांधी और राहुल गांधी का वर्चस्व साफ दिखाई देता है। इससे पार्टी के भीतर प्रतिभावान नेताओं के लिए आगे बढऩे का अवसर सीमित हो गया है। केवल गांधी परिवार के नाम पर राजनीति करने की कोशिश में कांग्रेस न केवल बुरी तरह पस्त हुई है, बल्कि रसातल में चली गई है।

जब तक कांग्रेस सत्ता में रही, देश की तमाम संस्थाओं, योजनाओं और कार्यक्रमों के नाम गांधी-नेहरू परिवार के सदस्यों पर ही रखे जाते रहे। अगर केवल दिल्ली में ही इस नामों पर गौर करते हैं तो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, इंदिरा गांधी विवि, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, कमला नेहरू कॉलेज, इंदिरा गांधी नेशनल कल्चरल सेंटर, राजीव गांधी कैंसर हॉस्पिटल, इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, राजीव चौक, राजीव गांधी भवन और न जाने कितनी ही सडक़ें, अन्य भवन, चौक-चौराहे वगैरह नजर आते हैं, जिनका नामकरण कांग्रेस के नेताओं के नाम पर ही किया गया है। केन्द्र और विभिन्न राज्य सरकारों की तमाम योजनाओं का नामकरण भी नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर ही किया जाता रहा है। कांग्रेस नेताओं का यह महिमामंडन हमारे महान स्वाधीनता सेनानियों और अन्य बड़े नेताओं को दरकिनार करके किया गया है।

वैसे तो हर गैर कांग्रेसी नेता के नाम पर किसी भवन, संस्था या योजना का नाम रखे जाने कांग्रेस तिलमिला उठती है लेकिन वीर सावरकर के नाम पर कांग्रेस नेता सबसे ज्यादा परेशान हो उठते हैं। दरअसल, तुष्टिकरण के खेल में माहिर कांग्रेस को हिंदुत्व से खास चिढ़ है। यही कारण है कि कांग्रेस को उन महान क्रांतिकारियों एवं नेताओं का नाम तक नहीं सुहाता, जो हिंदुत्व का प्रतीक बन चुके हैं। हाल यह है कि कांग्रेस के एक छोटे कार्यकर्ता से लेकर राहुल गांधी तक सभी वीर सावरकर की आलोचना करने मेंं लगे रहते हैं। कांग्रेस को एक बार भी सावरकर पर अंग्रेजों से माफी मांगने, औपनिवेशिक अधिकारियों की चाटुकारिता करने और महिलाओं का अपमान करने जैसे आरोप लगाकर उनकी छवि खराब करते हुए संकोच नहीं हुआ है लेकिन कांग्रेस के विषवमन के बावजूद राष्ट्रवादी जनता देश की आजादी के लिए पूरा जीवन खपा देने वाले सावरकर के आगे श्रद्धानमत होती है। कांग्रेस के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि अगर वीर सावरकर देश की आजादी के लिए नहीं लड़ रहे थे तो अंग्रेजों ने उन्हें दो बार उम्रकैद का दंड क्यों दिया? आखिर किसलिए सावरकर को काले पानी की सजा देकर अंडमान की काल कोठरियों में रखा जाता रहा? क्यों सावरकर पर निर्मम जुल्म किए जाते रहे? कांग्रेस जब तक सत्ता में रही, उसने सावरकर जैसे महान नेताओं की शौर्य गाथा को जनता के सामने नहीं आने दिया। उसने नेहरू को ही ‘युगपुरुष’ साबित करने के लिए अपना समूचा जोर लगा दिया। लेकिन कांग्रेस के पास इस बात का भी कोई जवाब नहीं है कि आखिर नेहरू को कभी काले पानी की सजा देकर काल कोठरी मेंं क्यों नहीं भेजा गया?

कांग्रेस ने कभी भी सावरकर और उन जैसे अन्य महान स्वाधीनता सेनानियों को वह गौरव प्रदान नहीं किया, जिसके वह हकदार थे और आज जब एक कॉलेज का नामकरण सावरकर के नाम पर किया गया है तो यह भी उनसे हजम नहीं हो रहा है।
देश के लोग अब कांग्रेस के तुष्टिकरण और वीर सावरकर के विराट व्यक्तित्व में अंतर करना जान गए हैं। लोगों को पता है कि कांग्रेस हिंदुत्व एवं हिंदुत्ववादी नेताओं का विरोध अपनी तुष्टिकरण की नीति के कारण ही करती आ रही है। लोग इसे भूले नहीं है कि वर्ष 2003 में पुराने संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में सावरकर का चित्र लगाने की भी कांग्रेस ने जमकर मुखालफत की थी। कांगे्रस ने तब यह तर्क दिया था कि सावरकर एक सांसद नहीं थे, इसलिए उनका चित्र संसद भवन में नहीं लगाया जाना चाहिए। जबकि हकीकत यह है कि उससे पहले महात्मा गांधी और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के चित्र उनके सांसद न होने के बावजूद संसद मेंं लगाए जा चुके थे। साफ जाहिर है, एक हिंदुत्ववादी महान नेता का चित्र संसद मेंं लगाए जाने पर कांग्रेस को ऐतराज था।

कांगे्रसी और वामंपथियों का मानना है कि कॉलेज का नामकरण सावरकर के नाम पर करने के पीछे मौजूदा राजनीतिक माहौल में ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने का उद्देश्य है। कहा जा रहा है कि ऐसा करके अपनी विचारधारा को शिक्षा के क्षेत्र में थोपने की कोशिश की जा रही है। पर सवाल यह भी है कि देश में लोग राष्ट्रवादी विचारधारा पर न चलें तो क्या तुष्टिकरण के उस मार्ग पर चलें, जिसे कांग्रेस पसंद करती है? यह भी कहा जा रहा है कि शिक्षा संस्थानों को राजनीति से अलग रखा जाना चाहिए। ऐसे नामकरण शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करेंगे। सवाल यह है कि जब नेहरू और इंदिरा गांधी के नाम पर विश्वविद्यालयों का नामकरण किया गया तो क्या उससे शिक्षा का उद्देंश्य नहीं प्रभावित हुआ होगा?

सावरकर के नाम पर कॉलेज के नामकरण किए जाने पर प्रलाप करके कांग्रेस सिर्फ राजनीति कर रही है। उनके नाम पर कॉलेज का नामकरण होना एक स्वाधीनता सेनानी के रूप में वीर सावरकर का सम्मान और उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन है, जो बारम्बार किया जाना चाहिए। जिन सावरकर ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपना जीवन समर्पित किया, उन्हें यह सम्मान बहुत पहले मिल जाना चाहिए था। कांग्रेस एवं वामपंथी भले ही इस मामले पर राजनीति कर रहे हों लेकिन इस संबंध मेंं केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का कथन गौर करने लायक है। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय फाउंडेशन के प्रथम ‘समर्पण समारोह’ को संबोधित करते हुए सही कहा है कि सावरकर एक महान राष्ट्रवादी थे लेकिन समाज का एक वर्ग औपनिवेशिक मानसिकता वाला है, जिसे डीयू कॉलेज का नाम उनके नाम पर रखे जाने पर आपत्ति है। प्रधान ने कहा कि हम इतिहास को बदलना नहीं चाहते, बल्कि इतिहास को बड़ा करना चाहते हैं। इतिहास भविष्य के लिए दर्पण होता है और डीयू इसमें बड़ी भूमिका निभा रहा है।

केन्द्रीय शिक्षा मंत्री का कहना पूर्णतया सही है। अगर हम सावरकर जैसे महान क्रांतिकारियों पर गर्व करेंगे तो निश्चय ही हमारा इतिहास बड़ा होगा और उसका गौरव बढ़ेगा। सिर्फ एक कॉलेज ही क्यों, देश मेें विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, प्रतिष्ठित संस्थानों, संस्थाओं, स्कूलों, हवाई अड्डों, बस अड्डो, रेलवे स्टेशनों का नामकरण भी सावरकर और अन्य महापुरुषों तथा स्वाधीनता सेनानियों के नाम पर किया जाना चाहिए। इससे जहां महान विभूतियों का अभिनंदन होगा, वहीं हमारी युवा पीढ़ी को एक दिशा मिलेगी। कांग्रेस के राज में वामपंथियों द्वारा इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा जाता रहा है। विदेशी आक्रांताओं को महान बताया जाता है। इसके विपरीत आज अगर भाजपा के शासन मेंं सावरकर को यह सम्मान दिया जा रहा है तो यह समूचे देशवासियों के लिए गर्व का विषय है। निश्चय ही वीर सावरकर का नाम विद्यार्थियों को प्रेरित करेगा और उन्हें अपने इतिहास के प्रति जागरूक बनाएगा। सावरकर के नाम पर कॉलेज का नामकरण ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के सही मूल्यांकन का प्रतीक है। इसे निरर्थक बहस और विवाद का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए।
(लेखक प्रख्यात शिक्षा विद्, चिंतक और वक्ता हैं। वह 44 सालों तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे हैं।)