रविवार दिल्ली नेटवर्क
नई दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह का उद्घाटन भारत के उपराष्ट्रपति एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलाधिपति माननीय एम. वेंकैया नायडू ने दीप प्रज्वलित करके किया। इस अवसर पर मुख्यातिथि के तौर पर अपने उद्घाटन उद्बोधन में उन्होने भारत को पुन: विश्वगुरु बनाने में दिल्ली विश्वविद्याल्य से अपनी महती भूमिका निभाने का आह्वान भी किया। समारोह में उनके साथ विशिष्ट अतिथि के तौर पर केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान मौजूद रहे। समारोह की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने की।
गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना एक मई 1922 को हुई थी और एक मई 2022 को विश्वविद्यालय की स्थापना के शताब्दी समारोह का आयोजन डीयू परिसर में किया गया था। समारोह के दौरान मुख्यातिथि एम. वेंकैया नायडू ने अतीत में भारत की शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक शाख की चर्चा करते हुए नालंदा, तक्षशिला विक्रमशिला आदि विश्वविद्यालयों के उदाहरण दिये जहां कि दुनिया के कोने कोने से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। उन्होने भविष्य में भारत के फिर से विश्वगुरु बनने में दिल्ली विश्वविद्यालय का आह्वान किया। उन्होने कहा कि हमें विश्वगुरु बनना है लेकिन किसी पर कब्जा करना हमारा उद्देश्य नहीं और न ही हमने अतीत में कभी ऐसा किया है। दूसरों को खुशी देना और वैश्विक शांति ही हमार उद्देश्य है। उन्होने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय का स्वतंत्रता आंदोलन में भी अहम योगदान रहा है।
मुख्यातिथि ने कहा कि शिक्षा ज्ञान को बढ़ाने का माध्यम है। उन्होने कहा कि विश्वविद्यालय केवल शिक्षा के केंद्र न बनकर उत्कृष्टता के केंद्र बनें। हमें ज्ञान के केंद्र बनना है और दुनिया के सर्वोत्त्म 10 संस्थानों में शुमार होना है। हमें गरीबी तथा अशिक्षा पर काबू पाना है और गांव व शहर की दूरी को पाटना है। इसके लिए विश्वविद्यालयों को नेतृत्व करना होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का ब्लूप्रिंट सही मायनों में पठन व पाठन के समग्र विकास के साथ शिक्षा के परिदृश्य को बदलेगा और नए आयाम स्थापित करेगा। उन्होने क्षेत्रीय शिक्षा और मातृभाषा को बढ़ावा देने का आह्वान करते हुए कहा कि इसके लिए नई शिक्षा नीति में प्रारम्भिक शिक्षा का प्रावधान मातृभाषा में किया गया है।
उन्होने संस्कृति व प्रकृति के संरक्षण पर भी ज़ोर दिया। कोरोना महामारी के दौर का उदाहरण देते हुए उन्होने कहा कि इस महामारी के दौरान गांव के क्षेत्रों में कम प्रभाव देखने को मिला जबकि शहरों में लोग महामारी से अधिक प्रभावित हुए। उसके पीछे उन्होने ग्रामीण लोगों के प्रकृति के नजदीक रहने और मेहनत करने का कारण बताया। उन्होने शारीरिक श्रम पर ज़ोर देते हुए कहा कि इससे मानसिक चुस्ती बनती है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि वैसे तो भारत में सब कुछ उपलब्ध है, लेकिन फिर भी जो देश से बाहर जाना चाहते हैं, वो वहां जाएँ, सीखें और वापिस आकर भारत में शोध को बढ़ावा दें। शोध का लक्ष्य रिफॉर्म, प्रोफोर्म ओर ट्रांसफ़ोर्म होना चाहिए जिससे कि लोगों की ज़िंदगी सुविधाजनक और खुशहाल बन सके। यही शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए। उन्होने डीयू से आह्वान किया कि शोध को और बढ़ावा देने के साथ-साथ अपनी वैश्विक रेंकिंग को और बेहतर बनाएँ। इसके साथ ही उन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय के 100 वर्ष पूरे होने पर सभी को बधाई दी।
समारोह के विशिष्ट अतिथि के तौर पर आए केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने अपने संबोधन में दिल्ली विश्वविद्यालय के 100 वर्ष पूरे होने पर कुलपति, सभी पूर्व कुलपतियों, पूर्व शिक्षकों, वर्तमान शिक्षकों, विद्यार्थियों व डीयू से जुड़े सभी गैर शिक्षक कर्मचारियों सहित डीयू की कैंटीनों में काम करने वाले लोगों को भी बधाई दी। उन्होने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के निर्माण व 100 वर्ष की सफल विकास यात्रा में इन सभी लोगों का अहम योगदान है। उन्होने कहा कि पुरातन विश्वविद्यालयों के तो नाम ही हमारे सामने हैं, लेकिन देश में 100 वर्ष की उम्र पूरी कर चुके बहुत कम संस्थान मौजूद हैं जिनमें दिल्ली विश्वविद्यालय भी एक है। उन्होने डीयू को जीवंत विश्वविद्यालय की संज्ञा देते हुए कहा कि हमारी आजादी का इतिहास इस संस्थान से जुड़ा रहा है। शहीद भगत ने एक रात इस संस्थान में गुजारी। महात्मा गांधी इसके सेंट स्टीफन कालेज में रहे।
धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि भविष्य में हमें रोजगार तलाशने वाले नहीं बल्कि रोजगार पैदा करने वाले बनना होगा और दिल्ली विश्वविद्यालय का इसमें अहम योगदान होगा। उन्होने कहा कि देश के अमृतकाल में डीयू अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। जब देश अपनी आजादी के 100 वर्ष मनाएगा तो डीयू अपनी स्थापना के 125 वर्ष मना रहा होगा। अगले 25 वर्षों में डीयू को शोध के क्षेत्र में बहुत कुछ करना होगा। उन्होने डीयू की सराहना करते हुए कहा कि देश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को डीयू ने सबसे पहले अपनाया है और केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के लिए एकल प्रवेश परीक्षा को लागू करने में भी पहल की है। इसके लिए उन्होने डीयू को भी बधाई दी। उन्होने देश में नए पाठ्यक्रम के लिए भी डीयू से योगदान का आह्वान किया। उन्होने कहा कि नई शिक्षा नीति भारत की शिक्षा को जड़ों से जोड़ेगी और वैश्विक स्तर पर शिक्षा का भारतीय मॉडल स्थापित करेगी। अपने संबोधन के अंत में उन्होने डीयू के शताब्दी समारोह के आयोजन को लेकर सभी को बधाई दी।
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने डीयू के 100वें स्थापना दिवस पर पहुंचे सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होने अपने अध्यक्षीय भाषण में डीयू की स्थापना को लेकर कानूनी प्रक्रियाओं से लेकर इसके 100 वर्षों के स्वर्णिम इतिहास पर भी प्रकाश डाला। उन्होने बताया एक मई 1922 को 750 विद्यार्थियों व केवल तीन महाविद्यालयों के साथ शुरू हुआ यह विश्वविद्यालय आज देश-दुनिया का प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय बन चुका है। आज डीयू में 6 लाख 6 हजार 228 विद्यार्थी, 90 कॉलेज, 16 फ़ैकल्टी और हजारों शिक्षक हैं। 40 हजार के बजट से शुरू हुआ यह विश्वविद्यालय आज 838 करोड़ से अधिक के बजट पर पहुँच चुका है। कुलपति ने डीयू की उपलब्धियां गिनवाते हुए बताया कि इन 100 वर्षों में दिल्ली विश्वविद्यालय देश के हर घर और हर मन तक पहुँच चुका है। उन्होने कहा कि अगले 25 वर्षों में डीयू को बहुत कुछ करना होगा। शताब्दी समारोह से पूर्व सुबह कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने डीयू परिसर में नए स्थापित हुए 165 फुट ऊंचे राष्ट्र ध्वज को भी फहराकर उद्घाटन किया। समारोह के दौरान भारतीय डाक विभाग की दिल्ली मण्डल की चीफ पोस्ट मास्टर जनरल सुश्री मंजु कुमार, डीन ऑफ कॉलेजज प्रो. बलराम पाणी, डायरेक्टर साउथ कैंपस प्रो. श्री प्रकाश सिंह, रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता, समारोह समिति की कनवीनर प्रो. नीरा अग्निमित्रा, प्रोक्टर प्रो. रजनी अब्बी, डीयू पीआरओ श्री अनूप लाठर, एनएसयूटी के कुलपति प्रो. जेपी सैनी, अंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अनु सिंह लाठर, डीपीएसआरयू कुलपति प्रो. रमेश कुमार गोयल, आईआईआईटी सोनीपत के डायरेक्टर प्रो. एमएन दोजा व श्री जगदीश मित्तल आदि सहित विश्वविद्यालया के पूर्व कुलपति, पूर्व शिक्षक, वर्तमान शिक्षक, गैर शिक्षक वर्ग, अनेकों गणमान्य व्यक्ति एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
डीयू के शताब्दी समारोह में ये हुई नई शुरुआत
शताब्दी समारोह के दौरान मुख्यातिथि एम. वेंकैया नायडू ने अपने हाथों से डीयू पर एक डाक टिकट भी जारी किया। इसके साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय का शताब्दी स्मारक सिक्का भी जारी किया गया। चित्रों के माध्यम से डीयू के 100 वर्ष के इतिहास पर आधारित एक शताब्ती स्मारिका भी जारी की गई। डीयू की पूरी जानकारी से भरे ब्रोसर को जारी भी किया गया। एनईपी 2020 पर आधारी कैरीकुलम फ्रेमवर्क को हिन्दी, संस्कृत एवं तेलुगू भाषा में मुख्यातिथि ने अपने हाथों से जारी किया। इसके साथ ही डीयू की शताब्दी वेबसाइट का शुभारंभ भी मुख्यातिथि ने अपने हाथों से रिमोट के द्वारा किया। डीयू के इतिहास व उपलब्धियों को लेकर 100 वर्ष की यात्रा पर एक 100 सेकंड की डाक्यूमेंटरी फिल्म भी जारी की गई। इसके अलावा मुख्यातिथि ने डीयू शताब्दी लोगो को डिजाइन करने वाली गार्गी कालेज की विद्यार्थी कर्तिका खिंची को भी सम्मानित किया।