डर के आगे जीत है

पिंकी सिंघल

मां-बाप की इकलौती बेटी होने के कारण शेफाली बहुत ही नाज़ों से पली-बढ़ी थी। घर के सभी छोटे बड़े शेफाली को बहुत ही स्नेह देते थे और उसकी हर ज़िद को बिना किसी सवाल जवाब के पूरा भी करते थे क्योंकि शेफाली के अलावा घर में कोई और बच्चा नहीं था। उसे तनिक भी कष्ट या परेशानी का अनुभव ना होने पाए, इसलिए उसकी हर छोटी बड़ी समस्या को घर के बड़े अपने स्तर पर ही सुलझा लिया करते थे।उसे कभी मौका ही नहीं दिया गया कि वह आगे बढ़कर कोई जिम्मेदारी ले,संघर्ष करे,दर्द को महसूस करना सीखे।

इसलिए दुनियादारी से अनजान शेफाली के मन में कई चीजों को लेकर डर और असुरक्षा की भावना घर कर गई।कांटे भर की चुभन उससे बर्दाश्त नहीं होती थी। कई चीजों के प्रति मन में डर रखने वाली शेफाली धीरे-धीरे जवान हुई और उसकी शादी हो गई। दुख, तकलीफ, दर्द, पीड़ा क्या होते हैं,उसे इस बात का कोई अनुभव और एहसास ही नहीं था।इसलिए शादी के बाद जब वह पहली बार प्रेग्नेंट हुई तो उसे इस बात का भय दिन-रात सताता था कि 9 महीने पश्चात डिलीवरी के समय होने वाले दर्द को वह कैसे बर्दाश्त कर पाएगी क्योंकि उसने अपने मस्तिष्क में कुछ इस प्रकार के संशय या यूं कहें कि डर बैठाकर रखे थे कि डिलीवरी के समय महिलाओं को असहनीय पीड़ा होती है , कई महिलाएं तो वहीं दम भी तोड़ देती हैं, कईयों की सर्जरी भी करनी पड़ जाती है,और डिलीवरी के बाद मानों उनका दूसरा जन्म ही होता है।

9 महीने का यह समय उसने दिन रात चिंता में भयभीत होकर ही निकाला ।समय आने पर जब उसे लेबर रूम में ले जाया गया तो वह बहुत अधिक घबरारही थी।उसे भी अन्य महिलाओं की तरह उसी पीड़ा का अनुभव हुआ। 4 से 5 घंटे ऐसे असहनीय दर्द को घूंट घूंट पीने के पश्चात शेफाली ने एक प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया जिसकी झलक पाते ही शेफाली अपनी सारी पीड़ा और तकलीफें पल भर में भूल गई। इस प्रकार अंतत:उसने अपने इस डर पर भी स्वाभाविक तरीके से जीत हासिल की।

सच ही कहते हैं कि प्रकृति बहुत महान है जो सही समय आने पर हमें सब कुछ सहना सिखा ही देती है।