संदीप ठाकुर
चुनाव तिथि की घाेषणा के साथ ही पांच राज्याें में चुनावी बिगुल बज गया
है। विभिन्न दलाें ने प्रयाशियाें के नाम घाेषित कर दिए हैं। उनमें से
भारतीय जनता पार्टी शीर्ष पर है। संभावित हार काे देखते हुए इस बार भाजपा
ने अपनी चुनावी रणनीति बदल दी है। हारी सीटाें काे जीतने के दांव के चलते
पार्टी ने इस बार मध्य प्रदेश में अपने कई ऐसे नेताओं काे चुनाव मैदान
में उतार दिया है जिनका प्रदेश की राजनीति से लंबे समय से काेई वास्ता
नहीं रहा है। वे केंद्र की राजनीति करते रहे हैं। लेकिन इस बार उन्हें
राज्य विधानसभा के चुनाव लड़ने पड़ रहे हैं। इनमें कई केंद्रीय मंत्री और
सांसद हैं। वाे भी ऐसे सांसद जाे आजतक चुनाव हारे ही नहीं। लेकिन इस बार
उनकी इज्जत भी दाव पर लगी हुई है। जीतेंगे या हारेंगे उन्हें खुद नहीं
पता। अधिकांश के लिए परिस्थितियां चुनाैतीपूर्ण हैं। कई दिग्गज नेता उन
चुनाैतियाें से जूझ रहे हैं। पार्टी ने उनके सियासी कद के हिसाब से जीत
जितनी आसान समझी थी उतनी इस बार है नहीं। सबसे बड़ा खतरा भीतरघात का है।
क्याेंकि इन दिग्गजाें के चक्कर में जिन स्थानीय नेताओं के टिकट कट गए वे
खुल कर ताे कुछ नहीं बाेल पा रहे लेकिन अंदर से प्रत्याशी काे हराने का
षड्यंत्र रचने से भी बाज नहीं ा रहे हैं। इस हकीकत का अंदाजा दिग्गजाें
काे भी है। बताैर उदाहरण मध्यप्रदेश की उन आठ सीटाें का गणित समझने का
प्रयास करते हैं जिन पर भाजपा के केंद्रीय मंत्री व सांसद चुनाव लड़ रहे
हैं।
नरेंद्र सिंह ताेमर
राजनीतिक दाव पेंच में माहिर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह ताेमर आज तक
एक भी चुनाव नहीं हारे हैं। वे दिमनी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। यह सीट
2008 के बाद से भाजपा के पास आई ही नहीं है। 2013 में बसपा के बलवीर
दंडाेलिया और 2018 में कांग्रेस से गिर्राज दंडाेलिया चुनाव जीते थे।
गिर्राज सत्ता परिवर्तन में भाजपा में आए ताे उपचुनाव में यह सीट
कांग्रेस के खाते में चली गई। यहां से कांग्रेस के रवींद्र सिंह जीते।
ताेमर काे रवीेंद्र व बलवीर से निपटना है। बलवीर के कांग्रेस में आने की
संभावना है। ऐसे में ताेमर की जीत आसान नहीं है।
प्रहलाद पटेल
नरसिंहपुर सीट पर माैजूदा विधायक जालम के बदले उनके बड़े भाई केंद्रीय
मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल काे मैदान में पार्टी ने उतारा है। जालम की छवि
विगत कुछ सालाें में बेहद खराब हुई है। इस कारण सीट बचाने के लिए भाजपा
ने यह दांव चला है। देखना दिलचस्प हाेगा कि प्रहलाद अपने भाई की बिगड़ी
छवि का खामियाजा भुगगते हैं या फिर जीतने में कामयाब हाेते हैं। वैसे
भाजपा की स्थिति इस सीट पर मजबूत नहीं मानी जा रही है।
कैलाश विजयवर्गीय
इंदाैर 1 से पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय काे पार्टी ने उम्मीदवार
बनाया है। इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। संजय शुक्ल यहीं से विधायक
हैं। 2003 में सीट भाजपा के पास थी। 2018 में कांग्रेस ने यहां से जीत
दर्ज कराई और बताया जाता है कि क्षेत्र में जम कर काम किया। बताया जाता
है कि शुक्ला का व्यक्तिगत छवि इतनी उम्दा हाे गई है कि उसे हरा पाना
बेहद मुश्किल है। इसका अहसास कैलाश विजयवर्गीय काे भी है। इसलिए वे बेहद
अनमने ढंग से चुनाव लड़ रहे हैं। उनका एक वीडियाे भी साेशल मीडिया पर
वाइरल हुआ था जिसमें वाे यह कहते नजर ा रहे थे कि मेरा कद बेहद बड़ा हाे
चुका है। मैे विधानसभा चुनाव में घर घर जाकर वाेट मांगू।
रीति पाठक
सीधी से सांसद रीति पाटक काे भाजपा वे उम्मीदवार बनाया है। यहां 2008 से
केदारनाथ शुक्ला काबिज हैं। भाजपा ने मीत्र विसर्जन कांड के बाद केदार का
टिकट काट दिया। यहां ब्राहमण वर्ग केदार के साथ आज भी है। केदार काे टिकट
नहीं मिलने से वह भाजपा से नाराज है। इसका खामियाजा रीति पाठक काे भुगतना
पड़ सकता है।
फग्गन सिंह कुलस्ते
मंडला जिले की निवास सीट पर केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते काे
भाजपा ने उतारा है। आदिवासी बाहुल्य सीट है यह। 2003 से 2013 तक भाजपा के
पास थी। बाद भी भाजपा के हाथ से निकल गई। इस बार वहां माहाैल भाजपा के
पक्ष में नहीं है। आदिवासी कांग्रेस के पक्ष में हैं। फिलहाल वहां से
विधायक भी कांग्रेसी है। देकना है कि कुलस्ते कमाल कर सकते हैं या नहीं।
गमेश सिंह
सतना सीट से भाजपा प्रत्याशी। 2003 से 2013 तक यह सीट भाजपा के पास थी।
2018 में कांग्रेस के सिद्गार्थ कुशवाहा जीते। सीट काे वापस जीतने के लिए
गणेश कर पार्टी ने दांव लगाया है। लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार वहां बेहतर
स्थिति में हैं क्याेंकि बसपा के वाेट बैंक का एक बड़ा वर्ग ुनके समर्थन
में है।
राकेश सिंह
जबलपुर पश्तिम सीट 1990 से 2008 तक भाजपा के पास थी। लेकिन 2013,2018 में
कांग्रेस यहां से जीती और अब यह कांग्रेस के गढ़ में बदल चुका है। ऐसे
में भाजपा उम्मीदवार का जीत पाना ासान नहीं हाेगा। यहां भाजपा काे
जबरदस्त भीतरधात का भी खरता है।
राव उदय प्रताप सिंह
गाडरवारा सीट का रिकॉर्ड 2003 से ही एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस का
रहा है। उदय भाजपा के सांसद हैं। इस सीट पर अभी भाजपा काबिज है। इस बार
परंपरानुसार कांग्रेस की बारी है। पार्टी ने माैजूदा विधायक का टिकट काट
सांसद काे प्रत्याशी बनाया है। भीतरधार से इंकार नहीं किया जा सकता है।