
निर्मल रानी
दिल्ली-एनसीआर को गत दिनों तेज़ आंधी,बारिश व तूफ़ान का सामना करना पड़ा। इस तेज़ आंधी में नई दिल्ली स्टेशन के क़रीब नबी करीम क्षेत्र में एक निर्माणाधीन मकान की दीवार गिर गई जिसमें दब जाने से 3 लोगों की मौत हो गई और 3 लोग घायल हो गये। जबकि कई जगहों पर पेड़ उखड़ने का भी समाचार है। परन्तु शायद इस आंधी का सबसे अधिक प्रकोप न्यू अशोक नगर रैपिड मेट्रो स्टेशन को झेलना पड़ा। दिल्ली-गाज़ियाबाद-मेरठ रैपिड रेलवे ट्रांज़िट सिस्टम के बीच आने वाले इस स्टेशन के एक बड़े हिस्से की छत ही तेज़ हवा के चलते उड़ गई। और छत की कई टीन नीचे सड़क पर जा गिरी तो कई हवा में लटकने लगीं। ग़ौर तलब है कि अभी क़रीब चार माह पूर्व ही 5 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिल्ली-मेरठ रेपिड रेलवे ट्रांज़िट सिस्टम के 13 किलोमीटर लंबे जिस सेक्शन का उद्घाटन किया था, न्यू अशोक नगर स्टेशन भी उसी सेक्शन के बीच आने वाला एक प्रमुख स्टेशन है। और यह नवनिर्मित स्टेशन आंधी-तूफ़ान का एक झटका भी नहीं झेल पाया। दिल्ली के न्यू अशोक नगर को उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद से जोड़ने वाली इस परियोजना में 4,600 करोड़ रुपये की लागत आई है। न्यू अशोक नगर रैपिड मेट्रो स्टेशन पर हुये इस हादसे के बाद सुरक्षा के दृष्टिगत नमो भारत ट्रेन की सेवाओं के आवागमन को अगले आदेश तक स्थगित करना पड़ा था। इस हादसे के बाद एक बार फिर स्टेशन की छत के निर्माण की गुणवत्ता पर प्रश्न उठने लगे हैं।
यहाँ एक बात यह भी क़ाबिले ग़ौर है न केवल प्रधानमंत्री नई ट्रेन को झंडी दिखा कर रवाना करते हैं बल्कि पुल,हाईवे एक्प्रेसवे के छोटे से नवनिर्मित हिस्से जैसी परियोजनाओं का भी वे स्वयं उद्घाटन करते हैं बल्कि ऐसे अवसरों पर प्रायः कांग्रेस की सरकार को कोसने और अपनी पीठ थपथपाने से भी नहीं चूकते। मिसाल के तौर पर गत वर्ष द्वारका एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के समय प्रधानमंत्री ने तंज़ करते हुये कहा था कि “कांग्रेस ने 7 दशक तक जो गड्ढे खोदे थे वे अब तेज़ी से भरे जा रहे हैं। उसी समय उन्होंने यह भी कहा था कि ‘मैं न छोटा सोच सकता हूं, न मैं मामूली सपने देखता हूं और न ही मैं मामूली संकल्प करता हूं। मुझे जो चाहिए विराट चाहिए, विशाल चाहिए और तेज़ गति से चाहिए क्योंकि 2047 में मुझे देश को ‘विकसित भारत’ के रूप में देखना है।’ परन्तु उन्होंने यह नहीं कहा कि मुझे हर परियोजना का निर्माण टिकाऊ व मज़बूत भी चाहिये। याद कीजिये 16 जुलाई को प्रधानमंत्री ने ज़िला जालौन के कैथेरी में पूरे प्रचार-प्रसार के साथ जिस बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन किया था वह एक्सप्रेस-वे उद्घाटन के केवल 5 दिन बाद ही जगह-जगह से धंस गया था और उसमें कई जगह बड़े बड़े गड्ढे पड़ गये थे। जिसके कारण कई वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गये थे। चित्रकूट के भरतकूप से शुरू होकर इटावा के कुदरेल में मिलने वाले इस बुन्देलखंड एक्सप्रेस वे के निर्माण पर क़रीब 14 हज़ार करोड़ की लागत आई थी। इसके एक वर्ष बाद फिर इसी एक्सप्रेस वे पर पुनः चित्रकूट को जाने वाली लेन पर क़रीब एक दर्जन गढ्ढे हो गए थे। इन गड्ढों में पानी भरने से एक्सप्रेस वे से निकलने वाले कई वाहनों को दुर्घटना का शिकार होना पड़ा था। उस समय भी मीडिया में इस परियोजना की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किये गए थे और काफ़ी घटिया निर्माण के चलते सरकार की काफ़ी फ़ज़ीहत हुई थी। ज़ाहिर है यह गड्ढे कांग्रेस के समय के नहीं थे।
इसी तरह देश के सबसे लंबे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे पर दौसा ज़िले के भांडारेज के पास पर भारी वाहन गुज़रने से सड़क धंस गई, जिससे बड़ा गड्डा हो गया था। इस परियोजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया गया था। यहाँ भांडारेज टोल के पास भारी वाहन गुज़रने मात्र से सड़क धंस गई थी जिससे सड़क के बीचों-बीच 15 फ़ुट गहरा गड्ढा हो गया था । इस एक्सप्रेस वे पर गड्ढे होने के बाद इसमें भी घटिया निर्माण सामग्री के इस्तेमाल तथा लापरवाही का आरोप लगा था। इस परियोजना के निर्माण पर भी लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की लागत आई थी। 12 फ़रवरी 2023 को इस का भी प्रधानमंत्री मोदी ने ही उद्घाटन किया था और उद्घाटन करते हुये इसे भी देश की आधारभूत संरचना का एक उत्कृष्ट उदाहरण बताया था। लेकिन उद्घाटन के कुछ ही महीनों में बारिश ने इस ‘उत्कृष्ट निर्माण’ की वास्तविकता को उजागर कर दिया था। इस तरह के दर्जनों ऐसे उदाहरण हैं जो या तो निर्माण के समय ही ध्वस्त या क्षतिग्रस्त हो गये या उद्घाटन के कुछ समय बाद ही उनकी असलियत उजागर हो गई। अभी गत वर्ष बिहार में इसतरह एक के बाद एक कई बड़े पुल ढह गए। गत वर्ष अयोध्या नगरी में कई जगह सड़कें धंस गयीं। चंडीगढ़ से राजस्था को जाने वाला अंबाला से होकर गुज़रने वाला हाइवे अपने निर्माण के कुछ ही समय बाद क्षतिग्रस्त हो गया था। इसपर बने कई पुल भारी वहां गुज़रने पर आज भी थरथर हिलते हैं। यह सारे ‘गड्ढे ‘ विकसित राष्ट्र के मार्ग में पड़ने वाले गड्ढे हैं जिनकी ज़िम्मेदारी न ही कांग्रेस की है न ही पंडित नेहरू की।
सवाल यह है कि इस तरह के घटिया निर्माण के पीछे का रहस्य आख़िर क्या है ? कौन हैं इन कंपनीज़ के मालिक जो जनता के टैक्स के पैसों की इसतरह खुलकर लूट करते हैं ? जनधन की लूट खसोट का यह सिलसिला आख़िर कभी ख़त्म भी होगा या नहीं ? इन लुटेरी निर्माण कंपनियों को किसकी शह मिली हुई है ? क्या वजह है कि जिन मुग़लों को विदेशी व आक्रांता बताकर दिन रात वोट बटोरने की राजनीति की जाती है उनके समय के बनाये हुये हज़ारों निर्माण आज भी पूरी मज़बूती के साथ अपना सिर बुलंद किये खड़े हैं। इसी तरह अंग्रेज़ों के शासनकाल के अनेक महत्वपूर्ण निर्माण आजतक क्षतिग्रस्त नहीं हुये। उदाहरणार्थ 18 जनवरी 1927 को तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड इरविन द्वारा उद्घाटित व ब्रिटिश वास्तुकारों एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर द्वारा डिज़ाइन किये गये पुराने संसद भवन का आज तक बाल भी बांका नहीं हुआ जबकि सेन्ट्रल विस्टा परियोजना के अंतर्गत बना नया संसद भवन जिसका उद्घाटन 28 मई 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था उसमें पहली बारिश के दौरान ही पानी टपकने लगा था। निश्चित रूप से यह इस भवन की गुणवत्ता या निर्माण में कमी के कारण ही था।
इससे नये संसद भवन की प्रतिष्ठा को भी ठेस पहुंची थी। परन्तु आश्चर्य है कि भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस व विकास का हर वक़्त ढिंढोरा पीटने वाली सरकार का ‘विकास’ कहीं गड्ढों में घुसा जा रहा है तो कहीं आंधी में उड़ा जा रहा है ?