
निलेश शुक्ला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने एक साहसिक और रणनीतिक रूप से सटीक निर्णय लेते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता और सांसद डॉ. शशि थरूर को ऑपरेशन सिंदूर के लिए वैश्विक कूटनीतिक अभियान में शामिल किया है। यह ऑपरेशन अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए जघन्य आतंकी हमले के जवाब में शुरू किया गया, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में मौजूद आतंकवादी ढांचे को निशाना बनाना और भारत के आत्मरक्षा के अधिकार के लिए वैश्विक समर्थन जुटाना है।
हालाँकि कांग्रेस पार्टी के कुछ वर्गों ने थरूर की इस भूमिका पर असंतोष जताया — इसे राजनीतिक या प्रक्रियात्मक कारणों से आपत्ति दी गई — लेकिन मोदी सरकार का यह फैसला व्यापक राष्ट्रीय हित और दूरदर्शिता के दृष्टिकोण से सराहनीय है। डॉ. थरूर को शामिल कर सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया है: जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा की हो, तो भारत एक स्वर में बोलता है।
ऑपरेशन सिंदूर: आतंकवाद के खिलाफ भारत का सख्त रुख
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने प्रवासी पर हमला किया , जिसमें 26 प्रवासी ने अपनी जान गवा दी, यह हमला भारत की सहनशीलता की सीमा को पार कर गया। इसके जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया — एक सटीक और उच्च-प्रभावी सैन्य कार्रवाई, जिसका लक्ष्य पाकिस्तान की धरती पर दशकों से फल-फूल रहे आतंकी शिविरों को खत्म करना है।
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और वैश्विक धारणा की अहमियत को समझते हुए, विदेश मंत्रालय ने सात संसदीय प्रतिनिधिमंडल गठित किए, जिनमें विभिन्न दलों के 59 सांसद शामिल हैं। इनका उद्देश्य दुनिया भर के नेताओं और संगठनों को भारत की स्थिति से अवगत कराना और यह बताना है कि भारत की कार्रवाई आत्मरक्षा में की गई है।
थरूर की भागीदारी: एक रणनीतिक और राष्ट्रहित में लिया गया निर्णय
डॉ. शशि थरूर का चयन न केवल उचित था, बल्कि यह सरकार की परिपक्व सोच को दर्शाता है। पूर्व संयुक्त राष्ट्र अवर महासचिव, विख्यात लेखक, वक्ता और अनुभवी सांसद के रूप में थरूर की वैश्विक स्तर पर गहरी साख है।
यह कदम न किसी समझौते का प्रतीक है, न ही किसी दबाव का परिणाम, बल्कि यह भारत की लोकतांत्रिक परंपरा का उदाहरण है — कि जब राष्ट्र की सुरक्षा दांव पर हो, तो राजनीति पीछे रह जाती है।
क्यों थरूर? क्योंकि वे हैं भारत की वैश्विक आवाज़
थरूर के अंतरराष्ट्रीय संबंध, थिंक टैंक्स, विश्वविद्यालयों और मीडिया जगत से गहरे रिश्ते हैं। जब वे वैश्विक मंचों पर बोलते हैं, तो उन्हें ध्यान से सुना जाता है। वे भारत की सुरक्षा चिंताओं को वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के संदर्भ में प्रभावशाली ढंग से रखते हैं।
थरूर ने ऑपरेशन सिंदूर के नामकरण को “उत्कृष्ट” और भावनात्मक रूप से गूंजने वाला बताया। उनका यह रुख — कि भारत की कार्रवाई प्रतिशोध नहीं बल्कि आत्मरक्षा है — भारत की कूटनीतिक रणनीति के साथ पूरी तरह मेल खाता है।
कांग्रेस से होने के बावजूद थरूर की भागीदारी अंतरराष्ट्रीय समुदाय को स्पष्ट संकेत देती है: भारत एकजुट है। यह भारत की बात को और अधिक विश्वसनीय बनाता है।
हालाँकि कांग्रेस पार्टी के कुछ वर्गों ने आपत्ति जताई कि सरकार ने पार्टी द्वारा प्रस्तावित नामों की सूची से चयन नहीं किया, लेकिन यह आपत्तियाँ राष्ट्रीय हित के बड़े उद्देश्य के सामने गौण हैं।
कुछ आलोचकों ने थरूर पर सरकार के साथ अत्यधिक निकटता का आरोप लगाया, परंतु यह आरोप परिपक्व लोकतांत्रिक भावना को नहीं दर्शाते। थरूर हमेशा से राष्ट्रीय मुद्दों पर रचनात्मक सहयोग और राजनीतिक मतभेद में स्पष्ट अंतर रखते आए हैं।
जैसे अमेरिका या ब्रिटेन जैसी लोकतंत्रों में सरकारें विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में विपक्ष को भी साथ लेती हैं, वैसे ही भारत को भी यह परंपरा अपनानी चाहिए।
मोदी सरकार का यह कदम प्रशंसनीय है, और प्रधानमंत्री की राजनीतिक दूरदर्शिता को दर्शाता है। उन्होंने समझा कि वैश्विक मंचों पर भारत की बात पहुंचाने के लिए विश्वसनीय और सशक्त आवाजें चाहिएं — और थरूर की विद्वता और वैश्विक पहचान भारत की बात को और मजबूती से रखती है।
डॉ. थरूर ने इस भूमिका को गरिमा और राष्ट्रभावना के साथ निभाया। उन्होंने इसे राजनीतिक लाभ का अवसर नहीं, बल्कि देश की सेवा का माध्यम माना।
उन्होंने खुफिया तंत्र की सीमाओं पर की गई टिप्पणी को वैश्विक संदर्भ में प्रस्तुत किया — कि दुनिया की सबसे अच्छी एजेंसियां भी चूक कर सकती हैं। इस प्रकार उन्होंने सुधार और मजबूती की बात की, न कि दोषारोपण की।
डॉ. शशि थरूर को ऑपरेशन सिंदूर के लिए वैश्विक प्रतिनिधिमंडल में शामिल करना केवल एक रणनीतिक निर्णय नहीं, बल्कि भारत की राजनीतिक परिपक्वता और लोकतांत्रिक शक्ति का प्रमाण है।
यह कदम दर्शाता है कि जब देश की सुरक्षा खतरे में हो, तो भारत एक हो जाता है — चाहे कोई भी दल हो। यह दर्शाता है कि भारत की कूटनीति केवल एक पार्टी की नहीं, बल्कि पूरे देश की सामूहिक आवाज़ है।
मोदी सरकार को इस व्यापक दृष्टिकोण के लिए सराहना मिलनी चाहिए, और डॉ. शशि थरूर को इस भूमिका को राष्ट्रहित में स्वीकार करने और सफलतापूर्वक निभाने के लिए सम्मान मिलना चाहिए।
यदि भारत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में आगे बढ़ना है, तो ऐसी ही परिपक्वता, कूटनीति और एकता को अपनी परंपरा बनाना होगा — अपवाद नहीं।