स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण राष्ट्रीय योजना स्वीकृति समिति के गैर सरकारी सदस्य के के गुप्ता का वियतनाम दौरा

रविवार दिल्ली नेटवर्क

नई दिल्ली : स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण राष्ट्रीय योजना स्वीकृति समिति के गैर सरकारी सदस्य, डूंगरपुर नगरपरिषद के पूर्व सभापति तथा स्वच्छ भारत मिशन भाजपा के प्रदेश संयोजक के के गुप्ता ने अपने वियतनाम दौरेपर वहाँ के हुईं नगर में कार्बन उत्सर्जन विषय पर आयोजित कार्यशाला में भाग लिया।

गुप्ता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ग्लोबल वार्मिंग के वर्तमान दौर में पर्यावरण सुधार के सम्बन्ध में विश्व केसमक्ष रखें रोडमेप की विस्तृत चर्चा की तथा कार्बन उत्सर्जन को शून्य स्तर तक ले जाने की चुनौती औररोकथाम के सम्बन्ध में विश्व के वर्तमान परिदृश्य और भारत के दृष्टिकोण तथा कार्य योजना की जानकारी दी।साथ ही अपने कई उपयोगी सुझाव भी दिए ।

इससे पूर्व गुप्ता ने केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में आयोजित बैठकों एवंकार्यशालाओं में भी अपने सारगर्भित सुझाव रखें है और अब विदेश की धरती पर भी भारतीय दृष्टिकोण कोरखने में अपनी अहम भूमिका निभा रहें है।

स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण राष्ट्रीय योजना स्वीकृति समिति के गैर सरकारी सदस् बनने के पश्चात गुप्ता कायह पहला सरकारी विदेशी दौरा है। गुप्ता के साथ में बीकानेर निवासी रामजी अरोड़ा भी वियतनाम के दौरे परगए हैं। वहां पर राजस्थान की इन दोनों हस्तियों का आयोजकों और प्रवासियों द्वारा भव्य स्वागत एवं अभिनंदनभी किया गया।

पेरिस समझौता का पालन नही होने के दुष्परिणाम

वियतनाम के हुईं नगर में आयोजित कार्बन उत्सर्जन रोकथाम कार्यशाला को संबोधित करते हुए गुप्ता ने कहाकि साल 2015 में पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट के दौरान दुनिया के पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्बन उत्सर्जन केस्तर को शून्य तक लाने पर बहुआयामी सहमति बनी थी। इसके बावज़ूद दुनिया भर में मानवजनित गतिविधियोंके चलते लगातार बढ़ रहे तापमान का असर सामाजिक और आर्थिक असर देखा जाने वाला है।

उन्होंने बताया कि पिछले कुछ दशकों से मानवजनित गतिविधियों के चलते विश्व में कार्बन डाइऑक्साइड औरदूसरे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन प्रति वर्ष एक फ़ीसदी की दर से बढ़ा है।इससे ग्लोबल वार्मिंग का ख़तराहमारे पर्यावरण को लगातार नुक़सान पहुंचा रहा है।

उन्होंने बताया कि दुनिया के अस्तित्व को बचाने के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम से कम प्रति वर्ष 3-6 फ़ीसदीकी दर से कम करना होगा जिससे धरती के बढ़ते तापमान पर अंकुश लगाई जा सके।हालांकि पेरिस क्लाइमेटएग्रीमेंट के दौरान इसके सदस्य देशों ने धरती के तापमान को इस शताब्दी के अंत तक 2 डिग्री सेल्सियस कमकरने का संकल्प लिया था लेकिन इसे लागू होने के पांच साल के बाद भी इस दिशा में कोई खास प्रगति नहींहुई है।जिन संप्रभु देशों ने साल 2050 तक कार्बन उत्सर्जन के स्तर को शून्य करने की प्रतिबद्धता दोहराई थीलेकिन दुनिया में 25 फ़ीसदी कार्बन उत्सर्जन की वजह ऐसे ही मुल्क हैं और तो और ज़्यादातर देशों ने अभी तकपेरिस समझौते में बनी सहमति के मुताबिक़ अपने यहां पर्यावरण नीति तक को लागू नहीं किया है। ऐसीपरिस्थिति में जबकि वक्त तेजी से बीतता जा रहा है तो सवाल यह उठ रहा है कि संप्रभु राष्ट्र और कॉरपोरेट्सकिस प्रकार पर्यावरण संकट की समस्या से निपटेंगे?

कार्बन-टैक्स जैसे प्रगतिशील कदम जरुरी

उन्होंने कहा कि रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए “कार्बन-टैक्स” जैसे प्रगतिशील कदम के साथ ही पर्यावरण केलिए अनुकूल औद्योगिक समाधान को बढ़ावा देने की भी ज़रूरत है। इसके साथ ही यह भी ज़रूरी है कि ऐसेआर्थिक विकास को सुनिश्चित किया जाए जिसकी बदौलत सरकारें टैक्स ढांचे और सब्सिडी की पहल करमुल्क के अंदर लाखों गरीबों के जीवन में बदलाव ला सकें।

गुप्ता ने कहा कि टिकाऊ मैन्युफैक्चरिंग एक तरह का पर्यावरण अनुकूल व्यापार का अनुशासित जरिया है।इसमें नियंत्रित उत्सर्जन प्रोफाइल, जीवन चक्र आकलन, ज़ीरो वेस्ट टू लैंडफिल (जेडडब्ल्यूएल) और पानी कोलेकर सकारात्मक इस्तेमाल जैसी बुनियादी अवधारणाएं शामिल होती हैं, जिसका मक़सद व्यापारिकगतिविधियों के जरिए कार्बन उत्सर्जन को कम करना है।इसके साथ ही वाहनों के कार्बन उत्सर्जन में कमी लानेके लिए अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का सम्मान और वैकल्पिक ऊर्जा विकल्पों में निवेश करना इस लक्ष्य को पूराकरने में मददगार साबित हो सकता है।

उन्होंने कहा कि हम जितनी तेजी से कार्बन उत्सर्जन, पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट, पर्यावरण संरक्षण, ग्लोबलवार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय मामले आदि विषयों पर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं उसकी तुलना मेंवैश्विक पर्यावरण ज़्यादा तेजी से बदल रहा है जिसका प्रभाव इंसानी अस्तित्व पर पड़ने वाला है। अगर हमबेरोक-टोक बढ़ते हुए कार्बन उत्सर्जन के स्तर की इंसानी कीमत के बारे में सोचें तो कार्बन उत्सर्जन की सीमाको शून्य करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दुनिया की असहमति अपेक्षित नहीं है। इस वक्त हालात ऐसे हैंकि दुनिया को कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए एक निर्णायक और विकेंद्रित कार्रवाई की ज़रूरत है। इसलक्ष्य में शामिल सभी देशों के साथ ही इससे संबंधित अंतर्राष्ट्रीय निजी या सार्वजनिक संस्थाओं के लिए भीयह अनोखा मौका है जिससे कि वे अपने आने वाले समय को ज़्यादा से ज़्यादा हरा भरा बना सकें।

भारतीय दृष्टिकोण अनुकरणीय

गुप्ता ने बताया कि भारत उच्च आर्थिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ-साथ पिछले तीन दशकों मेंवन और वृक्षों के आवरण को बढ़ाने का एक मजबूत रिकॉर्ड बना रहा है। भारत में जंगल में आग लगने कीघटनाएं वैश्विक दर से काफी नीचे है, जबकि देश में वन और वृक्षों का आवरण 2016 में कार्बन डाईआक्साइडउत्सर्जन का 15 प्रतिशत अवशोषित करने वाला शुद्ध सिंक मौजूद है। भारत 2030 तक वन वृक्षों के आवरणद्वारा 2.5 से 3 बिलियन टन अतिरिक्त कार्बन अवशोषण की अपनी एनडीसी प्रतिबद्धता को पूरा करने के मार्गपर अग्रसर है।

गुप्ता ने बताया कि भारत का दृष्टिकोण चार प्रमुख विचारों पर आधारित है, जो इसकी दीर्घकालिक कार्बन कमउत्सर्जन विकास रणनीति को रेखांकित करते हैं। भारत ने ग्लोबल वार्मिंग में बहुत कम योगदान दिया है औरदुनिया की आबादी का 17 प्रतिशत हिस्सा मौजूद होने के बावजूद, संचयी वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन में इसकाऐतिहासिक योगदान बहुत कम रहा है। विकास के लिए भारत की ऊर्जा आवश्यकताएं महत्वपूर्ण हैं। भारत, विकास हेतु कम-कार्बन रणनीतियों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है और राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूपसक्रिय रूप से इनका अनुसरण कर रहा है। भारत को जलवायु सहनशील होने की जरूरत है।राष्ट्रीयपरिस्थितियों के आलोक में, समानता, साझा एवं अलग-अलग जिम्मेदारियों और सम्बन्धित क्षमताओं(सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांतों के साथ-साथ “जलवायु न्याय” और “स्थायी जीवन शैली” के दो विषय, जिन पर भारत ने पेरिस में जोर दिया था वे कम कार्बन, कम उत्सर्जन वाले भविष्य के केंद्र में हैं।

इसी तरह, एलटी-एलईडीएस को वैश्विक कार्बन बजट के एकसमान और उचित हिस्से के लिए भारत केअधिकार से जुड़े फ्रेमवर्क में तैयार किया गया है, जो “जलवायु न्याय” के लिए भारत के आह्वान का व्यावहारिककार्यान्वयन है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि पर्यावरण की रक्षा करते हुए भारत के तीव्र विकास औरआर्थिक परिवर्तन के दृष्टिकोण को साकार करने में कोई अवरोध न हो।एलटी-एलईडीएस को पर्यावरण केलिए जीवन शैली- लाइफ (एलआईएफई) की दृष्टि से भी जोड़ा गया है, जो विश्वव्यापी प्रतिमान में बदलावका आह्वान करता है, ताकि संसाधनों के नासमझ और विनाशकारी उपभोग के स्थान पर सचेत और सोच-विचारकर किए जाने वाले उपभोग को जीवन शैली में अपनाया जा सके।