रविवार दिल्ली नेटवर्क
नयी दिल्ली : गुरु और शिष्य का सम्बन्ध संसार में सबसे अधिक विलक्षण होता है। शिष्य का सर्वांगीण हित केवल एक सच्चा गुरु ही चाहता है। मात- पिता आदि अन्य सम्बन्धी जन इस लोक के हित तक सीमित रहते हैं परन्तु एक सच्चा गुरु अपने शिष्य का इहलोक और परलोक दोनों ही संवारता है। भगवत्पाद आदि शङ्कराचार्य द्वारा रचित विवेक चूढामणि नाम का ग्रन्थ गुरु द्वारा अपने शिष्य को बताए गये हित वाक्यों का ही संग्रह है।
उक्त उपदेश परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘१००८’ ने अपने २२वें चातुर्मास्य व्रत अनुष्ठान के अवसर पर प्रातःकालीन वेदान्त पाठ के अवसर पर कही।
उन्होंने विवेक, चूडा और, मणि शब्द की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि नित्य और अनित्य वस्तुओं को जान लेना विवेक कहलाता है। चूडा का अर्थ सिर का ऊपरी भाग जहाँ शिखा रहती है और मणि का अर्थ शीतलता प्रदान करने वाला ज्ञान है।
आगे कहा कि जिस प्रकार सनातन धर्म के सोलह संस्कारों में से एक चूडाकरण संस्कार होता है जिसमें जातक का मुण्डन करवाया जाता है उसी प्रकार यह विवेक चूडामणि भगवत्पाद शङ्कराचार्य द्वारा शिष्यों के लिए किया गया चूढाकरण ही है। जैसे चूडाकरण संस्कार के बाद जातक का कर्ण छेदन संस्कार होता है उसी प्रकार भगवत्पाद इस ग्रन्थ के माध्यम से अपने शिष्यों को वेदान्त ज्ञान का उपदेश प्रदान कर रहे हैं।
शङ्कराचार्य जी ने कहा कि प्रत्येक सनातनधर्मियों के सिर पर सदा चूडा अर्थात् शिखा रहती ही है। यह शिखारूपी मुकुट है जो सबकी शोभा बढाती है। राजा का मुकुट तो कभी न कभी उतर जाता है पर सनातनधर्म का यह मुकुट सदा सिर पर शोभायमान रहता है।
ज्ञातव्य है कि ज्योतिर्मठ के शङ्कराचार्य जी महाराज अपने चातुर्मास्य व्रत के लिए दो माह नरसिंह सेवा सदन पीतमपुरा दिल्ली में निवास करेंगे और यहाॅ की धर्मप्राण जनता की धार्मिक जिज्ञासाओं का समाधान करेंगे। शङ्कराचार्य जी
महाराज का दर्शन प्रातः ठीक 6.45 बजे और पूर्वाह्न ठीक 9.45 बजे होता है। सायं 5 से 7 बजे तक विविध धर्म विषय पर प्रवचन होता है। शङ्कराचार्य जी महाराज 5 समय की नियमित पूजा करते हैं। भगवत्पाद आदि शङ्कराचार्य की परम्परा से प्राप्त चन्द्रमौलीश्वर भगवान् की पूजा तथा ज्योतिर्मठ के 54 पूर्वाचार्यों के शिवलिंग के दर्शन यहाँ हो जाएंगे।