वातावरण की सुरक्षा और संरक्षण का दायित्व हम सभी का

पिंकी सिंघल

*पांच जून को प्रतिवर्ष विश्व भर के सारे*
*जन जन जागरूक होकर ये जश्न मनाते*
*वृक्षों को आरोपित करते सब मिलकर*
*हर्षोल्लास से पर्यावरण दिवस मनाते*

जून महीने की 5 तारीख को हर साल हम सभी विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं और पर्यावरण को संरक्षित और सुरक्षित रखने की शपथ भी लेते हैं। पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए एवं पर्यावरण को प्रदूषण और अन्य हानियों से बचाने के लिए जनमानस को जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।विश्व भर में असंख्य लोग इस दिन जगह-जगह वृक्षारोपण करते हैं और कसम खाते हैं कि वे पर्यावरण की हर प्रकार से,हर संभव तरीके से रक्षा करेंगे और इसे दूषित होने से बचाएंगे,धरती मां पर हो रहे अत्याचारों पर रोक लगाएंगे और दिन प्रतिदिन काटे जा रहे जंगलों और खेती योग्य भूमि पर भी प्रतिबंध लगाएंगे।

यह तो हम सभी जानते हैं कि साल दर साल वनों और जंगलों की संख्या में निरंतर गिरावट देखने को मिल रही है ।रिहायशी इलाकों में वृद्धि और औद्योगिकीकरण के चलते निरंतर जंगलों को काटा जा रहा है ,खेती योग्य भूमि पर बड़ी-बड़ी बहुमंजिला इमारतें खड़ी की जा रही हैं।अधिक से अधिक लाभ कमाने की चाह में मनुष्य अपनी सुध बुध खो बैठा है और अपने विवेक का प्रयोग ना करते हुए अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है।

पूरे विश्व में प्रतिदिन ना जाने कितने ही पेड़ों को काटा जाता है और उसकी लकड़ियों से नए-नए फर्नीचर का निर्माण किया जाता है जिन्हें बेच कर भारी मुनाफा कमाया जाता है। परंतु इसके पर्यावरण पर पड़ने वाले भयानक प्रभावों से वह अभी भी जान बावला बन कर रहना चाहता है।

*दूषित पानी अंधाधुंध वृक्षों की कटाई*
*मिल पर्यावरण को खूब हानि पहुंचाते*
*पर्यावरण जब सहता सब ये रो रोकर*
*तब अकाल,भूकंप और सुनामी हैं आते*

निजी स्वार्थों की पूर्ति करने हेतु मनुष्य लालची बन गया है और इस लालच में वह इतना अंधा हो गया है कि यह भी नहीं समझ पा रहा कि वर्तमान में विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करने के चक्कर में वह अपने आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए मुसीबत खड़ी कर रहा है। आगे आने वाली पीढ़ियों को हरियाली देखने को नसीब नहीं होगी यह बात आज का मनुष्य समझ ही नहीं पा रहा है। एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में मनुष्य इस कदर बावरा हो चुका है कि उसे सही गलत का भान ही नहीं। कम समय में अधिक तरक्की करने के जुनून में मनुष्य पगला गया है।

इसमें तनिक संदेह नहीं कि इस बार भी पर्यावरण दिवस के पावन पर्व पर हम सभी जगह जगह सुंदर-सुंदर वृक्षों का रोपण करेंगे ,नए-नए पौधों को आरोपित करेंगे ,अपने आसपास के वातावरण को शुद्ध बनाने के मकसद से हम चारों तरफ हरियाली फैला देंगे जो कि बहुत सराहनीय भी है। वातावरण की सुरक्षा और संरक्षण का दायित्व हम सभी का है ,जिसे हमें सामूहिक रूप से निभाना भी चाहिए ।पृथ्वी हमारी माता है अपनी माता को स्वस्थ रखना हम सब का कर्तव्य है ।अपने प्लेनेट, अपने ग्रह को खतरों से दूर रखना और इसे दूषित होने से बचाना भी हमारा ही दायित्व बनता है।

मां वसुंधरा के हम सभी पर ना जाने कितने ही अनगिनत उपकार हैं,जिन्हें हम ताउम्र नहीं चुका सकते। किंतु इसे खतरों से बचाने का और इसे सुरक्षित व संरक्षित रखने का प्रयास तो हम कर ही सकते हैं।

*जलवायु,वृक्ष,स्वच्छता और प्रदूषण*
*सब हैं मिलकर पर्यावरण को बनाते*
*वस्त्र,कागज़,फल,सब्जी,रबड़,दवाई*
*सब हम पर्यावरण से ही तो हैं पाते*

जैसा कि मैंने अभी ऊपर भी लिखा कि पर्यावरण दिवस के अवसर पर हम सभी अपने आस पास वृक्षारोपण कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे। किंतु क्या यह सच नहीं कि वृक्षारोपण करने के कुछ दिन पश्चात ही हम उन अचल वृक्षों और पौधों के बारे में भूल जाएंगे। उनकी देखभाल तो करना दूर की बात, हम यह तक भूल जायेंगे कि हमने कहां-कहां पौधे लगाए थे ,उन्हें पानी देने की जिम्मेदारी से हम बचेंगे और आधी तूफान धूप गर्मी बरसात में वे पौधे और वृक्ष मुरझा कर गिर जायेंगे और बहुत जल्द मिट्टी में मिल जायेंगे ।यह स्थिति बेहद दुखद है ।हमें यह समझने की आवश्यकता है कि जिन पौधों को हमने आरोपित किया है ,उन्हें बड़ा होने तक देखभाल करने की जिम्मेदारी केवल और केवल हमारी है। प्रत्येक एक, आरोपित करें एक कि पद्धति को अपनाते हुए हमें यह प्रण लेना चाहिए कि हमने जिस भी एक पौधे को आरोपित किया है उसे हमें अपने बच्चे की भांति पालना होगा ,उस की देखभाल करनी होगी और उसे बड़ा करना होगा, तभी हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं ।

यदि हम अपनी जिम्मेदारियों से इसी प्रकार मुंह मोड़ते रहें,प्रकृति को अनदेखा करते रहें, तो ,वह दिन दूर नहीं जब हमें सांस लेने के लिए प्रति पल ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर घूमना होगा और हम उधार की सांसो पर अपना जीवन गुजारेंगे ।

*केवल एक धरा है देखो हम सबकी*
*क्यों हम हैं सुंदरता इसकी घटाते*
*इसके सौंदर्य को नित नया बनाकर*
*अपना सबसे बड़ा फर्ज़ क्यों हम नहीं निभाते*

ऐसा करके अपने आने वाली पीढ़ी के लिए हम केवल और केवल बंजर धरा ही विरासत में छोड़कर जाएंगे। जरा सोचिए दोस्तों, यदि हमारे पूर्वजों ने भी हमारे लिए कुछ अच्छा ना सोचा होता और इस पर्यावरण और प्रकृति को संरक्षित ना रखा होता तो आज हमारी क्या दशा होती ? विचारणीय विषय है।