सच्चे वीर सपूत थे,
महाराणा प्रताप।
लेकर चेतक को बढे,
दिए मुग़ल सब नाप॥
हल्दी घाटी में लड़े,
बन दुश्मन पर काल।
मुग़ल देखते रह गए,
एक चली ना चाल॥
राणा जी की शूरता,
देख शत्रु थे चूर।
कभी गुलामी गैर की,
करी नहीं मंजूर॥
हाथ परी भाला लिए,
आये बन कर दूत।
जिए गर्व से थे सदा,
मेवाड़ी सच पूत॥
जब तक धरती ये रहे,
और सूर्य का ताप।
याद रहेगा शूरमा,
महाराणा प्रताप॥
-प्रियंका सौरभ
काव्य संग्रह ‘हम से हिदुस्तान’ से साभार।