
अशोक भाटिया
हाल ही में कांग्रेस के राज वाले कर्नाटक से आई एक तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब शेयर हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज बेंगलुरु मेट्रो की येलो लाइन का उद्घाटन करने गए थे. वहां मंच पर उनके बगल में डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार बैठे थे. कई बार ऐसा मौका आया जब डीके शिवकुमार पीएम मोदी के कानों में कुछ खुसुर-फुसुर करते देखे गए. वह बेंगलुरु के इंचार्ज मिनिस्टर भी हैं तो हो सकता है कि शहर का मास्टर प्लान दिखा या बता रहे हों. लेकिन सोशल मीडिया पर यह तस्वीर कुछ अलग एंगल से शेयर की जाने लगी.
खैर, मुस्कुराते हुए डीके शिवकुमार ने आज मंच पर पीएम को गणेश भगवान की मूर्ति दी. यह औपचारिक प्रोटोकॉल होता है लेकिन आम लोगों को दोनों नेताओं की गर्मजोशी कुछ अलग ही दिख रही है. दोनों के सिर मिलाकर बतियाने की तस्वीर के साथ कई लोगों ने लिखा है कि यह तस्वीर कांग्रेसियों को खूब चुभ रही होगी. एक यूजर ने तो लिख दिया- New CM Loading. ये सब डीके शिवकुमार के इस पोस्ट के नीचे लिखा गया.
डीके ने पीएम के साथ का यह वीडियो शेयर करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा करते हुए गर्व महसूस हुआ. हमने बेंगलुरु मेट्रो के तीसरे चरण की आधारशिला रखी. यह 15,610 करोड़ से अधिक की एक परिवर्तनकारी परियोजना है. बेंगलुरु के प्रभारी मंत्री के रूप में, मेरी प्रतिबद्धता यह सुनिश्चित करना है कि हमारे शहर को वह बुनियादी ढांचा मिले जिसका वह हकदार है. मैंने एक मेमोरेंडम पेश किया और प्रधानमंत्री से उन प्रमुख परियोजनाओं के लिए फंड और अनुमोदन का आग्रह किया जो बेंगलुरु को भविष्य का भारत बनाने के लिए ताकत प्रदान करेंगी.
कुछ लोगों ने यह भी लिखना शुरू कर दिया कि आपको सम्मान महसूस हो रहा है लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की तरफ जरा देख लीजिए. आप कांग्रेस छोड़ दीजिए. प्रतीक ने लिखा, ‘डीके शिवकुमार इंतजार कर रहे हैं. वह सही समय जानते हैं.’ लोगों का मत है कि कुछ ऐसा ही एमपी में सिंधिया और असम में हिमंता बिस्वा सरमा के साथ भी हुआ था. ये दोनों कांग्रेस के दिग्गज नेता थे लेकिन बाद में भाजपा में आ गए. राजस्थान की कड़वाहट भी किसी से छिपी नहीं है. खैर, ये सब अभी चर्चाएं ही हैं.
इसके पहले कर्नाटक कांग्रेस विधायक एचए इकबाल हुसैन ने 29 जून, 2025 को दावा किया था कि उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को अगले दो से तीन महीनों के भीतर राज्य का मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिल सकता है।श्री शिवकुमार के करीबी माने जाने वाले विधायक की यह टिप्पणी इस वर्ष के अंत में कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की नई अटकलों के बीच आई है।सहकारिता मंत्री के.एन. राजन्ना के हालिया बयान के बाद यह चर्चा फिर से शुरू हो गई है, जिसमें उन्होंने सितंबर के बाद राज्य में “क्रांतिकारी” राजनीतिक घटनाक्रम का संकेत दिया है।”आप सभी जानते हैं कि इस सरकार के सत्ता में आने से पहले हमारी [कांग्रेस] ताकत क्या थी। हर कोई जानता है कि इस जीत को हासिल करने के लिए किसने संघर्ष, पसीना, मेहनत और लगन लगाई। उनकी [शिवकुमार की] रणनीति और कार्यक्रम अब इतिहास बन चुके हैं,” श्री हुसैन ने रामनगर में पत्रकारों से कहा, जब उनसे पूछा गया कि क्या श्री शिवकुमार के मुख्यमंत्री बनने की संभावना थी।उन्होंने कहा था कि मैं अटकलों पर विश्वास नहीं करता। हमें पूरा विश्वास है कि आलाकमान स्थिति से अवगत है और उन्हें अवसर देने के लिए सही समय पर उचित निर्णय लेगा।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या श्री शिवकुमार, जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं, इस साल मुख्यमंत्री बनेंगे, तो हुसैन ने जवाब दिया, “हाँ, मैं कह रहा हूँ। कुछ नेता सितंबर के बाद क्रांतिकारी राजनीतिक घटनाक्रमों के लिए जिस तारीख का संकेत दे रहे हैं—वे उसी की बात कर रहे हैं। दो-तीन महीनों में फैसला हो जाएगा।” आगे ज़ोर देने पर उन्होंने दोहराया, “मैं यही कह रहा हूँ। मैं गोल-मोल बातें नहीं कर रहा; मैं सीधे बोल रहा हूँ।” जब उनसे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बेटे और कांग्रेस एमएलसी यतींद्र सिद्धारमैया द्वारा मुख्यमंत्री परिवर्तन को महज़ अटकलें बताकर खारिज करने के बारे में पूछा गया, तो श्री हुसैन ने कहा कि कांग्रेस लाकमान ने 2023 के विधानसभा चुनावों के बाद सरकार बनाने का फैसला किया है।
उन्होंने यह भी कहा कि उस समय हम सब दिल्ली में एक साथ थे। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने फैसला लिया। यह बात सभी जानते हैं। अगला फैसला भी वही लेंगे – हमें इंतज़ार करना होगा और देखना होगा।सत्तारूढ़ कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें पिछले कुछ समय से चल रही थीं, जो श्री सिद्धारमैया और श्री शिवकुमार के बीच कथित सत्ता-साझेदारी समझौते से जुड़ी थीं। पार्टी आलाकमान के कड़े निर्देशों के बाद ऐसी अटकलें शांत हो गईं।
दरअसल मई 2023 में कांग्रेस के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद, सीएम पद के लिए श्री सिद्धारमैया और श्री शिवकुमार के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा थी।कांग्रेस शिवकुमार को डिप्टी सीएम पद स्वीकार करने के लिए मनाने में कामयाब रही।उस समय की रिपोर्टों ने एक “घूर्णी सीएम फॉर्मूला” का सुझाव दिया, जिसमें श्री शिवकुमार ढाई साल बाद पदभार संभालने के लिए तैयार थे, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि कभी नहीं हुई थी।
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार से भी जब ने भी अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं के बारे में पूछे गए सवालों का सधा हुआ जवाब दिया, तथा अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में अटकलों की न तो पुष्टि की और न ही खंडन किया।शिवकुमार ने पत्रकारों से कहा, “भले ही कोशिशें नाकाम हों, लेकिन प्रार्थनाएँ कभी बेकार नहीं जातीं। मैंने जो चाहा है, उसके लिए प्रार्थना की है। यह राजनीतिक चर्चा का स्थान नहीं है, राज्य का भला होने दीजिए।” उन्होंने अपनी मंशा के बारे में पूछे गए सवालों का सीधा जवाब देने से सावधानीपूर्वक परहेज किया।उनकी टिप्पणियों ने वर्तमान अनिश्चितता को और बढ़ा दिया है, क्योंकि वे महत्वाकांक्षा और निष्ठा के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।
शिवकुमार की यह टिप्पणी राजनीतिक हलकों में उनके मुख्यमंत्री बनने की लंबे समय से चली आ रही महत्वाकांक्षा के बारे में चल रही चर्चाओं के बीच आई है, खासकर तब जब कर्नाटक कांग्रेस की आंतरिक गतिशीलता लगातार जांच के घेरे में है।शिवकुमार ने पार्टी नेतृत्व के प्रति अपनी निष्ठा दोहराते हुए कहा, “मल्लिकार्जुन खड़गे हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उन्होंने हमें मार्गदर्शन दिया है और अपना संदेश दिया है। हम उनकी सलाह मानेंगे और साथ मिलकर काम करेंगे।” यह टिप्पणी शिवकुमार के उस लगातार सार्वजनिक रुख को दर्शाती है कि आलाकमान जो भी फैसला लेगा, वह उसका पालन करेंगे।
30 जून को, जब कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा के बारे में पूछा गया, तो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस संभावना से इनकार नहीं किया। उन्होंने कहा, “यह पार्टी आलाकमान के हाथ में है। कोई नहीं कह सकता कि आलाकमान में क्या चल रहा है। यह आलाकमान पर छोड़ दिया गया है और उन्हें आगे की कार्रवाई करने का अधिकार है, लेकिन किसी को भी बेवजह समस्याएँ पैदा नहीं करनी चाहिए।”पिछले हफ़्ते शिवकुमार के बयानों में वफ़ादारी दिखाने और लोगों को नेतृत्व में अपनी रुचि की याद दिलाने के बीच बदलाव आया है। 1 जुलाई को उन्होंने इंडिया टुडे से कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री बनने की कोई आकांक्षा नहीं है और उनका ध्यान 2028 के विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस को मज़बूत करने पर है।
उन्होंने कहा, “अनुशासन कांग्रेस की सर्वोच्च प्राथमिकता है।” जब उनसे विधायकों द्वारा सार्वजनिक रूप से उन्हें शीर्ष पद के लिए समर्थन दिए जाने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “मुझे किसी का समर्थन नहीं चाहिए। मैं अभी मुख्यमंत्री पद का इच्छुक नहीं हूँ। मेरी आकांक्षा 2028 में कांग्रेस को सत्ता में देखना है। यही मेरी प्राथमिकता है।”
हालांकि, एक दिन बाद 2 जुलाई को, जब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि वह पूरे पाँच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे, तो शिवकुमार ने कहा, “मेरे पास जो विकल्प है, मुझे उनके साथ खड़ा होना होगा, उनका समर्थन करना होगा। आलाकमान जो भी कहेगा, मुझे वही करना होगा।”हालांकि कांग्रेस के राज्य प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने स्पष्ट किया है कि नेतृत्व में कोई बदलाव नहीं होने वाला है , लेकिन शिवकुमार की जानबूझकर की गई अस्पष्टता संयम की रणनीति का संकेत देती है, जो टकराव से बचने के साथ-साथ निरंतर इरादे का संकेत देती रहती है।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार