दिल्ली में फिल्म फेस्टिवल की वापसी के मायने

What does it mean for the film festival to return to Delhi?

विवेक शुक्ला

एक दौर था जब देश की राजधानी दिल्ली में लगातार फिल्म फेस्टिवल आयोजित हुआ करते थे। उनका केन्द्र तो विज्ञान भवन भी होता था और फेस्टिवल के दौरान दिल्ली के कई सिनेमाघरों में भी देसी-विदेशी फिल्में दिखाई जाती थीं। उनमें फिल्मी कलाकार, देश भर के दर्शक, फिल्मों के समीक्षक वगैरह बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। पर यह सिलसिला कुछ सालों से बंद हो गया था। फिल्म फेस्टिवल मुंबई और गोवा में होने लगे। इस कारण फिल्मों के शैदाई निराश भी थे। इस निराशा को विगत 8 से 10 अगस्त को राजधानी के एनसीयूआई ऑडिटोरियम में आयोजित सेलिब्रेटिंग इंडिया फिल्म फेस्टिवल (सीआईएफएफ 2025) ने दूर किया। इसने देश की राजधानी को सिनेमाई केंद्र के रूप में स्थापित किया, बल्कि भारतीय सिनेमा की विविधता, संस्कृति और सामाजिक संदेशों को पूरे देश में फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस तीन दिवसीय उत्सव में बॉलीवुड की कई प्रमुख हस्तियों, फिल्म निर्माताओं, और दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की उपस्थिति ने इसे और भी खास बना दिया। यह आयोजन भारत की 79वीं स्वतंत्रता दिवस समारोह के साथ संनादति था, जिसने इसे एक राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बनाया।

दिल्ली का सांस्कृतिक पुनर्जागरण
दिल्ली लंबे समय से सिनेमा के क्षेत्र में मुंबई और गोवा जैसे शहरों की छाया में रही है। सीआईएफएफ 2025 ने इस धारणा को तोड़ने का काम किया। सीआईएफएफ 2025 का आयोजन ग्राफिसैड्स, फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई), फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड (एफसीजी), और इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर द आर्ट्स (आईजीएनसीए) के सहयोग से किया गया। इस सहयोग ने न केवल आयोजन की गुणवत्ता को बढ़ाया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि भारत का सांस्कृतिक परिदृश्य विभिन्न संस्थानों और संगठनों के एकजुट प्रयासों से और समृद्ध हो सकता है। यह एकता और सहयोग का संदेश देश के अन्य शहरों के लिए प्रेरणादायक रहा, जो अपने स्थानीय सांस्कृतिक आयोजनों को बढ़ावा देना चाहते हैं।

सिनेमाई विविधता का उत्सव
बेशक, सीआईएफएफ 2025 ने भारतीय सिनेमा की व्यापकता और विविधता को प्रदर्शित किया। फेस्टिवल में 50 से अधिक फिल्मों का प्रदर्शन किया गया, जिसमें क्लासिक फिल्में जैसे उमराव जान , क्रांति, और समकालीन फिल्में जैसे मधुर भंडारकर की इंडिया लॉकडाउन शामिल थीं। इसके अलावा क्षेत्रीय सिनेमा जैसे वेंकी और सुंदरपुर कैओस, साथ ही लघु फिल्में जैसे बेहरूपिया और विरुंधु ने दर्शकों को भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता का अनुभव कराया। यह विविधता देश भर में यह संदेश लेकर गई कि भारतीय सिनेमा केवल बॉलीवुड तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें क्षेत्रीय और स्वतंत्र सिनेमा की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। ग्राफ़िसड्स लिमिटेड के चेयरमैन श्री मुकेश गुप्ता कहते हैं कि पिछले साल भारत सरकार के लिए मुंबई इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल और दिल्ली में नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड्स का सफल आयोजन करने के बाद, उनके मन में विचार आया कि — “दिल्ली में भी एक ऐसा फ़िल्म फेस्टिवल होना चाहिए जो केवल ग्लैमर नहीं, बल्कि पर्यावरण, वाइल्डलाइफ़ और संस्कृति का भी उत्सव बने।” इसी सोच से जन्म हुआ हाल में संपन्न फिल्म फेस्टिवल का। इस फिल्म फेस्टिवल के पूरे देश से 666 प्रविष्टियां मिलीं, जिनमें से चुनी गई 30 फ़िल्में तीन दिनों तक प्रदर्शित की गईं और दर्शकों ने इन्हें खूब सराहा। तीन फ़िल्मों को नक़द पुरस्कार भी दिए गए।

फेस्टिवल में पर्यावरण, वन्यजीव, पर्यटन, विरासत, कला, संस्कृति और आध्यात्मिकता जैसे विषयों पर आधारित फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। यह दृष्टिकोण न केवल सिनेमा के मनोरंजन पहलू को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सिनेमा सामाजिक जागरूकता और सांस्कृतिक संरक्षण का एक शक्तिशाली माध्यम हो सकता है। उदाहरण के लिए, रिकी केज की गांधी – मंत्र ऑफ कम्पैशन और भारतबाला की डॉक्यूमेंट्री अहम भारतम ने दर्शकों को सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रेरित किया।

बॉलीवुड हस्तियों की भागीदारी और प्रेरणा
फेस्टिवल के दौरान राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक मधुर भंडारकर, अभिनेत्री हृषिता भट्ट, और निर्देशक आरएस प्रसन्ना जैसे बॉलीवुड हस्तियांभी मौजूद रहीं। इन हस्तियों की उपस्थिति ने न केवल आयोजन को ग्लैमर प्रदान किया, बल्कि यह भी संदेश दिया कि सिनेमा उद्योग के दिग्गज उभरते फिल्म निर्माताओं और दर्शकों के साथ जुड़ने के लिए तैयार हैं।

दिल्ली सरकार का दृष्टिकोण और नीतिगत संदेश
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की उपस्थिति और उनके भाषण ने आयोजन को एक नीतिगत आयाम प्रदान किया। उन्होंने एक नई राज्य फिल्म नीति की घोषणा की, जिसका उद्देश्य दिल्ली को फिल्म निर्माण और पर्यटन का केंद्र बनाना है। उन्होंने कहा, “हम दिल्ली में फिल्म शूटिंग्स, फिल्मफेयर अवॉर्ड्स और और अधिक फिल्म फेस्टिवल्स की मेजबानी करना चाहते हैं।” यह घोषणा देश भर में यह संदेश लेकर गई कि दिल्ली सरकार सिनेमा को न केवल एक कला के रूप में, बल्कि आर्थिक और पर्यटन विकास के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में देख रही है।दिल्ली के कला, संस्कृति और भाषा मंत्री कपिल मिश्रा ने भी फेस्टिवल को “भारत की विशाल सांस्कृतिक और भाषाई विरासत का जीवंत श्रद्धांजलि” बताया और अगले संस्करण के लिए दिल्ली सरकार के साथ साझेदारी का प्रस्ताव रखा। यह बयान यह दर्शाता है कि सरकार और सांस्कृतिक संगठन मिलकर सिनेमा के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा दे सकते हैं।

सीआईएफएफ 2025 ने यह संदेश दिया कि सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज को शिक्षित करने, प्रेरित करने और एकजुट करने का एक शक्तिशाली माध्यम है।

इसके अलावा, फेस्टिवल ने दिल्ली को एक वैश्विक सांस्कृतिक मंच के रूप में प्रस्तुत किया। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा, “जो व्यक्ति दिल्ली आए, उसे ऐसा लगे कि उसे दिल्ली देखनी ही है।” यह बयान दिल्ली को एक सांस्कृतिक और पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करने की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है, जो देश के अन्य शहरों को भी अपने स्थानीय सांस्कृतिक आयोजनों को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित कर सकता है।

सेलिब्रेटिंग इंडिया फिल्म फेस्टिवल 2025 ने दिल्ली को भारतीय सिनेमा के नक्शे पर एक नया स्थान दिलाया। यह आयोजन न केवल सिनेमाई उत्सव था, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक संदेशवाहक भी बना। इसने देश भर में यह संदेश दिया कि सिनेमा एकता, विविधता, और सामाजिक जागरूकता का प्रतीक है। दिल्ली सरकार की नीतिगत घोषणाओं और बॉलीवुड हस्तियों की भागीदारी ने इसे एक राष्ट्रीय मंच प्रदान किया, जिसने यह साबित किया कि सांस्कृतिक आयोजन स्थानीय स्तर पर गहरे प्रभाव डाल सकते हैं और राष्ट्रीय स्तर पर प्रेरणा दे सकते हैं। सीआईएफएफ 2025 ने यह स्पष्ट किया कि दिल्ली अब भारतीय सिनेमा का एक नया केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर है, और यह संदेश देश के कोने-कोने तक पहुंचा है।