नाम में क्या रखा है?

What is in a name?

विनोद कुमार विक्की

सेक्शपीयर ने तो सहज भाव से कह दिया—“नाम में क्या रखा है?” पर आधुनिक लोकतंत्र में नाम को ही विकास की जननी माना जा रहा है. शहर बदले, स्थान बदले, पथ बदले, भवन बदले. सच पूछिए तो नागरिकों की तकदीर छोड़कर सब बदल गया. जब राजपथ, कर्तव्य पथ बन सकता है, पीएमओ सेवा तीर्थ, और राजभवन लोकभवन, तो ऐसे स्वर्णिम परिवर्तन काल में जंगल भला कैसे पीछे रहता?
इसी ऐतिहासिक सोच से प्रेरित होकर वनराज ने लॉ एंड ऑर्डर की आपात बैठक बुलाई. सिंहासन पर गंभीरता की विजय तिलक लगाए बोले—
“सुना है, त्रेता युग में राम राज्य था। आज भी नाम बदलने को ही विकास का सूत्र माना जा रहा है, इसलिए हम भी आदर्श वन बनाएंगे. आज से हमारे जंगल में कोई हिंसक या मांसभक्षी जीव नहीं रहेगा.”

पूरा जंगल सनसना उठा. सेनापति भालू ने डरते-डरते पूछा—“महाराज, तो क्या हम सबको दूसरे जंगल पलायन करना पड़ेगा?”

वनराज की मुस्कान दार्शनिक हो उठी—
“पलायन नहीं, परिवर्तन. आज से सभी हिंसक जीवों के नाम बदल दिए जाएंगे. बाघ, शेर, चीता—अब हिरण कहलाएँगे। भेड़िये, गीदड़, लोमड़ी—बकरी होंगे. हाथी—खरगोश, भालू—गाय, और सर्प—केंचुआ कहलाएगा। बाकी शाकाहारी जीव अपने मूल नाम से ही जानें जाएंगे.”

गजराज ने संशय में पूछा— “इससे क्या लाभ होगा प्रभु?”
वनराज विजयी भाव से बोले—
“सरल! जब नाम शाकाहारी होंगे, तो वातावरण स्वतः अहिंसक माना जाएगा. रिपोर्टें स्वच्छ, छवि उज्ज्वल, और आलोचक निष्प्रभावी.”

नाम परिवर्तन के पश्चात कुछ दिनों तक जंगल आत्ममुग्ध होकर ‘आदर्श वन’ कहलाता रहा. फिर एक-एक कर खबरें आने लगीं—
“एक हिरण ने दूसरे हिरण को मार डाला. बकरी ने भेड़ को घायल कर दिया। केंचुए ने मेढ़क को निगल लिया.”
चिंतित गृह मंत्री खरगोश (जो मूलतः हाथी था), सूचनाओं के साथ हांफते हुए वनराज के पास पहुँचा.
वनराज ने सहजता से कहा—
“चिंता कैसी? जहाँ बर्तन, वहाँ घन-घन. भाई-भाई में झगड़े तो सभ्य समाज में भी होते हैं.और सबसे बड़ी बात—अब कोई यह नहीं कह सकता कि ‘बाघ ने हिरण को मारा’, क्योंकि हमारे जंगल में बाघ है ही कहाँ? यहाँ तो सब हिरण हैं!”

वनराज ने संतोष की गहरी साँस ली.आखिरकार, आँकड़ों के देश में सत्य का क्या काम? नाम बदलते ही जंगल विकसित, अहिंसक और आदर्श घोषित कर दिया गया.