गोपेन्द्र नाथ भट्ट
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की रविवार को जयपुर में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे से हुई मुलाकात की सियासी गलियारों में बहुत चर्चा हो रही है। इसके साथ ही इसे लेकर राजनीतिक हलकों में कई कयास भी लगाये जाने लगे हैं। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा रविवार को जयपुर में पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के जयपुर स्थित 13, सिविल लाइन्स स्थित राजकीय आवास पर उनसे मिलने खुद पहुंचे थे ।इसके बाद प्रदेश के सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया और इस मुलाकात के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।
प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद वैसे तो मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा प्रायः जयपुर राजभवन में राज्यपाल कलराज मिश्र ,पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित पक्ष प्रतिपक्ष के अन्य नेताओं से शिष्टाचार भेंट कर अपने स्तर पर हर संभव प्रयासों में जुटे हुए है । वे सियासी राजनीति में पहली बार के विधायक और मुख्य मन्त्री है हालाँकि उन्हें संगठन में कई वर्षों तक काम करने का तजुर्बा हैं। फिर आर एस एस पृष्ठभूमि के होने के कारण वे राजनीतिक मुलाक़ातों के महत्व को समझते है। इस क्रम में वे इससे पहले भी वसुन्धरा राजे से भेंट करने उनके आवास पर जा चुकें है लेकिन वर्तमान में राज्य में विधानसभा का सत्र चलने और प्रदेश के सबसे वरिष्ठ मंत्री डॉ.किरोड़ी लाल मीणा के इस्तीफा देने की घोषणा करने, आगामी दस जुलाई को प्रदेश का पूर्व बजट आने और आगामी 13 जुलाई को प्रदेश भाजपा कार्य समिति की जयपुर में प्रस्तावित बैठक आदि के मध्य उनका वसुन्धरा राजे से मुलाक़ात करने के पीछें राजनीतिक पर्यवेक्षकों को कुछ खास मकसद दिखाई दे रहा है।
राजनीतिक क्षेत्रों में यह भी चर्चा है कि 10 जुलाई को राजस्थान विधानसभा में भजनलाल सरकार अपना पहला पूर्ण बजट पेश करने वाली है।ऐसे में माना जा रहा है कि मुख्यमन्त्री भजनलाल शर्मा ने वसुंधरा राजे से मुलाकात कर बजट पर चर्चा कर उनके सुझाव लेने का प्रयास भी किया है। वसुंधरा राजे राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री ही नहीं रही हैं बल्कि दोनों बार उन्होंने प्रदेश के वित्त मन्त्री की भूमिका का निर्वहन करते हुए राज्य के बजट भी पेश किए हैं।इस वजह से माना जा रहा है कि शायद भजनलाल शर्मा खुद उनसे बजट पर सलाह लेने पहुंचे हैं। ख़ास कर पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना ईआरसीपी जिसका मध्य प्रदेश के साथ किए गये नये समझौते के बाद परिवर्तित नाम पीकेसी-ईआरसीपी कर दिया गया है ,इस महत्वाकांक्षी परियोजना की शुरुआत वसुन्धरा राजे ने ही की थी और इसे राष्ट्रीय महत्व की परियोजना घोषणा की माँग भी उन्हीं की थी जिसे तत्कालीन जल संसाधन मन्त्री नितिन गड़करी का पूरा समर्थन भी प्राप्त था लेकिन कतिपय कारणों से यह परियोजना ज़मीनी हक़ीक़त नहीं बन पाई। बाद में कांग्रेस की अशोक गहलोत ने भी राज्य के हितों को देखते हुए इसे आगे बढ़ाया और अपना राजनीतिक एजेण्डा भी बनाया।कहा गया कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सार्वजनिक मंचों पर आश्वासन देने और राजस्थान के ही गजेन्द्र सिंह शेखावत के जल शक्ति मन्त्री होने के बावजूद राजस्थान को इस परियोजना का लाभ नहीं मिल पाया। गजेन्द्र सिंह शेखावत ने भी तत्कालीन गहलोत सरकार पर कई गंभीर आरोप लगायें। अब भाजपा की भजन लाल सरकार ने भी इसकी अहमियत समझाते हुए इस महत्वाकांक्षी परियोजना को अपनी प्राथमिकता सूची में आगे रखा है। वसुंधरा राजे से मुख्यमन्त्री शर्मा की मुलाकात को इस दृष्टि से भी देखा जा रहा है कि उनके वृहत अनुभवों का प्रदेश के हित में कैसे उपयोग किया जायें?
लेकिन राजनीतिक जानकार इसे भी अर्द्धसत्य मान रहें है और कह रहें है कि ऐसा होता तो प्रदेश की उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी जो कि वित्त मंत्री भी हैं,उनके साथ होनी चाहिये थी।
राजस्थान की सियासत में वसुंधरा राजे की काफी अहमियत है। पूर्व उप राष्ट्रपति और भाजपा के दिग्गज नेता भैरों सिंह शेखावत ने अपने राजनीतिक विरोधियों को शिकस्त देने के लिये वसुंधरा राजे को उनकी इच्छा के विरुद्ध राष्ट्रीय राजनीति से निकाल कर जब प्रदेश की राजनीति में लाये थे तो किसी को नहीं मालूम नहीं था कि राजे के नेतृत्व में भाजपा को प्रदेश में कई ऐतिहासिक सफलताएँ और स्पष्ट बहुमत मिलेगा, लेकिन वसुंधरा राजे ने ऐसा कर दिखाया और वे प्रदेश में एक लोकप्रिय नेता के रूप में उभरी। विशेष कर महिलाओं में उन्होंने अपार लोकप्रियता हासिल की। लेकिन इस बार विधान सभा चुनावों में उनकी घोर उपेक्षा की गई और विधान सभा चुनाव में मिली जीत के बाद भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें मुख्यमन्त्री भी नहीं बनाया। यहाँ तक मुख्यमंत्री के चुनाव के लिए केन्द्रीय रक्षा मन्त्री राजनाथ सिंह को केन्द्रीय पर्यवेक्षक बना कर जयपुर भेजा गया और विधायक दल की बैठक में शीर्ष नेतृत्व की ओर से भेजी गई भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाने की पर्ची भी वसुंधरा राजे के हाथों से ही निकलवाई गई। इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी उनकी घोर अनदेखी की गई जिससे उन्हें गहरा आघात लगा और इसका परिणाम यह रहा कि हाल ही में लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे ने खुद को अपने बेटे दुष्यन्त सिंह की सीट झालावाड़ तक ही सीमित रखा। जिस पर काफी सवाल भी खड़े हुए। लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे का सहयोग नहीं लिये जाने और उनकी भी झालावाड़ बारां लोकसभा सीट के अलावा कहीं अधिक सक्रियता नहीं देखें जाने का परिणाम यह रहा कि राजस्थान में भाजपा प्रदेश की सभी 25 में से 25 सीटों पर अपनी जीत की हैट्रिक के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाई जबकि वसुन्धरा के रहते 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में सभी 25 सीटों को जीतने का करिश्मा हुआ था। यदि इस बार भी ऐसा होता और उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा आदि में भी भाजपा की अपेक्षा के अनुरूप चुनाव परिणाम आते तो भाजपा को लोकसभा आम चुनाव में अपने बलबूते पर केन्द्र में बहुमत मिल जाता तथा प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को अपने एनडीए सहयोगियों की मदद से गठबन्धन की सरकार नहीं बनानी पड़ती।
राजस्थान में वसुन्धरा राजे के विकल्प खोजने के लिए शीर्ष नेतृत्व ने कई प्रयोग किए लेकिन कोई प्रयोग सफल नहीं हो पाया। प्रदेश की राजनीति में राजे विरोधी माने जाने वाले और संघनिष्ठ पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष एवं हरियाणा के प्रभारी डॉ सतीश पूनिया ने वसुंधरा राजे की अनदेखी पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मुझे देखी और अनदेखी की परिभाषा क्या है वो मुझे नहीं पता लेकिन उनको लेकर यह जरूर कहना चाहूंगा कि पार्टी ने उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्र में मंत्री पद की जिम्मेदारी दे थी और प्रदेश अध्यक्ष सहित दो बार प्रदेश का मुख्यमंत्री भी बनाया वो कई बार सांसद और विधानसभा की भी कई बार सदस्य रही हैं। वर्तमान में वे पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है। भाजपा के लाखों करोड़ों कार्यकर्ताओं मेंसे चंद अग्रणी लोगों में उनका भी नाम शुमार होना यह कोई कम सम्मान नहीं है।
इस मध्य राजनीतिक जानकारों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे का अकेले और अलग चलना भाजपा को राजस्थान में काफी नुकसान पहुंचा गया है। अब राजस्थान में 5 विधानसभा सीटों पर रहें विधायकों के सांसद बन जाने से प्रदेश में शीघ्र ही उपचुनाव होने है। राजस्थान में देवली-उनियारा,दौसा, चौरासी और खींवसर विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है।
इस सीटों पर क्रमशः हरीश मीना और मुरारी लाल मीणा (दोनों कांग्रेस), राजकुमार रोत (भारत आदिवासी पार्टी,बाप) और हनुमान बेनीवाल (राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी,रालोपा) विधायक थे जोकि सांसद का चुनाव जीत कर लोकसभा में पहुँच गये हैं।
ऐसे में भाजपा के लिए यह पांचों सीटें काफी अहमियत रखती है। एक भी सीट पर उसकी जीत विधानसभा में पार्टी के विधायकों की संख्या बढ़ायेंगीं और इसका लाभ आगे जाकर राज्य सभा सांसद के चुनाव में भी मिलेगा। ऐसे में भजनलाल शर्मा इस बार सबको साथ लेने की कवायद में जुटे हैं। शीर्ष नेतृत्व से भी उन्हें ऐसा ही संकेत मिला है ऐसा बताया जा रहा है। उप चुनावों में जीत हासिल करना भजनलाल शर्मा के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। उप चुनावों के पश्चात स्थानीय निकायों और पंचायती राज के चुनाव भी होने हैं । इस वजह से मुख्यमंत्री शर्मा को भी वसुंधरा राजे की अहमियत का पता चल चुका है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा उपचुनाव में किसी तरह की चूक नहीं चाहते हैं। वसुंधरा राजे अगर उपचुनाव में मदद करती हैं तो भाजपा को निश्चित तौर पर इसका लाभ मिल सकता है।
देखना है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे से हालिया मुलाकात आने वाले समय में प्रदेश की राजनीति में क्या गुल खिलाने जा रही है?