
अशोक भाटिया
पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती को पूरी तरह टेंटिड और दूषित करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 25,753 शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्तियों को रद्द कर चुकी है । सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए यह फैसला दिया है । जिन उम्मीदवारों की नियुक्तियों को धोखाधड़ी की श्रेणी में रखा गया है उन्हें अपनी सैलरी वापस भी करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी ने कड़ी आलोचना की है। साथ ही उन्होंने कहा, ‘मैं इस फैसले का समर्थन नहीं कर सकती।’ इसे ‘घोर अन्याय’ करार देते हुए ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि यह भाजपा द्वारा रची गई साजिश है, जिसका उद्देश्य इन शिक्षकों को चुनावी ड्यूटी से रोकना है।
ज्ञात हो कि पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग ने सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों और गैर-शिक्षक कर्मचारियों की भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की थी । यह प्रक्रिया शिक्षक पात्रता परीक्षा के आधार पर शुरू हुई। उस समय पार्थ चटर्जी राज्य के शिक्षा मंत्री थे।साल 2016 में शिक्षक और अन्य कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई जिसके माध्यम से कुल 24,640 पदों को भरा जाना था। 23 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने आवेदन किया। OMR शीट्स के आधार पर परीक्षा आयोजित की गई, लेकिन बाद में इसमें हेरफेर के आरोप लगे।
WBSSC ने शिक्षक भर्ती परीक्षा के परिणाम घोषित किए और मेरिट लिस्ट जारी की। हालांकि, कई उम्मीदवारों ने परिणामों में गड़बड़ी का आरोप लगाया, जैसे कि कम अंक वाले उम्मीदवारों को ज्यादा रैंक मिलना और TET पास न करने वालों को नौकरी मिलना। साल के अंत तक परिणामों में कथित धांधली के खिलाफ असफल उम्मीदवारों ने राज्य भर में विरोध प्रदर्शन शुरू किए। कई ने कलकत्ता हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर कीं।अप्रैल 2022 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया में अनियमितताओं की जांच के लिए CBI को निर्देश दिया। दूसरी ओर प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉन्ड्रिंग के पहलुओं की जांच शुरू कर दी। ED ने मनी लॉन्ड्रिंग एंगल से जांच की और पार्थ-अर्पिता के बीच वित्तीय लेनदेन के सबूत पाए। अर्पिता के घर से बरामद 21 करोड़ रुपये नकदी को घोटाले की कमाई माना गया। 22 जुलाई को तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी को गिरफ्तार किया गया। CBI और ED ने अन्य नेताओं और अधिकारियों, जैसे TMC विधायक और WB प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष माणिक भट्टाचार्य से भी पूछताछ की।
कलकत्ता हाई कोर्ट ने 2016 की भर्ती प्रक्रिया में 25,753 नियुक्तियों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने इसे “व्यवस्थित धोखाधड़ी” करार दिया, जिसमें OMR शीट्स में छेड़छाड़ और रैंक जंपिंग जैसे सबूत मिले। हाईकोर्ट ने पाया था कि जहां सिर्फ 24,640 पदों के लिए भर्ती होनी थी, वहां कुल 25,753 नियुक्ति पत्र जारी कर दिए गए। कोर्ट ने अवैध रूप से नियुक्त कर्मचारियों को वेतन और लाभ 12% ब्याज के साथ वापस करने का आदेश दिया। साथ ही, CBI को जांच जारी रखने और WBSSC को नई भर्ती शुरू करने का निर्देश दिया। पश्चिम बंगाल सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्तियों को रद्द करने पर अंतरिम रोक लगा दी, लेकिन CBI को जांच जारी रखने की अनुमति दी। कोर्ट ने कहा कि वैध और अवैध नियुक्तियों को अलग करना जरूरी है।सुप्रीम कोर्ट ने मामले की विस्तृत सुनवाई शुरू की। यह सुनवाई कई पक्षों, जिसमें राज्य सरकार और प्रभावित कर्मचारी शामिल थे, की याचिकाओं पर आधारित थी।ED ने 20 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की और 163 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की। इसमें बिचौलिए प्रसन्ना रॉय और उनकी कंपनी शामिल थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा। कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए और धोखाधड़ी के सबूतों पर विचार किया।
3 अप्रैल 2025: सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए 25,753 नियुक्तियों को रद्द कर दिया। इसे “सिस्टमिक फ्रॉड” करार देते हुए कोर्ट ने कहा कि प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर हेरफेर हुआ। राज्य सरकार को 3 महीने में नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार, राज्य सरकार को जुलाई 2025 तक नई भर्ती प्रक्रिया पूरी करनी होगी। यह प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष होने की उम्मीद है, जिसमें पिछले अनुभवों से सबक लिया जाएगा।
शिक्षक भर्ती घोटाले का प्रभाव अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी पड़ने की संभावना जताई जा रही है। कुछ लोगों का मानना है कि यह घोटाला ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सरकार की विश्वसनीयता पर गहरा असर डाल सकता है। विपक्षी दल, खासकर भाजपा , इसे 2026 के विधानसभा चुनाव में प्रमुख मुद्दा बना सकते हैं।ऐसे में बंगाल की सियासत में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या टीएमसी नेताओं के भ्रष्टाचार में अगले चुनाव में ममता बनर्जी की सरकार डूब जाएगी या फिर पहले की तरह ममता बनर्जी डैमेज कंट्रोल कर लेंगी और चुनाव में जीत का अपना सिलसिला जारी रखेंगी।
केंद्रीय मंत्री और पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने दावा किया कि शिक्षकों भर्ती में जेल जाने वाली बनर्जी हरियाणा के ओ पी चौटाला के बाद दूसरी मुख्यमंत्री होंगी। वहीं पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने जोर देकर कहा कि अगर भाजपा राज्य में सत्ता में आती है तो कानून की पूरी ताकत उन पर पड़ेगी। संबित पात्रा ने कहा है कि ममता बनर्जी को अब सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है। अगर उनमें जरा भी जिम्मेदारी की भावना बची है तो उन्हें पद छोड़ देना चाहिए वे निश्चित रूप से जेल जाएंगी।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पार्थ मुखोपाध्याय त्रिपुरा के माणिक सरकार के दौरान शिक्षक भर्ती घोटाले का उदाहरण देते हैं। वह बताते हैं कि त्रिपुरा में मुख्यमंत्री माणिक सरकार के नेतृत्व में सीपीएम की सरकार थी। तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने 2010 और 2013 में दो चरणों में स्कूली शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर 10,323 लोगों को शिक्षक नियुक्त किया था, लेकिन नियुक्ति के संबंध में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए त्रिपुरा उच्च न्यायालय में मामला दायर किया गया।उन्होंने कहा कि अगरतला उच्च न्यायालय ने पूरे पैनल को रद्द कर दिया। माणिक की सरकार उस आदेश को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय गयी, लेकिन 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने भी पूरे पैनल को रद्द करने के आदेश को बरकरार रखा। गले वर्ष त्रिपुरा विधानसभा चुनाव हुए और उस चुनाव में माणिक सरकार की सत्ता चली गई।उन्होंने कहा कि त्रिपुरा की तरह की गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल में करीब 26,000 शिक्षकों की नौकरियां रद्द कर दी। एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की पीठ ने अप्रैल 2024 में कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को बरकरार रखा।
बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में त्रिपुरा की घटना से टीएमसी के नेता चिंतित हैं, हालांकि इस पर टीएमसी के कुछ नेताओं में मतभेद हैं। कुछ का कहना है कि इसका चुनाव पर प्रभाव पड़ेगा, जबकि पिछले उदाहरणों को बताकर टीएमसी के कुछ नेताओं का मानना है कि ममता बनर्जी डैमेज कंट्रोल कर लेंगी।इसका कारण यह है कि पिछले वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण के बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 26,000 शिक्षकों की नौकरियां रद्द कर दी थीं। ममता बनर्जी ने स्वयं उस आदेश के बाद सर्वोच्च न्यायालय जाने की घोषणा की थी, लेकिन चुनाव में इसका इम्पैक्ट नहीं हुआ। इसके विपरीत, 2019 की तुलना में बंगाल में तृणमूल की सीटों में वृद्धि हुई और भाजपा की सीटों की संख्या घट गई।
लेकिन जैसी की उम्मीद थी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विपक्षी पार्टियां मैदान में उतर गई हैं। सीपीआई(एम) के राज्य समिति के सदस्य सुजान चक्रवर्ती ने कहा, “राज्य सरकार को नौकरी देने वाले पैसे पाने वालों से वास्तविक उम्मीदवारों की सूची को अलग करने के लिए एक साल का समय मिला था, लेकिन राज्य सरकार वह सूची बनाने में विफल रही और इस कारण, जो वास्तविक थे, उनकी भी नौकरी चली गई।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मजूमदार ने कहा कि करीब 26,000 भर्ती में से करीब 20,000 का चयन सही तरीके से हुआ जबकि बाकी को राज्य की सत्तारूढ़ टीएमसी नेताओं द्वारा कथित तौर पर रची गई घोटाले से फायदा हुआ। उन्होंने मांग की कि अब बर्खास्त किए गए योग्य कर्मचारियों को सरकार द्वारा सत्तारूढ़ पार्टी के कोष या मुख्यमंत्री राहत कोष के माध्यम से वेतन दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे और उनके परिवार अंधकारमय भविष्य की ओर देख रहे हैं। संबित पात्रा ने कहा कि फैसले के बाद बनर्जी की विश्वसनीयता और वैधता खत्म हो गई है। मजूमदार ने कहा कि राज्य सरकार के पूरे मंत्रिमंडल को सलाखों के पीछे होना चाहिए, क्योंकि इसने भ्रष्टाचार में शामिल लोगों को बचाया लेकिन वास्तविक उम्मीदवारों को उनके भाग्य पर छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि कलकत्ता हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को उन उम्मीदवारों की पहचान करने का सुझाव दिया था जिनकी भर्ती भ्रष्ट तरीकों से हुई थी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने हालांकि इस पर विचार करने से इनकार कर दिया, नतीजतन सभी सफल उम्मीदवारों को बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने कहा कि सरकार को वास्तविक उम्मीदवारों के भविष्य को बचाने के लिए अभी भी ऐसी कानूनी संभावना तलाशनी चाहिए। अब ममता कितना भी बचाव करले वह कानून के शिकंजे में घिर चुकी है जिसका खामियाना उसे अगले विधानसभा चुनावों में चुकाना ही पड़ेगा ।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार