भरोसा क्या होता है ?

अभिषेक यादव

विश्व के सब से बड़े लोकतांत्रिक देश के प्रधान सेवक छाती ठोक कर कहते कि डिजिटल पेमेन्ट क्रांति विश्व में नंबर वन हैं! सुनकर छाती 56 इंच की हो जाती है!

वह यह भी कहते हैं की सारे पेमेंट डिजिटल माध्यम से किये जायें बहुत खूब….!

वह यह भी कहते हैं की घर मैं पैसा मत रखो ….वो काला पैसा है…

दृश्य-1
आदरणीय प्रधान सेवक के आदेश अनुसार उनका भक्त अपने पास कैश में कुछ भी नहीं रखता ,सब बैंक में आखिर प्रधान सेवक के दिये ‘भरोसे’ का महत्व है ! आखिर 24/7 ऑनलाइन पेमेंट व्यवस्था का ‘भरोसा’ दिया है उन्होंने !

दृशय -2
कहीं पर सरकारी नौकरियों के पेपर आउट होने लगते हैं,तो कानून व्यवस्था की दुहाई देकर पूरे इलाके का इंटरनेट बंद कर दिया जाता है (पेपर फिर भी आउट हो जाता है…!)

दृशय-3
प्रधान सेवक का वही भक्त अपने बैंक एकाउंट में पैसे होने के बावजूद भी अपनी बूढ़ी माँ के लिए दवाई औऱ खाना नहीं खरीद सकता क्योंकि इंटरनेट सेवाओं पर तो प्रतिबंध है,
और प्रधान सेवक का वो भक्त परीक्षार्थियों में शामिल भी नहीं.!

अबोध सवाल:-

ऐसा सुना जाता है की नोटबन्दी जैसे महायज्ञ में बहुत लोगो को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा, ऐसे में… डिजिटल क्रांति के विश्वगुरु नारे के चलते हो सकता है संभवतः कुछ और लोगों को अपने प्राण गवाने पड़े…वो भी उनको जिन्हें अपनी खून पसीने की कमाई अपनों पर ही ख़र्च करने का प्रावधान नही क्योंकि ..पेमेंट करना है डिजिटल…सरकारी नौकरी में पारदर्शिता दिखानी है आजकल…औऱ चयन पेपर आउट हो चुका है कल…!

अपनी गर्वोक्तियों की असफ़लता पर कोई ‘मुआवजा’ स्कीम भी चल रही है क्या….मैं फिर से ‘भरोसा’ करना चाहता हूँ!!!