- 2012 से 2021 तक, चोरी और चेन स्नैचिंग के पंजीकृत अपराधों में क्रमशः 827% और 552% की वृद्धि हुई।
- 2012 से 2021 तक छेड़छाड़, बलात्कार और अपहरण (किडनेपिंग)/अपहरण (अब्डक्शन) के अपराधों में क्रमशः 251%, 194% और 39% की वृद्धि हुई।
- 2021 में बलात्कार के कुल मामलों में से 41% पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज किए गए।
- 2021 में कुल अपहरण (किडनेपिंग)/अपहरण (अब्डक्शन) पीड़ितों में से 91% बच्चे थे।
- 2021 में, महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए दोषसिद्धि दर 38% थी और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए केवल 52% थी।
- 2021 तक महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध’ के 99% मामलों की सुनवाई लंबित हैं।
इस दर पर, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के 5 वर्षों (2017 से 2021 तक) में निर्णय/निकासी (3,373 मामले) की औसत संख्या के आधार पर 2021 तक लंबित सभी मामलों को निर्णय देने में 27 साल लगेंगे।
रविवार दिल्ली नेटवर्क
नई दिल्ली : प्रजा फाउंडेशन ने ‘दिल्ली में पुलिस और कानून व्यवस्था की स्थिति’ पर अपनी रिपोर्ट जारी की। इस अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि पिछले दस वर्षों में (2012 से 2021 तक), दिल्ली में प्रमुख अपराधों की प्रतिवेदन में 440% की वृद्धि हुई। रिपोर्ट में मामलों की जांच के साथ-साथ दिल्ली में मुकदमे की कार्यवाही में लंबित मामलों पर भी प्रकाश डाला गया है।
हालांकि यह एक अच्छी बात है कि ज्यादा नागरिक अपराधों को रिपोर्ट करने के लिए आगे आ रहे हैं, दिल्ली में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों में तेजी से वृद्धि चिंताजनक है। उदाहरण के लिए, 2017 से 2021 तक दिल्ली के मानव तस्करी के शिकार लोगों में से 86% 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे थे। इसके अलावा, 2021 में मानव तस्करी के सभी पीड़ितों में से 89% जबरन मजदूरी के लिए थे।
‘दिल्ली में बढ़ते अपराध से निपटने के लिए सुव्यवस्थित पुलिसिंग और कानून व्यवस्था महत्वपूर्ण कारक हैं। हालांकि, जांच और न्यायपालिका के स्तर पर लंबित मामले पीड़ितों को न्याय देने में देरी दिखाते हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराध के लंबित मामले 2017 में 58% से 2021 में 56% हो गए। जबकि बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच में लंबित मामलों की संख्या 2017 और 2021 में 53% पर स्थिर है।,” मिलिंद म्हस्के सी.ई.ओ, प्रजा फाउंडेशन ने कहा।
“जांच में देरी का कारण दिल्ली पुलिस बल में रिक्त पद हो सकती है। वित्त वर्ष 2021-22 में पुलिस कर्मचारियों में 12% रिक्ति थी, जिसमें सबसे ज्यादा रिक्ति अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (74%) के पद के लिए थी। जांच के दौरान पुलिस इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर और सहायक पुलिस इंस्पेक्टर अहम भूमिका निभाते हैं। वित्त वर्ष 2020-21 में इन पदों में 13% रिक्तियां थीं, और 2021-22 के लिए आंकड़े आर.टी.आई (सूचना का अधिकार,अधिनियम) आवेदन में प्रदान नहीं किया गया”, म्हस्के ने जोड़ते हुए कहा ।
“यहां न्यायपालिका स्तर पर भी मुकदमों की सुनवाई लंबित है। 2021 में आई.पी.सी (IPC) के 88% मुकदमे लंबित थे, जबकि एस.एल.एल (SLL) के 96% मामले लंबित थे। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए लंबित मुकदमों के अनुपात में वृद्धि हुई है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए लंबित मामलों के आंकड़े 2017 में 93% से बढ़कर 2021 में 98% हो गए, जबकि बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए लंबित मामलों की सुनवाई 2017 में 95% से बढ़कर 2021 में 99% हो गए। मुकदमे की लंबित कार्यवाही से निपटने के लिए दिल्ली न्यायपालिका प्रणाली प्रौद्योगिकी और कई अन्य वर्चुअल प्लेटफार्मों का इस्तेमाल कर सकती है”, प्रजा फाउंडेशन के डायलॉग प्रोग्राम प्रमुख योगेश मिश्रा ने कहा ।
“यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) के तहत, 2021 में कुल 1,454 पॉक्सो मामलों में से 94% मामलों में लड़कियां पीड़ित थीं, जिसमें बलात्कार (845) और यौन उत्पीड़न (501) के मामले सबसे अधिक थे। पॉक्सो बलात्कार के 98% मामलों में अपराधी पीड़िता को जानता था। इसलिए, स्कूलों में बच्चों और अन्य हितधारकों के बीच इन अपराधों के बारे में जागरूकता बढ़ाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। अधिनियम के अनुसार, सभी पॉक्सो मामलों की सुनवाई विशेष पॉक्सो अदालतों में की जानी चाहिए और अपराध के संज्ञान के समय से एक वर्ष के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। हालांकि, सभी पॉक्सो ट्रायल इस समय सीमा के भीतर संपन्न नहीं हुए। उदाहरण के लिए, 2021 में, 28% पॉक्सो परीक्षणों को पूरा करने में 1 से 3 साल लग गए, जबकि 13% को 3 से 10 साल लग गए”, मिश्रा ने जोड़ते हुए कहा।
“दिल्ली में बढ़ते अपराध दर को देखते हुए बढ़ती आबादी में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए स्वीकृत पुलिस रिक्तियों की संख्या पर पुनर्विचार करने की सख्त जरूरत है। पॉक्सो अधिनियम जैसे विशेष कानूनों की निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग भी बेहतर पुलिसिंग और कानून व्यवस्था की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है”, रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य यातायात और आई.सी सेंटर फॉर गवर्नेंस के महासचिव शांति नारायण ने कहा।
म्हस्के ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि, “नागरिक भी शहर में अपराध कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, सामुदायिक पुलिसिंग को लागू करते हुए बच्चों के यौन शोषण को रोकने के लिए जागरूकता पैदा करने और उन्हें संवेदनशील बनाने के लिए एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। इससे पुलिस और नागरिकों के रिश्तों में मजबूती आएगी। शहर में सुरक्षा जरूरी सेवाएं हैं और कानून एवं व्यवस्था सुधारों के प्रभावी कार्यान्वयन और निगरानी से देश के सभी शहर दिल्ली को एक मॉडल और मजबूत शहर के रूप में देखने में सक्षम हो सकते हैं”।
प्रजा फाउंडेशन के बारे में:
शासन में उत्तरदायित्व एवं पारदर्शिता को पुनः स्थापित करने के लक्ष्य के साथ वर्ष 1997 में प्रजा का गठन किया गया था। स्थानीय सरकार में जनता की घटती अभिरुचि की समस्या को ध्यान में रखते हुए प्रजा नागरिकों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए प्रयासरत है, और इसलिए उन्हें ज्ञान के माध्यम से सशक्त बनाना चाहता है ।
प्रजा का मानना है कि, लोगों के जीवन को सरल बनाने और भागीदारी को प्रोत्साहित करने की दिशा में जानकारी की उपलब्धता का अहम योगदान है। यह एक समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए सुशासन कायम करने की दिशा में निर्वाचित प्रतिनिधियों तक जनता के विचारों को पहुँचने को सुनिश्चित करना चाहता है। इसके साथ-साथ ऐसी युक्तियाँ और तंत्र भी अवश्य मौजूद होने चाहिए, जिसकी मदद से जनता अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किये गए कार्यों पर कड़ी नजर रखने में सक्षम हो सके। लोगों के जीवन को सरल बनाना, तथ्यों के माध्यम से जनता एवं सरकार को सशक्त करना तथा भारत की जनता के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए परिवर्तन की युक्तियों का निर्माण करना प्रजा के लक्ष्य रहे हैं। प्रजा लोगों की भागीदारी के माध्यम से एक जवाबदेह एवं कार्यक्षम समाज के निर्माण हेतु प्रतिबद्ध है ।