सुनील सक्सेना
किसी की आत्मकथा क्यों पढ़ी जानी चाहिए ? क्या इसलिए कि वो नामचीन है, विख्यात है, पॉपुलर है ? क्या उसके जीवन में जो घटित हुआ है, उसे जानकर हमारा कुछ हित होगा, कुछ प्रेरणा मिलेगी ? या वो बड़ा सेलीब्रिटी है महज इसलिए ? ये प्रश्न पाठक के जहन में अक्सर आते हैं । “तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा” ये आत्मकथात्मक उपन्यास है, जिसे लिखा है बहुमुखी प्रतिभा के धनी जानेमाने रंगमंच, फिल्म अभिनेता, गीतकार, संगीतकार पीयूष मिश्रा ने । राजकमल प्रकाशन ने इसे प्रकाशित किया है । प्रकाशक भी ऐसी आत्मकथाओं को हाथों-हाथ लेते हैं जिनमें सनसनी हो, ऐसे प्रसंग हों, राज हों जिन्हें पढ़ने जानने की तीव्र जिज्ञासा पाठक को किताब खरीदने के लिए मजबूर कर दे । ये किताब का तीसरा संस्करण है जो फरवरी 2023 के बाद आया है, जो दर्शाता है कि पीयूष का अपना एक पाठक वर्ग है ।
किताब को पढ़ते हुए ये जानने की उत्कंठा हुई कि व्यक्ति को अपने जीवन के किस पड़ाव पर आकर ऐसा लगता होगा कि उसे अपने बारे में वो सबकुछ उगल देना चाहिए जो वर्षों से उसके अंदर खलबला रहा है । जिंदगी का वो कौनसा वक़्फा होता होगा जब लेखक महसूस करता होगा कि अब बहुत घटित हो गया उसकी कहानी लोगों तक पहुंचनी चाहिए । पीयूष मिश्रा आज जिस मुकाम पर हैं उसके आगे अभी और लम्बा समय शेष है, जिसके बारे में भविष्य में जानने को मिलेगा । अत: कुछ मायनों में ये पीयूष की अधूरी आत्मकथा है ।
पीयूष मिश्रा की इस किताब में एक ओर जहां मध्यम वर्गीय परिवार की दुश्वारियां हैं । तो दूसरी ओर पारंपरिक विचारधारा के पिता और कुछ लीक से हटकर कर गुजरने की चाह रखने वाले पुत्र के बिगड़ते आपसी रिश्तों की दास्तान है । किशोर अवस्था की दहलीज पर खड़े उनका स्कूल टीचर के प्रति सम्महोन है । पहले प्यार की अनुभूति है । पहला चुंबन है । निम्फोमैनियक (एक से अधिक मर्दों से संबंध रखने वाली) उर्वशी के पाश में फंसने की कहानी भी है । शराबनोशी पर भी बड़े विस्तार से लिखा है । उनका मानना है कि शराब एक मानसिक और शारीरिक बीमारी है । एल्कोहॉलिक को कोई बीमार नहीं समझता सब उसे असामाजिक समझते हैं ।
आत्मकथा में बेलौस, बेबाक अपने को खोलकर पाठक के सामने रख देना, वो भी बिना किसी लगा लपेट के, हमेशा से एक चुनौती रही है । पीयूष ने अपनी चदरिया को निर्ममता से उधेड़कर उसका एक-एक धागा पाठक के सामने बेहिचक रख दिया है । जिन चरित्रों का किताब में जिक्र है उन सबके नाम बदल दिए हैं । मोहल्ला, गली, शहर के नाम जस के तस रखें हैं । जिनसे पीयूष के प्रगाढ़ संबंध रहे, जिनसे उनके अंतरंग संबंध रहे हैं, उन्हें पूरी शिद्दत से याद किया है पीयूष ने ।
पीयूष वर्तमान समय में युवा पीढ़ी के चहेते हैं । वे बेहतरीन गायक भी हैं । स्कूल-कॉलेज, प्रोफेशनल संस्थानों के छात्र छात्राओं के बीच उनकी लोकप्रियता किसी रॉकस्टार से कम नहीं है । पीयूष जब अपनी खनकदार आवाज में आरंभ है प्रचंड है बोले मस्तकों के झुंड गाते हैं तो दर्शक झूम उठते हैं । हॉल सीटियों चीखों से गूंज उठता है । इस जगह को हासिल करने के लिए कितने टेढ़े मेढ़े रास्तों से वे गुजरे हैं, सोसायटी में रहकर कैसा संघर्ष किया है, इसका रोचक उल्लेख है कितबा में । उपन्यास की भाषा सरल है । छोटे-छोटे बोलचाल की भाषा वाले वाक्य हैं । अंग्रेजी के शब्दों के इस्तेमाल से उन्होंने कोई परहेज नहीं किया । पढ़ते वक्त एक प्रवाह बना रहता है । ऊब नहीं होती है । अंतरंग दृश्यों का चित्रण करते समय भाषा शालीन और मार्यादित रहे इसका पूरा ख्याल रखा है ।
परफॉरमिंग आर्ट, टीवी, रंगमंच, फिल्म, मॉडलिंग के पीछे दीवानी युवा पीढ़ी को पीयूष की ये किताब आगाह करती है कि इस डगर पर चलना आसान नहीं है । असफलताएं हैं । फ्रस्टेशन है । डिप्रेशन है । आप कई बार टूटकर बिखर जाएंगे । लेकिन यदि फोकस्ड हैं । आप में कुछ कर गुजरने का जुनून है, पागलपन है, तो ये तय है वो जरूर मिलेगा जो आप चाहते हैं । जिसके लिए आपने जमाने से टक्कर ली है । उल्हाने झेले हैं । बस करें वही जो दिल कहे । अब तो समय बदल गया है । बच्चे स्वयं अपने कार्यक्षेत्र का चुनाव कर रहे हैं । अभिभावक भी सक्षम हैं । प्रोत्साहित करते हैं । लेकिन पीयूष की इस किताब में एक पूरा कालखंड ऐसा है जिसमें अपनी हॉबी को पोषित करने के लिए उसे अपने परिवार का विरोध सहना पड़ा । निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की आकांक्षाओं के विपरीत जाकर उसने अपने पेशन को प्रोफेशन में बदला ।
इन दिनों फिल्म उद्योग में बायोपिक सिनेमा की धूम है । क्या खिलाड़ी, क्या राजनीतिज्ञ, क्या अभिनेता धड़ल्ले से इनके जीवन पर आधारित फिल्में बन रही हैं । कोई आश्चर्य नहीं कि पीयूष के इस आत्मकथात्मक उपन्यास जिसमें उनके जीवन के कई चटख रंग बिखरे हुए हैं, पर जल्दी ही कोई फिल्म बने । यदि पीयूष मिश्रा के आप प्रशंसक हैं तो इस किताब को जरूर पढ़ें ।
पुस्तक – तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा (आत्मकथात्मक उपन्यास)
लेखक – पीयूष मिश्रा
प्रकाशक – राजकमल प्रकाशन
मूल्य – रू 299/-