संदीप ठाकुर
कांग्रेस के बड़े से बड़े दिग्गज सड़कों पर हैं। न सिर्फ राजधानी दिल्ली
की सड़कों पर बल्कि देशभर में शहर-शहर कांग्रेसी विरोध-प्रदर्शन कर रहे
हैं। प्रोटेस्ट मार्च निकल रहा है। हंगामे की वजह से संसद की कार्यवाही
ठप है। मार्च में मुख्यमंत्री हैं। सांसद हैं। विधायक हैं।पार्टी के बड़े
से बड़े पदाधिकारी हैं। सरकार पर ‘लोकतंत्र की हत्या’ के आरोप लगाए जा
रहे हैं। दिग्गज नेताओं के अलावा बड़ी तादाद में कांग्रेस कार्यकर्ता
सड़कों पर उतरे हैं। धक्का मुक्की बर्दाश्त कर रहे हैं। पानी की बौछार
झेल रहे हैं। हिरासत में लिए जा रहे हैं। गिरफ्तारियां दे रहे हैं। आखिर
क्यों ? कारण – भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस की शीर्ष नेता व अंतरिम
अध्यक्ष सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ। नैशनल हैरल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस
में ईडी ने कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी को तलब किया है। इसी के
विरोध में कांग्रेसियों ने सड़क से संसद तक एक कर दिया है।
सोनिया गांधी 21 जुलाई, गुरुवार को प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर में
पूछताछ के लिए हाजिर हुईं। सोनिया गांधी जेड प्लस सिक्योरिटी में ईडी
दफ्तर पहुंचीं। उनके साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा भी मौजूद
थे। ईडी नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी से पूछताछ कर रहा है।
गुरुवार को सोनिया से दो घंटे पूछताछ चली। उन्हें शुक्रवार को दोबारा
बुलाया गया है। उनकी पेशी पर संसद से लेकर सड़क तक हंगामा देखने को मिला।
ईडी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी समेत कंपनी से जुड़े कई अन्य कांग्रेस
नेताओं पर मनी लॉन्ड्रिंग के तहत केस दर्ज किया है। मामले में राहुल
गांधी से ईडी ने जून में पूछताछ की थी। अब सोनिया गांधी से हाे रही है।
आखिर गांधी परिवार से ईडी किन सवालों के जवाब जानना चाहता है।
मामला नेशनल हेराल्ड अखबार से जुड़ा है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री
जवाहर लाल नेहरू ने 1938 में इसकी नींव रखी थी। अखबार में मुख्य तौर पर
नेहरू के लेख छपते थे। इस अखबार से ब्रितानी सरकार इतनी भयभीत हो गई थी
कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। अखबार
का मालिकाना अधिकार एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड यानी एजेएल के पास था। कंपनी
दो और अखबार छापा करती थी। हिंदी में नवजीवन और उर्दू में कौमी आवाज।
1956 में एजेएल को गैर व्यावसायिक कंपनी के तौर पर स्थापित किया गया। इसी
के साथ इसे कंपनी एक्ट की धारा 25 से कर मुक्त कर दिया गया था। धीरे-धीरे
कंपनी घाटे में चली गई। कंपनी पर 90 करोड़ का लोन भी चढ़ गया। इस बीच
साल 2010 में यंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के नाम से एक दूसरी कंपनी बनाई
गई। इसमें 38-38 प्रतिशत शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास के थे।
बाकी की हिस्सेदारी मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडिस के पास थी। कांग्रेस
पार्टी ने अपना 90 करोड़ का लोन नई कंपनी यानी यंग इंडिया को ट्रांसफर कर
दिया। लोन चुकाने में पूरी तरह असमर्थ द एसोसिएट जर्नल ने सारे शेयर यंग
इंडियन को ट्रांसफर कर दिए। इसके बदले में यंग इंडियन ने महज 50 लाख
रुपये द एसोसिएट जर्नल को दिए। बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने एक
याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि यंग इंडिया प्राइवेट ने केवल 50 लाख
रुपये में 90 करोड़ वसूलने का उपाय निकाला जो नियमों के खिलाफ है। आरोप
है कि मोटी रकम हवाला के जरिए विदेश भेज दिया गया है। जांच इसी की हाे
रही है।
सवाल है कि ईडी सोनिया गांधी से क्या -क्या सवाल पूछ सकता है। यंग
इंडिया से सोनिया गांधी के कनेक्शन को लेकर सवाल किया जा सकता है। यह
पूछा जा सकता है कि आखिर सोनिया गांधी ने यंग इंडिया प्राइवेट में 38
फीसदी शेयर क्यों लिए ? वह यंग इंडिया प्राइवेट की डायरेक्टर क्यों बनीं
? ( डायरेक्टर बनने वाली आखिरी शख्स थीं )। यंग इंडिया की ओर से यंग
इंडिया को अनसिक्योर्ड लोन देने की क्या वजह थी ? एजेएल की रिपोर्ट के
संदर्भ लोन का जिक्र क्यों नहीं किया गया है? जब एजेएल का अधिग्रहण हुआ
तो क्या उससे पहले नियमों के अनुसार शेयर धारकों की बैठक हुई थी ?
रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के पास मौजूद दस्तावेजों के अनुसार, 29 दिसंबर 2010
तक एजेएल के शेयरधारकों की संख्या 1057 थी। क्या इन शेयर धारकों से सहमति
ली गई थी ? यंग इंडिया ने एजेएल को शेयर पेमेंट कैसे दिया, इसका क्या
तरीका था ? यदि यंग इंडिया एक धर्मार्थ संगठन है तो उसका डोनेशन में
योगदान क्यों नहीं है ?