प्रभुनाथ शुक्ल
केंद्रीय स्तर पर भाजपा का शीर्ष सांगठनिक विस्तार यानी संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति का गठन विमर्श का विषय बना है। भाजपा नितिन गडकरी जैसे साफ-सुथरे छबि वाले राजनेता को संसदीय बोर्ड से अलग कर एक नई बहस छेड़ दी है।पार्टी के सांगठनिक ढांचे में अगर व्यक्तिवाद का विश्लेषण करें तो नितिन गडकरी जैसा राजनेता कोई नहीं दिखता है। गड़करी की नीति समता और समानतावादी है। वे सत्ता और विपक्ष को एक साथ लेकर चलने वाले हैं। उनकी सोच और विचारधारा में कहीं न कहीं अटल बिहारी बाजपेयी की छबि दिखती है। सार्वजनिक मंचो पर उन्होंने कई बार ऐसी टिप्पणियां की है जो भाजपा की विचारधारा से मेल नहीं खाती। पार्टी के इस निर्णय से साबित हो गया है कि अंदर कहीं ना कहीं वैचारिक मतभेद हैं। फिलहाल आने वाला वक्त नितिन गडकरी के लिए चुनौतियों भरा दिखता है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। गडकरी महाराष्ट्र के नागपुर से आते हैं। नागपुर यानी संघ। कहा जाता है कि नितिन गडकरी की संघ में अच्छी खासी पैठ है। फिर संसदीय बोर्ड से बाहर होना सवाल खड़े करता है। जबकि देवेंद्र फडणवीस को प्रमोट किया गया है। हालांकि गडकरी के आगे फडणवीस की वजनदारी नहीं ठहरती है। फडणवीस को आगे लाकर पार्टी नितिन गडकरी को नीचा दिखाना चाहती है? या गडकरी को संगठन में उनकी हैसियत बताने का प्रयास किया गया है ? लेकिन इस निर्णय का असर महाराष्ट्र की राजनीति पर पड़ सकता है। वर्तमान समय में मोदी के बाद भाजपा संसदीय बोर्ड में गडकरी के कैडर का कोई राजनेता नहीं है। अपने मंत्रालय में जितना बेहतरीन काम उन्होंने किया है शायद मोदी मंत्रिमंडल का कोई भी मंत्री इतना अच्छा कार्य किया हो। फिलहाल यह पार्टी की अपनी रणनीति है कि वह संगठन को कैसे चलाती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नितिन गडकरी के विचारों में कभी-कभी द्वंद देखा गया है। कई बार उन्होंने पार्टी लाइन से हट कर अपने विचार रखें हैं। प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं, लेकिन नितिन गडकरी ने कहा था कि विपक्ष का जिंदा होना जरूरी है। कांग्रेस के जो राजनेता बुरे दिन में पार्टी छोड़ रहे हैं उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। उन्हें पार्टी का साथ देना चाहिए। स्वतंत्रता दिवस पर भी प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से परिवारवाद पर हमला बोला। यह हमला सीधा नेहरू-गांधी परिवार था। गडकरी ने हाल के दिनों में एक बयान दिया था जिसमें कहा था कि राजनीति में अब रहने का मन नहीं करता है। संसदीय बोर्ड से किनारे रखने का मतलब उनकी यह बयानबाजी भी हो सकती है। हालांकि देवेंद्र फडणवीस का बॉर्ड में लिया जाना महाराष्ट्र में महाविकास आघाडी सरकार गिराने का इनाम भी माना जा रहा है।
मीडिया विश्लेषण पर गौर करें तो यह बात सामने आती है कि भाजपा में अमित शाह के मुकाबले नितिन गडकरी का कद बड़ा दिखने लगा था। उनके मंत्रालय के कार्य को लेकर देश भर में अलग-अलग चर्चाएं होती हैं। क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्गो का संजाल बिछा दिया है। नरेंद्र मोदी के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए नितिन गडकरी सबसे योग्य उम्मीदवार हो सकते हैं। लेकिन पार्टी उन्हें संसदीय बोर्ड से निकाल कर बाहर कर दिया। भाजपा में यह लंबी राजनीति का संदेश है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहानके साथ भी ऐसा कुछ है। मीडिया में शरद पवार की पार्टी के प्रवक्ता का एक बयान आया है जिसमें कहा गया है कि भाजपा में जिसका कद बड़ा होता है उसे कम कर दिया जाता है। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे राजनेता इसके उदाहरण है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में महाराष्ट्र से नेतृत्व करने वाले नितिन गडकरी एक विशेष व्यक्तित्व के राजनेता हैं। महाराष्ट्र में उनकी अपनी एक अलग छवि है। भारत के सीमावर्ती इलाकों लेह और लद्दाख जैसे दुर्गम क्षेत्रों में उनका मंत्रालय बढ़िया कार्य किया है। कैलाश मानसरोवर जाने के लिए नए राजमार्ग का निर्माण किया जा रहा है। इसकी जानकारी उन्होंने खुद लोकसभा में दी। राष्ट्रीय मीडिया के विश्लेषण की बात करें तो उसमें यह बात उभर कर आयी है कि अमितशाह को मोदी के बाद दूसरे नंबर का राजनेता बनाया जा रहा है।
पार्टी का संसदीय बोर्ड संगठन की रीढ़ होता है। पार्टी के सारे अहम फैसले बोर्ड की तरफ से लिए जाते हैं। इस फैसले से कहीं न कहीं महाराष्ट्र की राजनीति पर व्यापक असर पड़ेगा। क्योंकि भाजपा जिस तरह महाराष्ट्र में शिवसेना को दो भागों में बांट कर अपनी चाल चली है उसे बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। इस घटनाक्रम के बाद महाराष्ट्र की जनता की सहानुभूति देवेंद्र फडणवीस और शिंदे के बाजाय उद्धव ठाकरे के साथ है। भाजपा ने जानबूझकर देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री नहीं बनाया। जबकि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनने की पूरी तैयारी में थे। उप मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी लेने के लिए उन्हें शीर्ष नेतृत्व की तरफ से मनाया गया। शिवसेना का असली वारिस तो बालासाहब ठाकरे का परिवार ही रहेगा। उद्धव ठाकरे भी नितिन गडकरी की तरह एक उदारवादी और सबको साथ लेकर चलने वाले राजनेता हैं।
नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान जैसे राजनेता को बाहर रख भाजपा यह संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी में व्यक्ति नहीं विचारधारा का महत्व है। शिवराज सिंह चौहान को इसलिए बाहर किया गया कि राज्य विधानसभा चुनाव में उन्होंने बहुत अच्छा काम नहीं किया था। पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। लिहाजा उनका भी विकल्प तलाशने की कोशिश शुरू कर दी गई है। सबसे अहम सवाल यह उठता है कि देवेंद्र फडणवीस और नितिन गडकरी नागपुर से आते हैं। इसके बावजूद संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी का डिमोशन कर केंद्रीय चुनाव समिति में फडणवीस को लिया जाना सवाल खड़े करता है। हालांकि फडणवीस के लिए यह उद्धव सरकार गिराने और मुख्यमंत्री पद त्यागने का इनाम हो सकता मना है।
भाजपा के संसदीय बोर्ड में जेपी नड्डा अध्यक्ष होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमितशाह, राजनाथ सिंह को शामिल किया गया है। जबकि पार्टी के पुराने अध्यक्षों को लेने की परंपरा रही है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। बीएस येदुरप्पा को पहली बार शामिल किया गया है। पूर्वी भारत से सर्वानंद सोनेलाल के इतर के लक्ष्मण, पंजाब से लालपुरा जैसे नए चेहरे को शामिल किया गया। बीएल संतोष के साथ हरियाणा की सुधा यादव को भी जगह मिली है। जातीय गणित को फिट करने के लिए सत्यनारायण जटिया को भी लिया गया है। बीएस येदुरप्पा को लाकर दक्षिण भारत से संगठन में महत्वपूर्ण व्यक्ति को रखने की कोशिश की गई। सभी जातियों और समुदाय से लोगों को शामिल कर सर्वसमाज की भागीदारी बनाने की कवायद है। लेकिन गडकरी जैसे राजनेता के साथ नाइंसाफी है। यह निर्णय भाजपा की राजनीति और उसके असली चरित्र को उजागर करता है। फिलहाल पार्टी के इस निर्णय के बाद गडकरी क्या फील करेंगे। भविष्य में पार्टी उनकी क्या भूमिका होगी, अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी यह वक्त बताएगा।