राजस्थान के 17 नये जिलों, 3 संभागों और जिला नहीं बन पायें क्षेत्रों का भविष्य क्या होंगा?

What will be the future of 17 new districts, 3 divisions and areas of Rajasthan that could not be formed as districts?

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

वर्तमान में भौगोलिक दृष्टि से देश के सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान के गठन की कहानी जितनी दिलचस्प है उतनी ही प्रदेश में विभिन्न जिलों के गठन की कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है। प्रदेश के विभिन्न मुख्यमंत्रियों के कार्यकालों में राजस्थान में नये जिलों का गठन हुआ हैं। इसके बावजूद राज्य में समय-समय पर नये जिलों के गठन की माँग होती रही हैं। सत्तर के दशक में राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता महारावल लक्ष्मण सिंह डूँगरपुर ने प्रदेश को नैसर्गिक रूप से दो भागों में विभक्त कर रही और राज्य के मध्य में से गुजर रही विश्व की सबसे प्राचीन अरावली पर्वत शृंखलाओ को आधार मान कर तथा छोटे प्रदेशों को विकास की दृष्टि से अनुकूल बता कर मरू प्रदेश (पश्चिमी राजस्थान) और अरावली राजस्थान (पूर्वी राजस्थान) बनाने की पुरज़ोर माँग रखी थी। इसी प्रकार पिछले सात दशकों में इसी तरह की और कई माँगे भी हुई है परंतु उनमें से कोई सिरे नहीं चढ़ पाई । साथ ही नये जिलों की माँग भी कभी रुकी नहीं।

आज़ादी के बाद पहली बार कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने तीसरे मुख्यमंत्रित्व काल में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले एक साथ 19 जिलों (जयपुर और जोधपुर को दो जिलों में विभाजित करने सहित ) और तीन नये संभाग का गठन करने की घोषणा कर उन्हें मूर्त रूप दे दिया। जिससे प्रदेश में कुल ज़िलों की संख्या बढ़ कर 50 और संभागों की संख्या 10 हो गई। नए जिलों की सूची में अनुपगढ़, बालोतरा, ब्यावर, डीग, डीडवाना-कुचमान, दूदू , गंगापुर सिटी, कोटपुतली-बहरौड़, खैरथल-तिजारा, नीम का थाना, फलोदी, सलूम्बर, सांचोर और शाहपुरा शामिल हैं। इन नए जिलों के साथ ही
राज्य में 3 नए संभाग बनाए गए जिनमें बांसवाड़ा, पाली और सीकर शामिल हैं।

इनके अलावा गहलोत मंत्रिमंडल ने 6-7अक्तूबर 2023 को प्रदेश में तीन और नए जिलों मालपुरा,सुजानगढ़ और कुचामन सिटी की घोषणा भी कर दी लेकिन विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से इन नये जिलों के नॉटिफ़िकेशन जारी नहीं हो पाने से यह जिले अस्तित्व में नहीं आ पाये। आनन फानन में बने नये जिलों से प्रदेश की राजनीति में हलचल पैदा हो गई और इसके पक्ष और विपक्ष में सत्ता एवं प्रतिपक्ष में जोर से आवाजें उठी। जानकारों का मानना है कि कई ऐसे जिले बने जो जिला बनने योग्य ही नहीं थे और कई ऐसे जिला नहीं बन पाये जो कि वास्तव में इसके हकदार थे। इसके बाद प्रदेश में भजन लाल शर्मा के नेतृत्व में भाजपा की नई सरकार का गठन हुआ और राजस्थान के इतिहास में पहली बार नवगठित जिलों की पुनर्समीक्षा के लिये एक मंत्रिमंडलीय उप समिति तथा रिटायर्ड आईएएस डॉ.ललित के.पंवार की अध्यक्षता में हाई लेवल एक्सपर्ट रिव्यू कमेटी का गठन किया गया। इस समिति ने दो महीनों से भी कम समय में समय से पूर्व अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सुपुर्द कर दी है तथा मंत्रिमंडलीय उप समिति ने भी इस पर प्रारंभिक विचार विमर्श कर लिया है। भजन लाल मंत्रिमंडल के एक मन्त्री ने कहा कि जिस प्रकार जिलों का गठन हुआ उसे देखते हुए प्रदेश की 200 विधानसभा क्षेत्रों को ही जिले तो नहीं बना सकते। नये जिले बनाने पर 500 से 2000 करोड़ का खर्चा जो आता हैं।

हाई लेवल एक्सपर्ट रिव्यू कमेटी के अध्यक्ष डॉ.ललित के.पंवार ने एक प्रतिष्ठित टीवी चैनल को दिये इंटरव्यू में उन्हें सौंपें गये दायित्व और राज्य सरकार को सौंपीं गई अपनी रिपोर्ट के बारे में खुलासे के साथ अपनी बात रखी है तथा बताया है कि प्रदेश में बने इन जिलों के बारे में राज्य सरकार को ही फ़ैसला करना है और उम्मीद है कि भारत के जनगणना रजिस्ट्रार के नॉटिफ़िकेशन के बाद इस बारे में यथा शीघ्र निर्णय होंगा।

इससे पहले हम राजस्थान में समय समय पर गठित हुए नये जिलों के इतिहास पर नजर डालते हैं। 30मार्च 1949 को राजस्थान के विधिवत गठन के बाद प्रदेश संवैधानिक रूप से 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आया था। प्रारंभ में राजस्थान में 25 जिले थे। इसके बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया के कार्यकाल में 1 नवंम्बर, 1956 में अजमेर राजस्थान का 26वां जिला बना। इसके 26 वर्ष बाद कांग्रेस के ही मुख्यमंत्री शिव चरण माथुर के कार्यकाल में 15 अप्रैल,1982 में धौलपुर राजस्थान का 27वां जिला बना। यह भरतपुर जिले से अलग करके बनाया गया था। फिर 9 वर्ष उपरान्त 10 अप्रैल, 1991 को भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के कार्यकाल में तीन नये जिले बांरा, दौसा और राजसंमद बने।कोटा जिले से अलग करके बांरा, जयपुर से अलग करके दौसा और उदयपुर से अलग होकर राजसंमद को 30वां जिला बनाया गया। इसके चार साल बाद ही भैरोंसिंह शेखावत के ही मुख्यमंत्रित्व काल में ही दो और नए जिले 12 जुलाई,1994 को श्रीगंगानगर से अलग होकर हनुमानगढ़ को 31वां जिला तथा सवाई माधोपुर से अलग होकर 19 जुलाई 1997 में करौली राज्य का 32वां जिला बना। इसके 11 वर्षों बाद प्रदेश की पहली महिला मुख्यमन्त्री भाजपा की वसुन्धरा राजे के कार्यकाल में 26 जनवरी,2008 को तीन जिलों से अलग होकर एक और नया जिला बना। यह जिला राज्य के चितौड़गढ़,उदयपुर और बाँसवाड़ा जिलों के कुछ भागों को मिलाकर प्रतापगढ़ के रूप में राज्य का 33 वां जिला बना ।

मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ को नया प्रदेश बनाने के बाद राजस्थान भौगोलिक दृष्टि से देश का सबसे बड़ा प्रदेश बन गया। हालाँकि राजनीतिक दृष्टि से राजस्थान में पड़ौसी गुजरात से भी कम सांसद सिर्फ 25 सांसद ही लोकसभा में जाते हैं। प्रदेश में 33 जिले बन जाने के बाद भी राष्ट्रीय मापदंडों और अन्य प्रदेशों की तुलना में राज्य के जिलों का क्षेत्रफल बहुत अधिक है। अकेला जैसलमेर जिला ही इतना बड़ा है कि उसमें पूरा केरल राज्य और विश्व के कई छोटे देश समा जाये। ऐसी परिस्थितियों में प्रदेश में नए जिलों के गठन की आवश्यकताओं को नकारा नहीं जा सकता लेकिन साथ ही यह भी सही है कि जिलों का गठन व्यावहारिक धरातल पर कसौटी पर खरा उतरना चाहिए और उसका असर प्रदेश की भौगोलिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश के अनुरूप भी होना चाहिये। इस लिहाज़ से ललित के. पंवार कमेटी की अनुशंसाओं पर गौर कर भजन लाल सरकार क्या निर्णय लेगी यह देखना होगा।

साथ ही अब यह देखना भी दिलचस्प हो गया है कि राजस्थान के इतिहास में पहली जिलों का गठन होने के बाद राज्य सरकार द्वारा इसकी पुनर्समीक्षा कराने से प्रदेश की जनता और जनप्रतिनिधि कितना अधिक संतुष्ट होंगे?